मेरी शादी सर्दियों की एक ठंडी रात में हुई थी, 24 जनवरी, 2016 को। यह तारीख मेरे जीवन का सबसे खास दिन बनकर हमेशा याद रहेगी, क्योंकि इस दिन मेरे जीवन में एक नया अध्याय शुरू हुआ था।

शादी के सभी फंक्शन और रस्में बड़ी धूमधाम से हुई थीं। हर एक रस्म में हमारी पारिवारिक परंपराएं जीवित थीं और साथ ही उसमें प्यार और स्नेह की खुशबू बसी हुई थी। इस दिन के बाद, जैसा कि बिहार की परंपरा है, सुहागरात तुरंत नहीं होती। हमारे यहां पहले कंगन छुड़ाई की रस्म होती है, और उसके बाद ही पति-पत्नी एक-दूसरे के करीब आ सकते हैं। मुझे यह रस्म बहुत ही प्यारी लगती थी, क्योंकि यह मुझे मेरे माता-पिता से मिली एक अद्भुत सीख का हिस्सा लगती थी।
रात के वक्त, जब शादी के सभी कार्यक्रम खत्म हो चुके थे और घर में चहल-पहल थम चुकी थी, तब मेरे मायके से भेजा गया फर्नीचर और बेड हमारे कमरे में लगा दिया गया। उस कमरे में डेकोरेशन भी बहुत खूबसूरती से किया गया था। कमरे की दीवारों पर हल्के रंग की रोशनी झिलमिल कर रही थी, और एक डेलीसी गंध कमरे में फैली हुई थी, जैसे बासमती चावल और गुलाब की खुशबू दोनों साथ मिल गए हों। बेड पर एक बढ़िया Dunloop का गद्दा बिछाया गया था, जिसे देखकर मुझे एक अजीब सी संतुष्टि महसूस हुई। मेरा मन सोच रहा था, ‘यह रात बहुत खास होने वाली है।’
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शादी की रात में पहले ही हम दोनों का मन बेताबी से भरा हुआ था। यह रात हम दोनों के लिए बहुत मायने रखती थी, और एक नई शुरुआत का प्रतीक थी। लेकिन जैसे ही हम दोनों ने सोचा कि यह रात बहुत खास होगी, अचानक ही कुछ ऐसा हुआ जो हमें पूरी तरह से चौंका गया। रात के 10 बज चुके थे, और कमरे में सन्नाटा पसरा हुआ था। सब लोग सो चुके थे, और हम दोनों अकेले थे। मैं धीरे-धीरे अपने पति के पास आई, लेकिन तभी मुझे गद्दे से एक अजीब सी आवाज सुनाई दी – “चीबड़-चीबड़…”। मैं चौंकी और पति ने भी गौर से सुना। गद्दे पर जो प्लास्टिक कवर था, वह हटाया नहीं गया था, और हर हलचल के साथ आवाज कर रहा था।
हम दोनों हंसी में डूब गए, क्योंकि हमें यह लगा कि यह पूरी रात यूं ही चलेगा। पहले तो हमने सोचा कि शायद हम इस आवाज को नजरअंदाज कर देंगे और चुपचाप सो जाएंगे, क्योंकि आवाज घर के सन्नाटे में काफी जोर से बाहर जा रही थी। लेकिन धीरे-धीरे यह आवाज और तेज़ होती गई, और हमें लगा कि यह आवाज घर के दूसरे हिस्से तक पहुंच रही है। रात के करीब तीन बजे, हमने एक बड़ा फैसला लिया। हम दोनों ने सोचा, ‘अब तक तो सब सो चुके होंगे, अब हमें अपने पल की शुरुआत करनी चाहिए।’
जैसे ही हम दोनों एक दूसरे के करीब आने लगे, अचानक दरवाजे के बाहर से भाभी की आवाज आई, “सो जाइए अब, पूरी जिंदगी पड़ी है। बाहर तक सब सुनाई दे रहा है।” उनके इस बात ने तो हमें बुरी तरह झकझोर दिया। हम दोनों तुरंत रुक गए और कुछ देर के लिए चुप हो गए। हमारी सारी बेताबी एक पल में गायब हो गई, और मुझे शर्म से लाल हो जाना पड़ा। यह वह क्षण था जब मुझे समझ में आया कि यहां घर में किसी भी गतिविधि को छिपाना संभव नहीं था।
भाभी की बात सुनकर मेरी चेहरे की रंगत बदल गई, और मुझे इस बात का एहसास हुआ कि वह हमारी आवाजों को सुन रही थीं। मुझे ऐसा महसूस हुआ कि जैसे हमारे बीच का यह खास पल कुछ अलग तरीके से लीक हो गया हो, और मैं पूरी तरह से शर्मिंदा हो गई। वह रात बिना किसी खास पल के बीत गई, और हम दोनों उसी गद्दे पर लेटकर चुपचाप सो गए। वह आवाज और भाभी की मस्ती भरी टिप्पणी मेरे मन में हमेशा के लिए एक मीठी याद बनकर रह गई।
सुबह हुई, और मैं नींद से उठते हुए अपने कमरे से बाहर निकली। दरवाजे को खोलते ही भाभी मुस्कुराते हुए मेरे सामने खड़ी थीं। उनकी मुस्कान देखकर मुझे और भी ज्यादा झिझक महसूस हो रही थी, क्योंकि जिस वजह से वह मुस्कुरा रही थीं, वह तो हुआ ही नहीं था। भाभी ने हंसते हुए कहा, “बड़े काम का गद्दा लिया था न?” उनकी यह बात सुनकर मैं और भी शर्मिंदा हो गई, लेकिन भाभी की मुस्कान ने मुझे थोड़ा आराम भी दिया। मैंने उन्हें शरमाते हुए जवाब दिया, “हां, बहुत अच्छा था।”
अब जब भी मैं उस खास रात को याद करती हूं, तो मुझे उस गद्दे के चीबड़-चीबड़ की आवाज, भाभी की मुस्कान और उस रात का सन्नाटा याद आता है। मेरी शादी की यह रात हमेशा मुझे यह याद दिलाती है कि रिश्तों में सच्ची खुशी कभी-कभी छोटे-छोटे मजाकों और नटखट पलों में छिपी होती है।