एक बेटी की ख्वाहिश – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

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एक बेटी की ख्वाहिश – यह प्रेरणादायक कहानी एक माँ की कहानी है, जो अपने बेटों के बीच एक बेटी गोद लेने का निर्णय लेती है। जानिए कैसे वह अपनी ज़िंदगी को नया मोड़ देती है।

एक बेटी की ख्वाहिश - मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)
एक बेटी की ख्वाहिश – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

सुधा भी ख़ुश ही थी अपने घर-संसार में, लेकिन कभी-कभी अचानक बेचैन हो उठती। इसका कारण वह ख़ुद भी नहीं जानती थी। यह बेचैनी रात को गहरी नींद में और दिन में उसके रोज़मर्रा के कामों में भी चुपके से घुस आती थी। किसी एक कारण से नहीं, बल्कि कई छोटे-छोटे कारणों से उसके मन में यह हलचल रहती थी। कभी बच्चों की बढ़ती हुई उम्र, कभी घर के कामों का बोझ और कभी अपने पति के साथ की कमी। वह यह सब अपनी ज़िंदगी के हिस्से के रूप में स्वीकार करती थी, लेकिन फिर भी वह कुछ तलाश रही थी— कुछ और, जो उसे पूरा कर सके। क्या था वह कुछ और, यह वह भी नहीं जान पाई थी।

पति राजीव हमेशा उसकी बेचैनी को समझने की कोशिश करते थे। अक्सर वे उससे पूछते, “तुम्हें क्या परेशानी है, सुधा? तुम्हें तो हमेशा ख़ुश रहना चाहिए।” लेकिन वह हर बार यही जवाब देती थी, “कुछ नहीं है, बस थोड़ा सा मन नहीं लगता।” राजीव को लगता था कि यह सब घरेलू कामों के दबाव की वजह से है, लेकिन वह नहीं जानते थे कि सुधा का मन कहीं और बह रहा था।

तीनों बच्चे बड़े हो गए थे। सबसे बड़ा बेटा, करण, इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष में था, मंझला बेटा, अंश, पहले वर्ष में था और सबसे छोटा बेटा, मोहन, दसवीं में था। तीनों ही किशोरावस्था में थे। अब उनकी रुचियों का दायरा बदल चुका था। वे अपने पिता के विचारों से ज़्यादा मेल खाते थे। वे ज़्यादातर समय अपने पिता, टीवी और दोस्तों के साथ बिताते। कभी-कभी सुधा सोचती, “क्या हुआ उन दिनों को जब ये सब मेरे साथ वक्त बिताते थे?” लेकिन अब ऐसा नहीं था। उनका मन कहीं और था, और सुधा अपने आप को अकेला सा महसूस करती थी।

वह चाहती थी कि उसका परिवार फिर से पहले जैसा हो जाए, जब बच्चे छोटे थे और हर छोटी बात में माँ के पास आते थे। लेकिन अब वे बड़े हो गए थे, और उनके अपने सपने, अपनी दुनिया थी। सुधा कभी-कभी सोचती, क्या मैं कुछ और कर सकती थी? क्या मेरे लिए अब कुछ रह गया है? क्या मेरी पहचान सिर्फ़ माँ और पत्नी के रूप में ही रह जाएगी?

एक सुबह, जब राजीव ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहे थे, सुधा ने उन्हें चुपचाप कमरे में बुलाया। “क्या हुआ सुधा?” राजीव ने पूछा। सुधा ने धीरे से सिर झुकाया और कहा, “मेरी खुशी के लिए आप कुछ करेंगे?”

राजीव ने आश्चर्य से पूछा, “क्या बात है सुधा? तुम कुछ ऐसा बोल रही हो जो मैंने पहले कभी नहीं सुना।”

सुधा ने हिम्मत जुटाते हुए कहा, “मैं एक बेटी गोद लेना चाहती हूं।” यह सुनकर राजीव का चेहरा बदल गया।

 

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“क्या? लेकिन हमारे पास तो तीन बेटे हैं, फिर क्यों?” उन्होंने सवाल किया।

