शादी के बाद पहली रोमांटिक ठंडी रात में जब सास की आवाज़ ने मज़ा किरकिरा कर दिया! इस मजेदार कहानी को पढ़ें और हंसते-हंसते लोटपोट हो जाएं!

मेरी शादी अगस्त में हुई थी। अच्छा और संस्कारी परिवार मिला, साथ ही प्यार करने वाला पति भी। हमारी शादी को कुछ ही महीने हुए थे, और सच कहूं तो जिंदगी के ये दिन किसी सपने से कम नहीं थे।
मेरे पतिदेव तो इतने रोमांटिक कि मौका मिलते ही प्यार जताने लगते। उनका मानना था कि रिश्ते में मिठास बनी रहे तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। मुझे प्यार और विश्वास की गहराइयों का तो नहीं पता, लेकिन इतना जरूर समझ आ गया था कि रोमांटिक पति मिल जाए तो शादीशुदा जिंदगी मजेदार हो जाती है।
सितंबर का महीना था, बारिश हाल ही में थमी थी और हल्की ठंड पड़ने लगी थी। रात के करीब 11 बजे थे। हम दोनों छत पर बैठे चाय पी रहे थे। हल्की-हल्की ठंडी हवा चल रही थी और आसमान में चांद चमक रहा था। मौसम बेहद सुहाना था और मेरे पतिदेव का रोमांटिक मूड भी अपने चरम पर था।
उन्होंने धीरे से मेरा हाथ पकड़कर कहा, “आज तो मौसम भी हमारी तरह रोमांटिक हो गया है।”
मैं मुस्कुराई और बोली, “बिलकुल, लेकिन अब चलो, मम्मी-पापा नीचे हैं, देर हो गई तो शक हो जाएगा।”
“अरे, थोड़ा और बैठते हैं ना… कौन सा रोज़ ऐसा मौका मिलता है।”
उनकी बात में सचमुच सच्चाई थी। शादी के बाद रोमांस के लिए ज्यादा मौके नहीं मिलते, खासकर तब जब संयुक्त परिवार में रहना हो। मैंने भी हामी भर दी और हम थोड़ी देर और छत पर बैठकर बातें करने लगे।
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कुछ देर बाद, जब ठंड बढ़ने लगी, तो हम अपने कमरे में आ गए। धीरे-धीरे बातें बढ़ने लगीं और उन बातों ने कब रोमांस का रूप ले लिया, यह हमें भी पता नहीं चला।
हम दोनों एक-दूसरे में खोए हुए थे, तभी अचानक मम्मी जी की तेज आवाज आई, “बहू… कहाँ हो?”
हम दोनों के होश उड़ गए। मैं झट से उठी और जल्दी से दुपट्टा ओढ़कर बाहर निकली। मम्मी जी दरवाजे पर खड़ी थीं।
“बहू, वो छत पर कपड़े डाले थे, लग रहा है बारिश फिर शुरू हो रही है। ज़रा जाकर उतार दो।”
मेरे चेहरे पर हल्की हंसी आ गई, लेकिन मैंने उसे दबाया और सिर हिलाकर कहा, “जी मम्मी जी, अभी लाती हूँ।”
जब मैं छत पर गई, तो पतिदेव भी मेरे पीछे-पीछे आ गए और हम दोनों ने मिलकर कपड़े समेटे और वापस कमरे में आ गए। लेकिन हमारी हंसी रुक ही नहीं रही थी।
“अभी तो रोमांस शुरू ही हुआ था,” पतिदेव ने मुँह बनाते हुए कहा।
“तो क्या हुआ? शादीशुदा जिंदगी में रोमांस के साथ-साथ जिम्मेदारियां भी निभानी पड़ती हैं,” मैंने उन्हें चिढ़ाया।
“अच्छा? अब तुम मुझे सिखाओगी?” उन्होंने मेरी कमर में हाथ डालकर धीरे से खींचा।
“अरे-अरे… मम्मीजी फिर से बुला लेंगी!” मैंने शरारती अंदाज में कहा।
“अबकी बार मैं कह दूंगा कि कपड़े तो उतार लिए हैं!” उन्होंने मेरी आँखों में देखते हुए कहा।
मैं उनकी बात सुनकर एक पल के लिए सन्न रह गई, फिर जोर से हँसी छूट गई। मैंने तकिया उठाकर उनके ऊपर फेंकते हुए कहा, “हद है आपकी! कोई सुन लेगा तो?”
उन्होंने शरारती मुस्कान के साथ मेरी ओर देखा, “अरे, सुन ही लें तो क्या? आखिर पति-पत्नी हैं, कोई जुर्म थोड़ी कर रहे हैं!”
मैंने शर्माते हुए उनके सीने पर सिर रख दिया। बाहर ठंडी हवाएँ चल रही थीं, लेकिन कमरे के अंदर एक अलग ही गर्माहट थी। हमारी हंसी, हमारी बातें और हमारी बेपरवाह दुनिया—सब कुछ इतना खास था कि वक्त जैसे थम-सा गया था।
तभी अचानक दरवाजे पर फिर से दस्तक हुई। हम दोनों ने घबरा कर एक-दूसरे को देखा। मैं जल्दी से चादर ओढ़कर सीधी बैठ गई और उन्होंने अनमने से दरवाजा खोला।
“बेटा, रजाई कहां रखी है?” मम्मीजी दरवाजे पर खड़ी थीं।
पति देव ने मेरी ओर देखा और धीरे से फुसफुसाए, “अबकी बार सच में कह दूं?”
मैंने उनका हाथ पकड़ लिया और हँसी रोकने की कोशिश करने लगी।