सरला देवी की कहानी – रंगभेद और आत्मसम्मान पर आधारित प्रेरणा

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“रंग और आत्मविश्वास की यह प्रेरणादायक कहानी” उस सोच को चुनौती देती है जो सुंदरता को सिर्फ गोरे रंग से जोड़ती है। यह एक ऐसी माँ की कहानी है, जिसने न सिर्फ अपने बेटे को संस्कार दिए, बल्कि पूरे समाज को ये दिखाया कि असली सुंदरता आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास में होती है — न कि चेहरे की चमक में।

सरला देवी की कहानी – रंगभेद और आत्मसम्मान पर आधारित प्रेरणा
सरला देवी की कहानी – रंगभेद और आत्मसम्मान पर आधारित प्रेरणा

“आपका रंग बहुत गहरा होता जा रहा है।”
अपनी पत्नी नीरजा को आवाज़ लगाते हुए श्री ने कहा —
“सुनो! माँ को जरा सी क्रीम पाउडर भी लगा देना। आज शाम मेरी कंपनी के मालिक चाय पर आ रहे हैं। माँ बिल्कुल स्मार्ट लगनी चाहिए।”

“जी…” — इतना कहकर नीरजा सासु माँ के कमरे की तरफ बढ़ गयी।

नीरजा जानती थी कि श्री की चिंता सिर्फ सामाजिक दिखावे के लिए है। मगर वो भी चाहती थी कि घर की इज्ज़त बनी रहे। इसलिए उसने बिना कोई सवाल किए, अपने सासु माँ — सरला देवी के कमरे का रुख किया।

कमरे में पहुँचते ही सरला देवी ने नज़रें नीची कर लीं।
नीरजा ने मुस्कुराते हुए कहा, “माँ जी, ज़रा तैयार हो जाइए ना। आज घर में मेहमान आ रहे हैं।”

सरला देवी ने बिना उठे जवाब दिया, “मुझे कुछ नहीं करना।”

“माँ जी… बस हल्का सा पाउडर और एक हल्की गुलाबी साड़ी। आप बहुत सुंदर लगेंगी। पापा होते तो कहते— मेरी सरला रानी।”

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उनका चेहरा एक पल को मुस्काया, लेकिन तुरंत सख्ती आ गई—
“नीरजा, तुम तो जानती हो, मैं ये सब नहीं कर सकती। अब उम्र ही क्या रही इन चीज़ों की? और फिर… मेरा रंग तो ऐसा है कि कुछ भी लगाऊँ, कोई फर्क नहीं पड़ता।”

नीरजा के हाथ वहीं रुक गए। उसे लगा जैसे ये सिर्फ रंग की बात नहीं, बल्कि आत्म-सम्मान की एक दीवार है, जो सरला देवी ने खुद के चारों ओर खड़ी कर ली है।

श्री के ऑफिस के मालिक अरुण मेहरा और उनकी पत्नी शाम को आए। पूरे घर में रौनक थी, नीरजा ने खुद माँ को ज़बरदस्ती गुलाबी साड़ी पहना दी थी, लेकिन पाउडर लगाने की कोशिश छोड़ दी थी।

शाम सामान्य रही। बातचीत, चाय, हँसी-मज़ाक — सब औपचारिक लेकिन ठीक-ठाक चला।

मगर जाते समय मेहरा साहब की पत्नी, बिना कुछ छुपाए, बोल पड़ी,
“श्री, तुम्हारी माँ तो बहुत साधारण सी लगती हैं, उनके अंदर वो ‘क्लास’ नहीं जो आजकल की महिलाओं में होती है। बस… थोड़ा सा रूप सज्जा कर लेतीं तो अच्छा लगता।”

श्री मुस्कुरा दिया, जैसे बात अनसुनी कर दी हो। मगर भीतर उसका खून खौल उठा।

रात को श्री और नीरजा के बीच बहस शुरू हो गई।
“मैंने कहा था ना, माँ को तैयार कर दो, कुछ तो मेनटेन करो यार! आज के ज़माने में लोगों को सिर्फ बातों से नहीं, लुक्स से भी फर्क पड़ता है।”

नीरजा ने संयम से कहा, “श्री, माँ को किसी की कसौटी पर खरा उतरने की ज़रूरत नहीं। उन्होंने जीवनभर तुम्हें और इस घर को सँवारा है, क्या वह सुंदरता नहीं है?”

