मेरी बस यात्रा की कहानी” एक दिलचस्प सफर है, जिसमें आपको मेरी बस यात्रा के यादगार पल और यात्रा के दौरान हुई मुलाकातों के बारे में जानने को मिलेगा।

मैं और मेरा भाई बस स्टेशन पर खड़े थे, अहमदाबाद जाने वाली बस का इंतजार कर रहे थे। हल्की ठंडक और शाम की हल्की धुंध के बीच स्टेशन का माहौल हमेशा की तरह हलचल से भरा था। लोगों की भीड़, चाय की दुकान से उठती भाप, टिकट खिड़की पर लगी लंबी लाइन और अनगिनत आवाज़ें – सब कुछ बड़ा परिचित-सा था।
उसी भीड़ में, अचानक मेरी नजर एक लड़के से टकराई। मानो कुछ सेकंड्स के लिए हमारी आंखें एक-दूसरे से बात करने लगीं। उसकी आंखों में एक अजीब-सी गहराई थी, जैसे कोई अनकही कहानी छुपी हो। मेरा दिल एक पल को तेज़ धड़क उठा, और फिर मैंने जल्दी से नजरें हटा लीं। यह क्या था? क्यों ऐसा लगा कि वक्त वहीं ठहर गया था?
जैसे-जैसे अहमदाबाद जाने वाली बस पास आती दिखी, मेरे मन में अजीब-सा ख्याल आया—अब वह चला जाएगा। शायद यही पहली और आखिरी बार था जब मैंने उसे देखा था। लेकिन तभी, वह अचानक बस की ओर दौड़ा। मेरी सांसें रुक-सी गईं।
पर वह चला नहीं गया।
बस के कंडक्टर से कुछ पूछने के बाद, वह लौट आया। शायद वह बस उसे वहाँ नहीं ले जा रही थी जहाँ उसे जाना था। मेरी नज़रें अनायास ही उसकी तरफ चली गईं, और मुझे खुद पर गुस्सा आया। मैं क्यों उसकी हर हरकत पर ध्यान दे रही थी?
तभी दूसरी बस आई। भाई ने मेरी कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “चलो, अहमदाबाद वाली बस आ गई।”
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मैंने लंबी सांस भरी और अपना बैग उठाया। मन में बस यही ख्याल था कि अंदर जाकर विंडो सीट मिल जाए, ताकि बस के सफर में बाहर का नज़ारा देखते हुए अपने ख्यालों में खोई रह सकूं। लेकिन जब मैं अंदर पहुँची, तो मेरे हाथ लगी उसकी ऑपोजिट सीट। मेरे चेहरे पर हल्की मायूसी छा गई।
थोड़ी देर बाद, वह और उसका दोस्तों का ग्रुप भी बस में बैठ गया। हंसी-मज़ाक, कहकहे और बातचीत की हल्की-फुल्की गूंज पूरे बस में फैल गई। लेकिन मेरी दुनिया सिर्फ उसकी तरफ केंद्रित थी। हर कुछ मिनटों में अनजाने में मेरी नज़रें उसकी ओर चली जातीं, और कभी-कभी मैं देखती कि वह भी मेरी तरफ देख रहा है।
क्या यह महज़ एक संयोग था?
बस अपनी रफ़्तार से हाईवे पर दौड़ रही थी। बाहर का नज़ारा तो खूबसूरत था, पर मेरे मन में उससे भी ज्यादा खूबसूरत सवाल उठ रहे थे। मैं उसकी हर छोटी-बड़ी हरकत को नोटिस कर रही थी—कभी वह अपने बाल ठीक करता, कभी दोस्तों से हंसकर बातें करता, तो कभी मोबाइल में कुछ देखने लगता।
कुछ घंटों बाद, रात गहरा गई। धीरे-धीरे सब यात्री सोने लगे। मैंने भी खिड़की से सिर टिकाया और आँखें बंद करने की कोशिश की, लेकिन नींद आँखों से कोसों दूर थी। तभी हल्की-सी सरसराहट हुई, मैंने देखा, उसने मेरी तरफ देखा और धीरे से मुस्कुराया।
दिल की धड़कनें फिर तेज़ हो गईं।
“आप अहमदाबाद ही जा रही हैं?” उसने हल्की आवाज़ में पूछा।
मैंने हड़बड़ाकर सिर हिलाया, “हाँ…”
“मैं भी। पहली बार जा रहा हूँ। दोस्त लोग ज़बरदस्ती घुमा रहे हैं।” उसने हंसते हुए कहा।
मैंने मुस्कुराकर सिर हिलाया, लेकिन कुछ कहा नहीं।
फिर थोड़ी देर तक हम चुप रहे। बीच-बीच में हम दोनों खिड़की से बाहर देखते, फिर एक-दूसरे की ओर। पर बात वहीं अटक गई थी।
कुछ देर बाद, मैंने हिम्मत जुटाकर कहा, “तो… अहमदाबाद में घूमने क्या-क्या प्लान है?”
“पता नहीं, दोस्त सब कुछ प्लान कर रहे हैं। पर हाँ, आपको कोई अच्छी जगह पता हो तो बताइए?”
मैंने तुरंत कुछ नाम बता दिए, और वह ध्यान से सुनता रहा। धीरे-धीरे हमारी बातों का सिलसिला बढ़ने लगा। सफर के बाकी घंटों में हमने इतने सारे विषयों पर बात कर ली कि वक्त का पता ही नहीं चला।
सुबह होने को थी।
बस अहमदाबाद पहुंचने ही वाली थी। हमारा सफर खत्म होने वाला था। मैंने सोचा, क्या ये मुलाकात बस यहीं तक थी? क्या इसके बाद हम फिर कभी नहीं मिलेंगे?
जैसे ही बस स्टेशन पर रुकी, मैं अपने बैग की चेन लगाने लगी। तभी उसने धीरे से कहा, “अगर कोई अच्छा कैफे सजेस्ट कर सकें, जहाँ हम सफर के बाद चाय पी सकें?”
मेरे होंठों पर अनायास ही मुस्कान आ गई।
“कैफे तो बहुत हैं, पर कौन-सा अच्छा लगेगा, ये साथ चलकर ही पता चलेगा।”
वह मुस्कुराया, और पहली बार उसकी आँखों में वही सवाल था, जो मेरे मन में था—क्या यह सफर वाकई यहीं खत्म हो रहा है? या एक नई शुरुआत होने वाली है?