गाँव की उस छोटी सी गली में एक कच्चा मकान था, जहाँ रहने वाली सुमन अपने सपनों को पूरा करने के लिए हर रोज़ संघर्ष करती थी। उसकी उम्र सिर्फ़ अठारह साल थी, लेकिन उसकी आँखों में बड़े-बड़े सपने थे। वह एक शिक्षिका बनना चाहती थी ताकि गाँव की और लड़कियों को पढ़ने का अवसर मिल सके।

लेकिन उसके सपनों की राह इतनी आसान नहीं थी। गाँव में लोग मानते थे कि लड़कियों को ज़्यादा पढ़ाने-लिखाने की ज़रूरत नहीं होती। उसके पिता, हरिप्रसाद, एक ईमानदार किसान थे, लेकिन उनकी आमदनी इतनी नहीं थी कि सुमन की पढ़ाई का खर्च उठा सकें। उनकी सोच भी कुछ हद तक गाँव के अन्य लोगों जैसी थी—”लड़कियों को ज़्यादा पढ़ाने से क्या फायदा? शादी के बाद तो उन्हें ससुराल ही जाना है।”
लेकिन सुमन हार मानने वालों में से नहीं थी। वह जानती थी कि अगर उसे अपनी तक़दीर बदलनी है, तो उसे खुद ही रास्ता बनाना होगा।
गाँव के सरकारी स्कूल में उसने दसवीं की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की थी, लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए उसे शहर जाना पड़ता। शहर जाना और वहाँ पढ़ाई करना उसके लिए नामुमकिन जैसा था।
“बिटिया, हम तेरा सपना समझते हैं, लेकिन हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं कि तुझे शहर भेज सकें,” उसकी माँ ने आँचल से आँसू पोंछते हुए कहा।
सुमन ने अपनी माँ का हाथ थाम लिया, “अम्मा, मैं कोई न कोई रास्ता निकाल लूँगी। बस आप मेरा साथ देना।”
गाँव के मुखिया का बेटा, रवि, जो शहर में पढ़ाई कर रहा था, गर्मी की छुट्टियों में गाँव आया हुआ था। सुमन और रवि बचपन के दोस्त थे। एक दिन जब रवि ने उसे उदास देखा तो कारण पूछा। सुमन ने अपने मन की बात उसे बता दी।
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रवि ने सोचा और फिर बोला, “तू सरकारी छात्रवृत्ति के लिए आवेदन क्यों नहीं करती? अगर तेरा चयन हो गया, तो पढ़ाई के सारे खर्च सरकार उठाएगी।”
सुमन को जैसे एक उम्मीद की किरण दिखी। उसने अगले ही दिन छात्रवृत्ति के लिए आवेदन कर दिया। लेकिन इसके लिए परीक्षा देनी थी, और परीक्षा देने के लिए उसे शहर जाना पड़ता।
गाँव में जब लोगों को यह पता चला कि सुमन शहर जाकर परीक्षा देने वाली है, तो कई लोग ताने देने लगे।
“लड़की जात को शहर भेजना ठीक नहीं है। यह सब नए ज़माने की बातें हमारे गाँव में नहीं चलेंगी,” कुछ बुजुर्गों ने कहा।
“क्या ज़रूरत है इतनी पढ़ाई की? आखिर में तो शादी ही करनी है,” पड़ोस की चाची बड़बड़ाई।
लेकिन इस बार सुमन की माँ ने अपनी बेटी का साथ दिया। उसने अपने पति से कहा, “हमारी बेटी कोई ग़लत काम नहीं कर रही। वह बस अपने सपनों को पूरा करना चाहती है। हम उसका साथ देंगे।”
माँ की यह बात सुनकर हरिप्रसाद चुप हो गए। उन्होंने पहली बार सुमन की आँखों में कुछ ऐसा देखा, जिसे वे समझ नहीं पा रहे थे—एक जिद, एक जुनून। आखिरकार, उन्होंने सुमन को शहर जाने की अनुमति दे दी।
सुमन पहली बार शहर गई थी। उसने छात्रवृत्ति की परीक्षा दी और पूरी मेहनत से लिखा। जब परिणाम आया, तो पूरे गाँव को उस पर गर्व हुआ—सुमन ने परीक्षा पास कर ली थी! उसे शहर के सबसे अच्छे कॉलेज में पढ़ाई करने का अवसर मिला।
गाँव के कई लोग अब भी उसके खिलाफ थे, लेकिन अब उसकी माँ और पिता उसके साथ खड़े थे। रवि ने भी उसका बहुत साथ दिया और उसे पढ़ाई के दौरान हर तरह की मदद की।
शहर में पढ़ाई करते हुए सुमन ने महसूस किया कि सिर्फ़ अपने लिए आगे बढ़ना ही काफी नहीं, बल्कि उसे अपने गाँव की दूसरी लड़कियों के लिए भी कुछ करना होगा। उसने ठान लिया कि वह गाँव लौटकर वहाँ एक स्कूल खोलेगी, जहाँ लड़कियाँ भी बेझिझक पढ़ सकें।
समय बीतता गया। सुमन ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली और एक शिक्षिका बन गई। अब वह गाँव लौटी, तो पहले की तरह कोई ताने नहीं देता था, बल्कि सब उसे सम्मान की नज़रों से देखते थे।
उसने गाँव में एक छोटा स्कूल खोला, जहाँ लड़कियों को मुफ्त में शिक्षा दी जाती थी। पहले तो कुछ ही लड़कियाँ आईं, लेकिन धीरे-धीरे उनके माता-पिता को समझ में आने लगा कि शिक्षा का महत्व क्या होता है।
आज गाँव की कई लड़कियाँ डॉक्टर, इंजीनियर और शिक्षक बनने के सपने देख रही थीं। सुमन की मेहनत रंग लाई थी।
संदेश और प्रेरणा
सुमन की कहानी यह सिखाती है कि सपने देखने का हक़ सबको है। रास्ते में मुश्किलें आएंगी, लेकिन अगर हिम्मत और लगन हो, तो कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती।
“हर बेटी में एक सुमन छिपी होती है, बस उसे उड़ान भरने का मौका चाहिए!”