पढ़ें प्रेरणादायक कहानी (Motivational Story): आखिरी प्रयास, जो यह सिखाती है कि जीवन में सफलता पाने के लिए कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। जानें कैसे एक मूर्तिकार ने आखिरी प्रयास में अपनी कठिनाईयों को पार किया।

एक समय की बात है, एक छोटे से राज्य में एक प्रतापी राजा राज करता था। उसकी राज्य में शांति थी और लोग सुखी थे। राजा के दरबार में हर समय नई घटनाएं घटती रहती थीं, और दरबारियों का काम भी बहुत बढ़ा हुआ था। एक दिन, राजा के पास एक विदेशी आगंतुक आया और उसने राजा को एक सुंदर, चमकदार पत्थर उपहार में दिया। यह पत्थर बहुत दुर्लभ और कीमती था, जो किसी भी मूर्तिकार के लिए एक अनमोल खजाना हो सकता था। राजा बहुत खुश हुआ और उसने उस पत्थर से भगवान विष्णु की प्रतिमा बनाने का निर्णय लिया।
राजा ने अपने महामंत्री से कहा, “यह पत्थर भगवान विष्णु की प्रतिमा बनाने के लिए उपयोग करो और इसे मंदिर में स्थापित करो। साथ ही, जो भी इस कार्य को करेगा, उसे उचित पुरस्कार मिलेगा।”
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महामंत्री गाँव के सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकार के पास गया और उसे वह पत्थर सौंपते हुए बोला, “महाराज चाहते हैं कि इस पत्थर से भगवान विष्णु की एक सुंदर प्रतिमा बनाई जाए। इसके लिए आपको सात दिन का समय दिया गया है। कार्य पूरा होने पर आपको 50 स्वर्ण मुद्राएँ मिलेंगी।”
मूर्तिकार के लिए यह प्रस्ताव बहुत आकर्षक था। 50 स्वर्ण मुद्राएँ उसकी जिंदगी बदल सकती थीं। उसने उत्साह से काम शुरू करने का निर्णय लिया और पत्थर को अपने शिल्पकला के कौशल से आकार देने की योजना बनाई।
अगले दिन, मूर्तिकार अपने औज़ारों के साथ पत्थर के पास पहुँचा और उसे काम पर लग गया। पहले तो उसने अपना हथौड़ा उठाया और पत्थर पर जोर से वार किया, लेकिन पत्थर जस का तस रहा। उसने फिर कई वार किए, लेकिन पत्थर में कोई बदलाव नहीं आया। थक हार कर, मूर्तिकार ने सोचा कि शायद उसे और अधिक ताकत से वार करना चाहिए। वह कई घंटे तक लगातार पत्थर पर वार करता रहा, लेकिन परिणाम वही रहा। पत्थर बिल्कुल नहीं टूटा।
मूर्तिकार चिंतित हो गया। अब उसे लगने लगा था कि वह इस काम को पूरा नहीं कर पाएगा। सात दिन का समय बहुत कम था, और अगर वह काम में असफल होता, तो उसे वह 50 स्वर्ण मुद्राएँ भी नहीं मिलतीं। वह निराश हो गया, लेकिन उसने सोचा, “अगर मैं हार मान लेता हूँ, तो क्या होगा? क्या मैं हमेशा अपने जीवन में यह सवाल लेकर जी सकता हूँ कि मैंने आखिरी प्रयास क्यों नहीं किया?”
यह सोचकर उसने एक बार फिर से अपनी आँखें बंद कीं और पूरे मन से भगवान विष्णु का ध्यान किया। उसने सोचा, “यदि मुझे सच में यह कार्य पूरा करना है, तो मुझे किसी भी हालत में हार नहीं माननी चाहिए।”
इसके बाद उसने फिर से हथौड़ा उठाया, लेकिन इस बार उसकी सोच पूरी तरह बदल चुकी थी। उसने पूरी ताकत के बजाय धैर्य और विवेक से काम करना शुरू किया। उसने एक छोटे से निशान पर ध्यान केंद्रित किया और धीरे-धीरे पत्थर में उस निशान को उकेरना शुरू किया। समय बीतता गया, और मूर्तिकार ने अपने हाथों में उस पत्थर को निखारने के लिए कड़ी मेहनत की। उसने हर वार को सटीकता से किया और उसके हाथों से जो तराशे गए थे, वे बिल्कुल सुंदर और निराकार थे।
आखिरकार, सात दिन बाद, मूर्तिकार ने भगवान विष्णु की अद्भुत और शाही प्रतिमा पूरी की। वह पत्थर अब पहले जैसा न होकर, एक अद्वितीय मूर्तिरूप में परिवर्तित हो चुका था। मूर्तिकार ने भगवान विष्णु के चरणों में पूरी श्रद्धा से उसे स्थापित किया।
राजा और महामंत्री को जब उस प्रतिमा का दर्शन हुआ, तो वे दंग रह गए। यह प्रतिमा सचमुच अद्वितीय और सुंदर थी, जिसे देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो गया। राजा ने मूर्तिकार को 50 स्वर्ण मुद्राएँ प्रदान कीं और उसकी कड़ी मेहनत की सराहना की।
मूर्तिकार ने मुस्कुराते हुए कहा, “महाराज, यह सब मेरे आखिरी प्रयास का परिणाम है। पहले मैंने सोचा था कि पत्थर टूटने वाला नहीं है, लेकिन मैंने हार मानने के बजाय एक और प्रयास किया और भगवान का आशीर्वाद पाया।”
उस दिन से वह मूर्तिकार अपनी ज़िंदगी के सबसे बड़े सबक को जान चुका था: “हार मानने से पहले एक आखिरी प्रयास जरूर करना चाहिए, क्योंकि वही प्रयास हमें सफलता दिलाता है।”
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में कभी भी हार मानकर रुकना नहीं चाहिए। कठिनाइयाँ आएं, तो भी हमें अपने प्रयासों को निरंतर जारी रखना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी सफलता हमारे आखिरी प्रयास में छिपी होती है।