कामिनी का फैसला – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

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कामिनी का फैसला: पढ़ें एक प्रेरणादायक मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi), जिसमें संघर्ष, आत्मसम्मान और नई शुरुआत की बात की गई है।

कामिनी का फैसला – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)
कामिनी का फैसला – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

कामिनी दरवाजे के बाहर खड़ी थी, खूब सज-धज कर, जैसे किसी खास मौके पर बाहर निकलने वाली हो। उसके चेहरे पर चिंता और उम्मीद का मिला-जुला भाव था। ठंडी हवा उसके चेहरे को छूते हुए निकल रही थी, लेकिन वह पूरी तरह से अपने आस-पास की चीज़ों से बेखबर थी। उसकी आँखें सामने के रास्ते पर टिकी हुई थीं। तभी उसकी नज़र एक अधेड़ उम्र के आदमी पर पड़ी जो उसकी ओर बढ़ता हुआ आ रहा था। कामिनी का दिल थोड़ी देर के लिए धड़कने लगा। उसे लगा जैसे वह आदमी उसकी ओर आ रहा हो। लेकिन अचानक, उस आदमी ने उसकी बगल में खड़ी लड़की की ओर बढ़ते हुए उसे नजरअंदाज कर दिया। कामिनी थोड़ी चौंकी और सोचने लगी, ‘अब मेरी जवानी ढलने लगी है, शायद इसी वजह से लड़के मुझसे दूर रहने लगे हैं। आज भी मैं कुछ हासिल नहीं कर पाई। अब मैं दीदी को क्या जवाब दूंगी? यही हाल रहा तो एक दिन वे मुझे इस घर से निकाल बाहर कर देंगी।’

इन विचारों के साथ ही कामिनी पुरानी यादों में खो गई। वह याद करने लगी अपने बचपन को। कामिनी के माता-पिता गरीब थे। उसकी माँ दूसरों के घरों में बरतन धोकर अपने परिवार का गुजारा करती थी। वह खुद को और अपने परिवार को पालने के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत करती थी।

माता-पिता का सपना था कि कामिनी एक दिन पढ़-लिखकर कुछ बड़ा करे। वे चाहते थे कि उनकी बेटी भी समाज में एक नाम कमाए और उनका नाम रोशन करे। इसी कारण उन्होंने कामिनी को स्कूल भेजने का निश्चय किया। वे खुद भूखे रहकर उसे पढ़ाने की कोशिश करते थे।

कामिनी अपने माता-पिता की उम्मीदों को अपनी आँखों में संजोए हुए स्कूल जाती थी। उसकी मेहनत और लगन से उसकी पढ़ाई अच्छी चल रही थी। लेकिन यह खुशी ज्यादा दिनों तक टिक न पाई। एक दिन, जब स्कूल से छुट्टी हो गई थी, तो कामिनी घर वापस जाने के लिए आटोरिक्शा का इंतजार कर रही थी।

तभी अचानक एक कार उसके सामने आकर रुक गई। कार से एक अधेड़ आदमी बाहर निकला और कामिनी से पूछा, “बेटी, यहाँ क्यों खड़ी हो?”

कामिनी थोड़ी चौंकी और कहा, “मुझे घर जाना है, मैं आटोरिक्शा का इंतजार कर रही हूँ।”

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आदमी मुस्कराया और बोला, “बेटी, तुम्हारा घर कहाँ है?”

“देवनगर,” कामिनी ने जवाब दिया।

आदमी ने कुछ सोचा और फिर कहा, “मुझे भी देवनगर जाना है, क्यों न तुम हमारे साथ कार में बैठ जाओ?”

कामिनी को कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन फिर भी उसने सोचा कि इस आदमी का कोई बुरा इरादा नहीं हो सकता, और उसने उसकी बात मान ली। वह कार में बैठ गई। कार में दो और लोग बैठे थे, जिनकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। कामिनी ने कभी इन लोगों को देखा नहीं था, लेकिन उसे अब कुछ और ही ध्यान आ रहा था।

कार में बैठते ही उस आदमी ने कहा, “हमारा नाम सुभाष है। ये दोनों मेरे दोस्त हैं। हम सब देवनगर जा रहे हैं, तुम भी हमारे साथ आओ। रास्ते में हमें कुछ जरूरी बातें करनी हैं।”

कामिनी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लेकिन उसने अपनी चुप्पी बनाए रखी और कार में बैठी रही। कार धीरे-धीरे सड़कों पर दौड़ रही थी और कामिनी का मन कहीं न कहीं घबराया हुआ था।

कुछ देर बाद, सुभाष ने फिर से बात शुरू की, “तुम कितने बजे स्कूल जाती हो, कामिनी?”

कामिनी चुप रही, लेकिन फिर सुभाष के सवालों का जवाब देना पड़ा, “मैं सुबह 8 बजे स्कूल जाती हूं।”

सुभाष मुस्कराए और कहा, “बहुत अच्छा। तुम्हारे माता-पिता बहुत मेहनती हैं, पर तुम अपने भविष्य के बारे में क्या सोचती हो?”

कामिनी को लगा जैसे उसे किसी जाल में फंसाने की कोशिश की जा रही हो। वह कुछ नहीं बोली, लेकिन उसकी आँखों में सवाल था। वह सोच रही थी, ‘यह सब क्या हो रहा है? क्या मुझे इनसे बात करनी चाहिए? या फिर चुप रहना बेहतर है?’

इतने में कार रुक गई। सुभाष और उसके दोस्तों ने कामिनी से कहा, “हमारे साथ थोड़ा समय बिताओ, हम तुम्हारे लिए कुछ खास कर सकते हैं। तुम चाहो तो शहर में अच्छा काम शुरू कर सकती हो।”

कामिनी को अब पूरी तरह से समझ में आ गया कि यह सब कुछ ठीक नहीं था। उसने खुद को मजबूत किया और कहा, “मैं घर जा रही हूँ। मुझे कहीं नहीं रुकना है।”

उसकी आवाज में डर था, लेकिन वह अपनी स्थिति से बाहर निकलने के लिए दृढ़ थी। सुभाष और उसके दोस्त हंसी में झूम उठे, लेकिन कामिनी ने एक कड़ा फैसला लिया। वह कार से बाहर निकली और तेज़ कदमों से अपने घर की ओर चल पड़ी।

कामिनी के मन में बसी अपनी मेहनत, अपने माता-पिता का सपना और अपनी आत्मसम्मान को फिर से उसने महसूस किया। घर पहुंचते ही वह अपने दीदी से मिली और अपने दिल की बात की। दीदी ने भी उसे सहारा दिया और कहा, “तुम बिल्कुल सही कर रही हो। हमें अपनी पहचान खुद बनानी होती है।”

कामिनी के भीतर एक नई ऊर्जा आई। उसने फैसला किया कि अब वह सिर्फ अपनी मेहनत और आत्मनिर्भरता पर विश्वास करेगी। वह इस दुनिया को अपनी तरह से जीने के लिए तैयार थी। उसे अब किसी और के लिए नहीं, बल्कि खुद के लिए जीना था।

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