क्या अजमेर दरगाह वास्तव में शिव मंदिर है? कोर्ट ने नोटिस जारी कर किया सवाल

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क्या अजमेर दरगाह वास्तव में शिव मंदिर है? कोर्ट ने नोटिस जारी कर किया सवाल

राजस्थान के अजमेर शहर में एक नया विवाद खड़ा हो गया है, जिसमें हिंदू सेना द्वारा दरगाह कमेटी और अन्य संबंधित पक्षों के खिलाफ एक याचिका दायर की गई है। इस याचिका में दावा किया गया है कि अजमेर की प्रसिद्ध ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह वास्तव में एक प्राचीन शिव मंदिर के ऊपर बनी है। अदालत ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए 27 नवंबर को संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया है, जिसमें अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, दरगाह कमेटी और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को समन किया गया है। यह मामला अब कानूनी रूप से अधिक जटिल होता जा रहा है, और इसके पीछे धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से कई पहलू हैं।

क्या अजमेर दरगाह वास्तव में शिव मंदिर है? कोर्ट ने नोटिस जारी कर किया सवाल
क्या अजमेर दरगाह वास्तव में शिव मंदिर है? कोर्ट ने नोटिस जारी कर किया सवाल

हिंदू सेना का दावा

हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने दरगाह में शिव मंदिर होने के तीन प्रमुख आधार बताए हैं। उनका कहना है कि ब्रिटिश काल में अजमेर नगर पालिका के कमिश्नर रहे हरबिलास सारदा ने 1911 में अपनी किताब में यह उल्लेख किया था कि दरगाह एक हिंदू मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। गुप्ता का दावा है कि इस पुस्तक के आधार पर ही वे यह मांग कर रहे हैं कि दरगाह का रजिस्ट्रेशन रद्द कर इसे ‘संकट मोचन महादेव मंदिर‘ घोषित किया जाए।

गुप्ता ने दूसरे आधार के रूप में दरगाह की वास्तुकला का हवाला दिया है। उनका कहना है कि दरगाह की संरचना और दीवारों पर बनी नक्काशी हिंदू मंदिरों से मेल खाती है। उन्होंने कहा कि जब वे इस जगह का निरीक्षण करने गए, तो पाया कि दरगाह वास्तव में एक हिंदू मंदिर के ऊपर बनाई गई है। तीसरे आधार के रूप में उन्होंने अजमेर के स्थानीय लोगों के बीच प्रचलित कथाओं का हवाला दिया, जिनके अनुसार यहां पहले एक शिवलिंग था और इस स्थान पर एक हिंदू मंदिर हुआ करता था।

दरगाह कमेटी और चिश्ती परिवार की प्रतिक्रिया

वहीं, अजमेर दरगाह के प्रमुख उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने इस याचिका को ‘सस्ती लोकप्रियता पाने का स्टंट’ करार दिया है। उनका कहना है कि इस तरह के दावे समाज को गलत दिशा में ले जा सकते हैं। चिश्ती ने कहा कि यह दावा एकतरफा और ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत है। वे कहते हैं, “जो किताब 1911 में लिखी गई थी, उसकी कोई विश्वसनीयता नहीं है। एक सदी पुरानी किताब के आधार पर 800 साल के इतिहास को नहीं झुठलाया जा सकता।

सैयद नसीरुद्दीन ने इस मुद्दे को राजनीतिक और सामाजिक शांति को बिगाड़ने की कोशिश बताया और कहा कि ऐसी याचिकाएं समाज में नफरत फैलाने का काम करती हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे इस मामले में कानूनी सलाह ले रहे हैं और जल्द ही अपना पक्ष रखने के लिए कोर्ट में पेश होंगे।

अदालत का नोटिस और आगे की कार्रवाई

अजमेर वेस्ट सिविल जज सीनियर डिवीजन मनमोहन चंदेल की अदालत ने हिंदू सेना की याचिका पर सुनवाई के बाद संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया है। दरगाह कमेटी को भी कोर्ट की तरफ से नोटिस मिला है, और अब अदालत में इसका समाधान निकाला जाएगा।

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के डिप्टी सेक्रेटरी मोहम्मद नदीम ने कहा कि उन्हें अभी तक कोर्ट का नोटिस प्राप्त नहीं हुआ है, लेकिन नोटिस मिलने के बाद वे इसे देखेंगे और कानूनी रूप से उचित कार्रवाई करेंगे।

हिंदू सेना और उनके प्रमुख विष्णु गुप्ता

विष्णु गुप्ता, जो 2011 में हिंदू सेना के संस्थापक रहे, पहले भी हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों पर अपनी टिप्पणी के लिए चर्चा में रहे हैं। पिछले साल उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह से मुसलमानों को अल्पसंख्यक दर्जा वापस लेने की मांग की थी। इसके अलावा, 2022 में उन्होंने पीएफआई (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) पर प्रतिबंध लगाने की भी मांग की थी। उनके और उनके संगठन के लिए यह याचिका भी एक तरह का सशक्त कदम प्रतीत होता है, जिसके माध्यम से वे हिंदू धर्म की रक्षा की बात कर रहे हैं।

संभावित प्रभाव और समाज पर प्रभाव

इस तरह के मामले समाज में संवेदनशीलता पैदा कर सकते हैं, खासकर जब यह धार्मिक स्थल से जुड़ा हो। एक ओर जहां गुप्ता और उनके संगठन इस मामले को एक ऐतिहासिक सत्य को सामने लाने की कोशिश मान रहे हैं, वहीं दूसरी ओर चिश्ती और उनके परिवार इसे भड़काऊ और असंवेदनशील मानते हैं।

राजनीतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से यह मुद्दा आगे बढ़ सकता है, क्योंकि दोनों पक्षों के पास अपने-अपने ऐतिहासिक तथ्यों और तर्क हैं। हालांकि, अदालत के फैसले के बाद ही यह स्पष्ट होगा कि इस विवाद का हल किस दिशा में जाएगा।

निष्कर्ष

अजमेर दरगाह में शिव मंदिर के दावे पर अदालत द्वारा नोटिस जारी करना एक महत्वपूर्ण कदम है, जो न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि कानूनी और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी बड़े परिणाम ला सकता है। फिलहाल यह मामला कोर्ट में लंबित है और इसके समाधान के लिए दोनों पक्षों को कानूनी प्रक्रिया से गुजरना होगा। सामाजिक समरसता और शांति के लिए यह जरूरी है कि इस प्रकार के विवादों को समझदारी और सहिष्णुता के साथ सुलझाया जाए।

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