रात के साढ़े बारह बजे थे, और कुमुदाजी अपने कमरे में सोने का प्रयास कर रही थीं। एक दिन भर के काम के बाद, नींद को लेकर हर पल संघर्ष करना उनके लिए आम हो गया था। लेकिन आज रात कुछ और ही था। अचानक, दरवाजे के बाहर से एक आवाज आई—दरवाजा खुलने की। कुमुदाजी ने उठकर उसी दिशा में देखा और देखा, उनके बेटे आकाश और बहू प्रिया अंदर की ओर आ रहे थे।

“ये क्या लगा रखा है तुम दोनों ने!” कुमुदाजी ने खीजते हुए कहा। उनका चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था, और आवाज में एक गहरी चिंता थी। “हर रोज देर रात को पार्टी में से लौटना! मैं बूढ़ी यहां सारा घर का काम करती रहती हूँ, और तुम! तुम्हारे बाबूजी को बाहर जाकर सब्जी दूध लाना पड़ता है। मैं कुछ कहती नहीं थी, कि हो जाता है कभी कभार। मगर तुम दोनों ने तो अति ही कर दी बेटा! थोड़ी तो शर्म करो तुम दोनों।”
आकाश ने पहले तो अपनी माँ को घूरकर देखा। उसकी आँखों में गुस्सा था, लेकिन कुछ कहने का साहस नहीं जुटा पाया। फिर उसने अपनी पत्नी प्रिया की ओर देखा, जिसका चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ लग रहा था। उसने देखा, प्रिया भी कुछ नहीं कह रही थी, पर उसकी आँखों में कुमुदाजी के आरोपों का जवाब छुपा हुआ था।
“सुबह बात करते हैं माँ!” आकाश ने झुंझलाते हुए कहा। उसकी आवाज में कुछ ऐसा था, जैसे वह अब और बहस नहीं करना चाहता था। उसने प्रिया की ओर देखा, और दोनों चुपचाप अपने कमरे में चले गए।
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कुमुदाजी कुछ देर तक खड़ी रही, दरवाजे की ओर देखती रही। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि उनके बेटे को क्या हो गया है। आकाश हमेशा ही ऐसा नहीं था। वह हमेशा से ही जिम्मेदार और परिवार के प्रति समर्पित था। लेकिन अब जो हो रहा था, वह समझ से परे था। उन्होंने अपने जीवन के इतने सालों में बहुत कुछ देखा था, पर आज जो वह देख रही थीं, वह बिल्कुल नया था।
“क्या हो गया है आकाश को?” कुमुदाजी ने मन ही मन सोचा। वह याद करने लगीं कि पहले आकाश कितना समझदार था, कैसे वह हमेशा अपनी माँ की मदद करता था, कैसे वह देर रात तक पढ़ाई करता था और फिर सुबह जल्दी उठकर घर के कामों में हाथ बटाता था। कुमुदाजी का मन भारी हो गया। क्या यह वही आकाश है, जिसे उन्होंने अपने खून पसीने से पाला था?
प्रियाजी भी तो पहले ऐसी नहीं थी। कुमुदाजी ने उसे अपनी बेटी की तरह अपनाया था। वह निहायत ही समझदार और संस्कारी थी। वह आकाश के साथ बहुत खुश रहती थी। फिर क्या कारण था कि अब वह भी बदल गई थी?
आकाश और प्रिया दोनों कमरे में जा चुके थे। कुमुदाजी धीरे-धीरे अपनी जगह पर बैठ गईं और उनकी आँखों में आंसू थे। उन्होंने अपने बेटे को इतना प्यार दिया था, इतने त्याग किए थे उसके लिए, लेकिन आज वह उनके शब्दों को सुनने तक के लिए तैयार नहीं था। कुमुदाजी सोचने लगीं कि क्या उनका बेटा अब उन्हें बोझ समझने लगा है? क्या वह अब उनका आदर नहीं करता?
अचानक कुमुदाजी के मन में एक विचार आया। “हो सकता है, उनके जीवन में कोई और समस्या हो।” उन्होंने अपनी आँखें पोंछी और खुद को तसल्ली दी। कुमुदाजी जानती थीं कि आकाश और प्रिया को अपने जीवन में कई परेशानियाँ आ रही होंगी। वह जानती थीं कि आजकल के युवा दवाब और तनाव में रहते हैं, खासकर जब उनके करियर और सामाजिक जीवन के बारे में विचार किया जाता है।
अगली सुबह, कुमुदाजी ने गहरी सोच में डूबे हुए अपने बेटे और बहू से बात करने का निर्णय लिया। वह चाहती थीं कि वह खुद से पूछे कि आकाश और प्रिया के बीच कोई असंतोष तो नहीं है। उन्होंने यह भी सोचा कि शायद उनका गुस्सा और नाराज़गी एक संकेत है, कुछ ज्यादा दबाव या चिंता का असर हो सकता है।
कुमुदाजी ने आकाश से सुबह नाश्ते के दौरान बात करने का मन बनाया। वह जानती थीं कि उनका बेटा भी अपनी माँ से बहुत प्यार करता है, लेकिन कभी-कभी वह अपनी भावनाओं को छुपा लेता है। कुमुदाजी ने धीरे से कहा, “बेटा, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।”
आकाश ने अपनी माँ की ओर देखा और फिर चुपचाप नाश्ता करने लगा। वह पहले तो कुछ नहीं बोला, लेकिन कुमुदाजी के धैर्य को देखकर वह आखिरकार बोला, “माँ, क्या बात है?”
कुमुदाजी ने आकाश की आँखों में देखा और कहा, “बेटा, मैं जानती हूँ कि तुम और प्रिया दोनों ही बहुत व्यस्त रहते हो। मैं समझती हूँ कि तुम्हें आराम और वक्त की कमी होती है, लेकिन तुम्हारी छोटी-सी बातों से भी मैं खुद को अकेला महसूस करती हूँ। तुम दोनों की तकलीफें मुझे बहुत परेशान करती हैं, और मुझे डर है कि तुम दोनों के रिश्ते में कुछ दूरियाँ आ रही हैं।”
आकाश ने थोड़ी देर के लिए सिर झुकाया और फिर धीरे से बोला, “माँ, हमें कोई परेशानी नहीं है। बस, काम का दबाव बहुत बढ़ गया है। प्रिया और मैं दोनों ही थक गए हैं, और रात में पार्टी का थोड़ा मजा लेते हैं। लेकिन मैं वादा करता हूँ कि हम दोनों ध्यान रखेंगे।”
कुमुदाजी ने आकाश को गले लगा लिया। उनके दिल में शांति थी, क्योंकि उन्होंने अपने बेटे से सच्चाई जान ली थी। उन्हें अब समझ में आ गया था कि आकाश और प्रिया के लिए जीवन में कुछ और दबाव थे। यह उनके लिए भी एक सीख था कि कभी-कभी परिवार में छोटी-छोटी बातें बड़ी बन जाती हैं, और कभी हम अपने परिवार के सबसे नजदीकी लोगों से दूर हो जाते हैं, लेकिन सच्चे प्यार और समझ से सारी बातें सुलझाई जा सकती हैं।
आज रात कुमुदाजी सोने से पहले यह सोच रही थीं कि अगर कभी उन्हें फिर से कोई परेशानी महसूस हो, तो वह अपनी बेटा बहू से सीधे तौर पर बात करेंगी। और यही समझ की शक्ति थी, जिसने उनके रिश्तों को फिर से मजबूत किया।