“तीन बेटे होने के बावजूद मैं संतुष्ट नहीं हूं। मैं खुद की परछाई इनमें से किसी में नहीं ढूंढ पाती,” सुधा की आवाज़ में एक गहरी उदासी थी। “मैं नहीं जानती कि मैं क्या चाहती हूं, लेकिन एक बेटी की ख़ुशबू, उसकी मासूमियत, उसके साथ बिताया हुआ समय—वो सब मुझे चाहिए।”

राजीव कुछ देर तक चुप रहे। उन्हें समझ में नहीं आया कि यह अचानक क्या हो गया। उन्होंने कुछ सोचा और फिर कहा, “तुम्हारी इच्छा है, सुधा, तो हम इसके बारे में बात करेंगे। लेकिन यह आसान नहीं है। हमें इसके बारे में और सोचना होगा।”

सुधा ने एक हल्की सी मुस्कान के साथ सिर हिलाया, “सिर्फ़ इतना कहिए कि आप मेरे साथ हैं, और मैं सब कुछ ठीक कर लूंगी।”

इस प्रस्ताव को परिवार के सामने रखा गया। बच्चे पहले तो चुप रहे, लेकिन फिर करण ने कहा, “माँ, आप सच में चाहती हैं कि हम में से एक लड़की होती?”

अंश ने भी सवाल किया, “क्या हमें नहीं लगता कि हमें इस उम्र में एक बेटी की ज़रूरत नहीं है?”

सुधा की आँखों में एक अजीब सा चमक था। “मैं यह नहीं कहती कि तुम्हारी वजह से मुझे कोई कमी महसूस होती है। तुम सब मेरे लिए सब कुछ हो। लेकिन मुझे लगता है कि कहीं न कहीं मेरी ज़िंदगी का एक और हिस्सा छूट गया है।”

मोहन ने धीरे से कहा, “माँ, अगर आप खुश रहोगी, तो हम भी खुश रहेंगे।”

यह सुनकर सुधा को थोड़ी राहत मिली, लेकिन उसके मन में अब भी कई सवाल थे। क्या एक बेटी गोद लेने से उसकी ज़िंदगी की खाली जगह भर जाएगी? क्या वह खुद को फिर से वही प्रेम, देखभाल और ममता दे पाएगी जो वह अपने बच्चों को देती है?

राजीव ने सुधा से कहा, “ठीक है, हम इसके बारे में और सोचेंगे। लेकिन यह फैसला आसान नहीं होगा। हमें कई कानूनी और व्यक्तिगत पहलुओं को समझना होगा।”

इसके बाद, सुधा ने एक बेटी गोद लेने के लिए प्रक्रियाओं को समझना शुरू किया। उन्होंने कई अनाथालयों से संपर्क किया और वहां की स्थिति का अवलोकन किया। धीरे-धीरे वह इस विचार में पूरी तरह से समाहित हो गई। उसे ऐसा लगा जैसे उसका जीवन अब एक नई दिशा में मोड़ लेने वाला था।

कुछ महीनों बाद, सुधा और राजीव ने एक छोटी सी लड़की को गोद लिया। उसका नाम था रिया। वह बहुत ही प्यारी और शरारती थी। सुधा के दिल को एक नई खुशी मिल चुकी थी। रिया के साथ वह दिन-रात मस्ती करती, उसे अपना प्यार देती और उसकी आँखों में वही चमक देखती, जो कभी अपने बच्चों की आँखों में देखा करती थी।

अब सुधा को अपनी ज़िंदगी में संतुलन और शांति महसूस हो रही थी। बच्चों ने रिया को बहन की तरह अपनाया और उसे अपने जीवन में स्वागत किया। यह बदलाव सिर्फ़ घर के अंदर नहीं, बल्कि बाहर भी दिखाई देने लगा। सुधा अब पहले से ज्यादा खुश थी, और उसका दिल संतुष्ट था।

सुधा ने सीखा कि कभी-कभी जीवन में बदलाव की ज़रूरत होती है, और यह बदलाव हमें अंदर से नई शक्ति और खुशी प्रदान करता है। उसकी बेचैनी दूर हो गई थी, क्योंकि अब उसकी ज़िंदगी में एक नई रंगीन पहचान थी—रिया, उसकी गोदी की बेटी।

सुधा का मानना था कि हर कोई अपने जीवन में खुश रहने के लिए किसी न किसी कारण की तलाश करता है, लेकिन कभी-कभी यह कारण हमारी आत्मा की गहरी ज़रूरतें होती हैं।

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