श्री ने चुप्पी साध ली।

अगली सुबह, नीरजा माँ के कमरे में पहुँची तो सरला देवी खामोशी से बैठी थीं।
नीरजा ने झिझकते हुए कहा,
“माँ जी, क्या कभी आपको भी मन हुआ था कि आप गोरी होतीं?”

सरला देवी हँस दीं, लेकिन उनकी हँसी में कसक थी।

“बचपन में जब मैं स्कूल जाती थी ना, तो मेरी सहेलियाँ मुझे ‘काली कलूटी’ कहती थीं। एक बार तो मेरी ही मामी ने मेरी माँ से कहा था — ‘कौन ब्याहेगा इसे? इसकी शक्ल देखी है?’”

नीरजा के दिल में हूक सी उठी।

“और फिर जब तेरे ससुरजी ने मुझे देखा था, उन्होंने कहा था — ‘चेहरा नहीं, चाल देखो।’ और उन्होंने मेरी सादगी से शादी कर ली। लेकिन मैं जानती थी कि इस रंग के कारण मैंने हर मोड़ पर खुद को साबित करना सीखा।”

सरला देवी की आँखों में गर्व था। “रंग तो सूरज का भी गहरा होता है बेटा, मगर वो पूरी दुनिया को रोशन करता है।”

उस दिन के बाद नीरजा ने एक फैसला किया।

उसी हफ्ते उनके मोहल्ले के स्कूल में “महिला सशक्तिकरण पर एक वर्कशॉप” होने वाली थी। नीरजा ने आयोजकों से बात कर माँ को मुख्य वक्ता बना दिया — बिना माँ को बताए।

जब सरला देवी को मंच पर बुलाया गया, वो हैरान रह गईं।

स्टेज पर चढ़ते हुए उनके हाथ काँप रहे थे, लेकिन जब माइक पर पहुँचीं, तो उनकी आवाज़ पूरे हॉल में गूंज उठी —

“मैं सरला देवी, एक गृहिणी हूँ। शायद मेरे पास दिखाने को कोई डिग्री नहीं, कोई मॉडल जैसी शक्ल नहीं। मगर मैंने एक घर चलाया है, एक बेटे को संस्कार दिए हैं, और खुद को कभी कमतर नहीं समझा।

मेरे रंग ने मुझे अलग नहीं किया, इसने मुझे लड़ना सिखाया। हर उस सोच से, जो कहती है कि सुंदरता सिर्फ गोरे रंग में होती है।

सुंदरता तो उस मुस्कान में होती है जो मुश्किलों में भी टिक जाती है। उस माँ में होती है जो बिना थके अपना सब कुछ दे देती है।”

पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।

श्री, जो पीछे बैठा था, उसकी आँखें नम थीं।

घर लौटते समय श्री ने माँ का हाथ थामा।
“माँ, आप सच में सबसे सुंदर हो। शायद मुझे देखने में देर हो गई।”

सरला देवी ने मुस्कुराते हुए कहा,
“कोई बात नहीं बेटा, सही समय पर देखा — यही काफी है।”

कुछ दिन बाद श्री की कंपनी में वुमन डे सेलिब्रेशन था। इस बार श्री ने प्रेजेंटेशन में अपनी माँ की कहानी जोड़ी — “सरला देवी: द सनशाइन बियॉन्ड कलर”।

ऑफिस में सब हैरान थे, क्योंकि श्री की छवि हमेशा प्रोफेशनल और परफेक्ट दिखावे वाली रही थी।

उस दिन के बाद लोगों की नज़रें भी बदलीं, सोच भी।

आज सरला देवी के नाम पर एक NGO शुरू किया गया — “रंग की नहीं, रौशनी की बात करो”, जिसमें रंगभेद, सौंदर्य मानकों, और महिलाओं की आत्म-स्वीकृति पर काम होता है।

नीरजा और श्री ने मिलकर उस पहल को एक अभियान बना दिया।

और माँ?

वो अब भी वही गुलाबी साड़ी पहनती हैं, बिना पाउडर के — क्योंकि उनका आत्मविश्वास अब उनका सबसे बड़ा श्रृंगार बन चुका है।

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