डोनाल्ड ट्रंप का दूसरा कार्यकाल: उच्च कुशल आप्रवासियों भारतीयों के लिए चुनौती

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हालिया अमेरिकी चुनावों में भारतीय-अमेरिकी कांग्रेसी और डेमोक्रेट राजा कृष्णमूर्ति ने इलिनॉयस के 8वें कांग्रस क्षेत्र से पांचवीं बार जीत हासिल की, जिसमें शिकागो के पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी उपनगर शामिल हैं। यह जीत उनके राजनीतिक करियर के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई है। राजा कृष्णमूर्ति, जो कि हार्वर्ड लॉ स्कूल के स्नातक हैं, अमेरिकी राजनीति में अपनी गहरी छाप छोड़ चुके हैं। वे अब कांग्रेस में चुनिंदा समिति पर चीन और अमेरिका के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्धा की अध्यक्षता कर रहे हैं, जिससे वे पहली बार दक्षिण एशियाई अमेरिकी बने हैं, जिन्होंने किसी समिति की अध्यक्षता की है। इसके अलावा, वे खुफिया और निगरानी समितियों के वरिष्ठ सदस्य भी हैं।

डोनाल्ड ट्रंप का दूसरा कार्यकाल: उच्च कुशल आप्रवासियों भारतीयों के लिए चुनौती
डोनाल्ड ट्रंप का दूसरा कार्यकाल: उच्च कुशल आप्रवासियों भारतीयों के लिए चुनौती

डोनाल्ड ट्रंप का दूसरा कार्यकाल: उच्च कुशल आप्रवासियों भारतीयों के लिए चुनौती

राजा कृष्णमूर्ति ने ए. रघु रामन के साथ एक साक्षात्कार में कई मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त की, जिनमें कमला हैरिस की हार, डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के प्रभाव और भारतीय-अमेरिकी आप्रवासियों के लिए चुनौतियों का उल्लेख था। उनका मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप का दूसरा कार्यकाल भारतीय उच्च कुशल आप्रवासियों के लिए और भी अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

ट्रंप का पहला कार्यकाल: आप्रवासियों के लिए समस्याएं

राजा कृष्णमूर्ति का कहना है कि ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका में आप्रवासियों के लिए कई समस्याएं पैदा हुईं, खासकर भारतीयों के लिए। ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में कई नीतियाँ बनाई थीं जो भारतीयों समेत अन्य आप्रवासियों के लिए प्रतिकूल साबित हुईं। उनका यह मानना है कि ट्रंप ने इस देश में एक एंटी-इमिग्रेशन मानसिकता को बढ़ावा दिया, जिससे न केवल भारतीयों, बल्कि अन्य देशों से आने वाले उच्च कुशल और मेहनती कामकाजी लोगों के लिए भी चुनौतियाँ बढ़ीं।

राजा कृष्णमूर्ति कहते हैं, “हमारा देश उन लोगों से बना है जो यहां आकर अपने योगदान से अमेरिका को मजबूत बनाते हैं। ट्रंप का पहला कार्यकाल उन लोगों के लिए कई मुश्किलें लेकर आया जो इस देश के विकास में योगदान दे रहे हैं।” उनका कहना है कि यदि ट्रंप का दूसरा कार्यकाल भी इसी दिशा में आगे बढ़ता है, तो यह भारतीय उच्च कुशल आप्रवासियों के लिए और भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है। हालांकि, वे यह भी कहते हैं कि वे किसी भी पक्ष के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार हैं ताकि आप्रवासी प्रणाली में सुधार किया जा सके और उन लोगों के लिए अवसर प्रदान किए जा सकें जो इस देश में योगदान देना चाहते हैं।

अमेरिकी चुनाव में आर्थ‍िक स्थिति पर चिंताएं

राजा कृष्णमूर्ति ने कहा कि चुनावों में लोगों की चिंता मुख्य रूप से उनकी आर्थिक स्थिति को लेकर थी। “हमारे द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर लोगों की चिंता को पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया, जबकि स्थानीय स्तर पर हमने उन मुद्दों पर अधिक ध्यान दिया जो लोगों के रोज़मर्रा के जीवन से जुड़े थे।” उनका यह मानना है कि लोग सस्ती स्वास्थ्य देखभाल, गुणवत्ता वाली शिक्षा और एक अच्छा रोजगार चाहते हैं, ताकि वे एक मध्यवर्गीय जीवन शैली जी सकें। इन मुद्दों को चुनाव में ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई, जिससे चुनाव परिणाम प्रभावित हुए।

ट्रंप के बजट और रेटोरिक पर टिप्पणी

राजा कृष्णमूर्ति ने ट्रंप के दो ट्रिलियन डॉलर के बजट कटौती प्रस्ताव पर भी सवाल उठाए। उनका कहना है, “यह सिर्फ चुनावी रेटोरिक हो सकता है। यदि उनके पास अच्छे विचार हैं, तो उन्हें पेश करना चाहिए, और हम उन्हें विचार करेंगे। अगर यह महज रेटोरिक है, तो यह केवल चुनावी भाषणों के लिए अच्छा है, लेकिन शासन के लिए नहीं।” उनका मानना है कि सरकार को इस समय अच्छे विचारों की आवश्यकता है, न कि सिर्फ चुनावी भाषणों की।

अमेरिकी-भारत संबंधों का भविष्य

राजा कृष्णमूर्ति ने अमेरिकी-भारत संबंधों के बारे में भी चर्चा की और कहा कि पिछले एक दशक में इन संबंधों में काफी सुधार हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत-अमेरिका के बीच मजबूत होते हुए रिश्ते और भी मज़बूत होंगे। “पाँच मिलियन से अधिक भारतीय-अमेरिकी लोग इस संबंध को और अधिक मजबूत करेंगे। यह समूह अब आर्थिक रूप से समृद्ध और राजनीतिक रूप से सशक्त हो रहा है, और यह दोनों देशों को और करीब लाएगा,” उन्होंने कहा।

निष्कर्ष

राजा कृष्णमूर्ति के विचारों से यह स्पष्ट है कि डोनाल्ड ट्रंप का दूसरा कार्यकाल भारतीय उच्च कुशल आप्रवासियों के लिए कई चुनौतियाँ लेकर आ सकता है। हालांकि, वे इस प्रक्रिया में किसी भी पार्टी के साथ काम करने के लिए तैयार हैं ताकि आप्रवासी प्रणाली में सुधार हो सके और उन लोगों को एक बेहतर अवसर मिल सके जो अमेरिका में योगदान देना चाहते हैं। इसके अलावा, उन्होंने यह भी संकेत दिया कि भारतीय-अमेरिकी समुदाय और अमेरिका के बीच संबंधों में भविष्य में और भी प्रगति हो सकती है, खासकर जब भारत-अमेरिका के बीच व्यापार, राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंध मजबूत हो रहे हैं।

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