हमारा अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह जल्द ही हांगकांग की तरह एक आधुनिक शहर बनने जा रहा है। जी हां, भारत सरकार ने इसके लिए 75,000 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट लॉन्च कर दिया है। यह खबर सुनकर किसी भी भारतीय का गर्व से सीना चौड़ा हो जाएगा, पर मेरे मन में कुछ सवाल हैं।
हांगकांग का फाइनेंशियल हब बनना उसकी विशेषता है—वह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा फाइनेंशियल हब है, जहां अनगिनत बिजनेस और मल्टीनेशनल कंपनियों ने अपने मुख्यालय बनाए हैं। हांगकांग एक बेहद सुव्यवस्थित शहर है और एशिया का दूसरा सबसे बड़ा पर्यटन केंद्र भी है।
अब अगर बात करें अंडमान और निकोबार की, तो यह 836 द्वीपों का समूह है, जिसमें केवल 31 द्वीपों पर ही लोग रहते हैं, बाकी के 805 द्वीप घने जंगलों और वीरान गुफाओं से भरे हुए हैं। इन 31 द्वीपों पर भी रहने वाले अधिकतर लोग आदिवासी हैं, जिनमें से कुछ तो पूरी तरह से पारंपरिक जीवन जीते हैं। उदाहरण के लिए, सेंटिनल्स नामक एक जनजाति है, जिनका आज तक लगभग शून्य बाहरी संपर्क हुआ है। अगर कोई उनके क्षेत्र में जाने की कोशिश भी करता है, तो वे उस पर तीर-कमान से हमला कर देते हैं।
अब सवाल ये उठता है कि हमारे देश में 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं, फिर भी सरकार ने 75,000 करोड़ रुपये का यह विशाल प्रोजेक्ट अंडमान और निकोबार के लिए ही क्यों चुना? यह रकम तो अरुणाचल प्रदेश की जीडीपी के भी दोगुनी है। अंडमान और निकोबार में ऐसी क्या विशेषता है जो भारत ने इसे ही एक नए फाइनेंशियल हब के रूप में विकसित करने का फैसला लिया है?
यह भी ध्यान देने वाली बात है कि सरकार का यह प्लान सिर्फ विकसित क्षेत्रों के लिए नहीं है, बल्कि ‘लिटिल अंडमान’ नामक क्षेत्र के लिए है, जो अभी भी 90% घने जंगलों से घिरा हुआ है। ऐसे में सवाल यह है कि सरकार एक पूरी तरह से अनछुए क्षेत्र को स्क्रैच से विकसित क्यों करना चाहती है, जबकि अंडमान के अन्य क्षेत्रों को पहले और भी विकसित किया जा सकता था?
सरकार का लक्ष्य है कि वह इस क्षेत्र को हांगकांग जैसा फाइनेंशियल हब बनाए। परंतु, अंडमान और निकोबार की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा आदिवासी है, तो ऐसे में इस क्षेत्र में स्टार्टअप्स और मल्टीनेशनल कंपनियों की बुनियाद कौन रखेगा? इसके लिए हमें देश-विदेश से निवेशकों और उद्यमियों की आवश्यकता होगी, और उन उद्यमियों के पास पहले से ही न्यूयॉर्क, लंदन और टोक्यो जैसे विकल्प मौजूद हैं। ऐसे में ‘लिटिल अंडमान’ इन बड़े शहरों से कैसे मुकाबला करेगा? क्या अंडमान और निकोबार के पास कोई ऐसा अनूठा फायदा है जो दुनिया के किसी और शहर में नहीं है?
दरअसल, अगर सही तरीके से विकास किया जाए, तो यह क्षेत्र एक ऐसा सामरिक पोर्ट बन सकता है, जिसका फायदा पूरे एशियाई क्षेत्र को हो सकता है। गैलेथिया बे को एक रणनीतिक ट्रांसशिपमेंट हब के रूप में विकसित करने का विचार है। यह क्षेत्र वैश्विक व्यापार के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो सकता है, क्योंकि यहां से होकर लगभग 90% तेल व्यापार गुजरता है। अगर एक शिप चीन से ओमान जाने के रास्ते में इस पोर्ट पर रुकती है, तो आसपास के देशों का शिपमेंट यहीं उतर सकता है और फिर शिप सीधे ओमान के लिए रवाना हो सकती है। इससे शिपिंग लागत में लगभग 15% की कमी आ सकती है, जो कंपनियों के लिए प्रति दिन $30,000 तक की बचत का मौका है।
हालांकि, यह भी मानना होगा कि भारत ने इस मौके का पूरा लाभ अब तक नहीं उठाया है। गैलेथिया बे की रणनीतिक स्थिति का सही उपयोग अब तक नहीं हुआ है। लेकिन अगर इस प्रोजेक्ट को सही दिशा में ले जाया जाए, तो यह न सिर्फ भारत के लिए बल्कि पूरे एशियाई क्षेत्र के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है।
लेकिन, क्योंकि जोन वन में सबसे पहले एरो सिटी का निर्माण हो रहा है, इसे ध्यान में रखते हुए, यहां का लेआउट इस तरह से डिज़ाइन किया जाएगा कि एक तरफ इंटरनेशनल एयरपोर्ट बने और उसके आसपास ही पूरा फाइनेंशियल डिस्ट्रिक्ट तैयार हो। इस क्षेत्र में बैंकों और बड़े फाइनेंशियल संस्थानों के कार्यालय होंगे, जिससे बिजनेस के लिए पूंजी की आवश्यकता पूरी हो सकेगी।
लिटिल अंडमान का इलाका फिलहाल जंगलों से ढका हुआ है, लेकिन इसे एक प्लान सिटी बनाने की योजना है। यहां पर रेसिडेंशियल और फाइनेंशियल डिस्ट्रिक्ट को अलग-अलग जोन में बांटा जाएगा, और इसका डिजाइन दुबई के साउथ रेसिडेंशियल डिस्ट्रिक्ट से प्रेरित होगा। हालांकि, यह प्रोजेक्ट सफल हो भी जाए, तब भी एक बड़ी चुनौती है—यह आइलैंड भारत से लगभग 1400 किलोमीटर दूर स्थित है, जिससे किसी भी इमरजेंसी के दौरान मेनलैंड से चिकित्सा सेवाएं पहुंचाना बेहद मुश्किल होगा। इस वक्त पूरे अंडमान-निकोबार में केवल तीन सरकारी अस्पताल हैं जिनमें 1200 बेड्स की ही सुविधा है। ऐसे में, एक नया शहर बसाने के लिए वहां का स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा बहुत महत्वपूर्ण है।
इस समस्या को देखते हुए, इस प्रोजेक्ट में जोन वन में एक मेडिकल सिटी बनाने की योजना है, जैसा कि दुबई में 2002 में शेख मखतूम बिन रशीद अल मखतूम ने किया था। उन्होंने एक अस्पताल बनवाया और आसपास की जमीन को केवल चिकित्सा उपयोग के लिए रिजर्व कर दिया। दुबई ने इस क्षेत्र को टैक्स-फ्री जोन घोषित किया था, जिससे वहां के अस्पतालों पर टैक्स का भार नहीं पड़ा। इसी मॉडल को लिटिल अंडमान में भी अपनाने की कोशिश की जा रही है ताकि यह क्षेत्र चिकित्सा पर्यटन के लिए आकर्षक बन सके।
हालांकि, एक और चुनौती है—लिटिल अंडमान का कम पर्यटन। अंडमान की तुलना में मालदीव्स, सेशेल्स और थाईलैंड जैसे आइलैंड्स की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पर्यटन पर निर्भर है। इसलिए इस परियोजना के तहत इस क्षेत्र को भारत का अगला बड़ा पर्यटन केंद्र बनाने की योजना है। इसे तीन जोन में विकसित किया जा रहा है, जिसमें हर जोन का अलग फोकस होगा।
जोन वन में फाइनेंशियल हब के पास ही अल्ट्रा-लक्ज़री होटल्स बनाए जाएंगे। जोन टू में एडवेंचर और एंटरटेनमेंट पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए थीम पार्क्स का निर्माण होगा, जैसे यूएस के यूनिवर्सल स्टूडियोज और डिज्नीलैंड। यदि यह योजना सफल होती है, तो इससे अंडमान की अर्थव्यवस्था को काफी फायदा हो सकता है, जैसा कि हांगकांग में डिज्नीलैंड ने किया था। इसके अलावा, जोन टू में एक कैसीनो स्ट्रिप और एक नेशनल फिल्म एंड ड्रामा इंस्टीट्यूट बनाने का भी प्लान है, ताकि फिल्म निर्माण के लिए एक आकर्षक लोकेशन तैयार की जा सके।
इसके अलावा, लिटिल अंडमान के घने हरे-भरे जंगल और कोरल रीफ्स इसे उन पर्यटकों के लिए आकर्षक बनाते हैं जो प्रकृति की गोद में समय बिताना चाहते हैं। इसलिए, जोन तीन को एक नेचर एक्सक्लूसिव जोन बनाने की योजना है, जैसे हांगकांग के ड्रैगन बैक ट्रेल और टाइटन कंट्री पार्क।
हालांकि, इस परियोजना की आलोचना भी हो रही है। पर्यावरणविद इसे “इकोसाइड” यानी प्रकृति के खिलाफ मानते हैं, क्योंकि इसके लिए 24.4 लाख पेड़ काटने होंगे। इसके अलावा, जंगलों की कटाई से यहां के जानवरों का इकोसिस्टम भी प्रभावित होगा, विशेष रूप से विशालकाय लेदरबैक समुद्री कछुए, जो पहले से ही विलुप्त होने के कगार पर हैं।