अख़बार वाले काका की यह प्रेरणादायक कहानी आपको ज़िंदगी में मेहनत, संघर्ष और उम्मीद की सच्ची सीख देगी। पढ़ें यह दिल छू लेने वाली हिंदी कहानी!

सुबह का सूरज हल्की सुनहरी किरणें बिखेर रहा था। सड़क पर सन्नाटा था, बस इक्का-दुक्का लोग मॉर्निंग वॉक पर निकले थे। चाय की दुकानों से उठती भाप और ताज़ा ब्रेड की खुशबू हवा में घुली थी। लेकिन इन सबके बीच, जो आवाज़ रोज़ की तरह गूंज रही थी, वह थी—
“अख़बार ले लो! ताज़ी ख़बरें, आज के ताज़ा समाचार!”
पचास पार कर चुके अख़बारवाले काका हर रोज़ इसी अंदाज़ में शहर की गलियों में घूमते थे। हाथ में ढेर सारे अख़बार, पीठ पर हल्का झुका शरीर, लेकिन आवाज़ में वही दम। उनके ग्राहक उन्हें प्यार से ‘काका’ बुलाते थे।
काका की इस रूट पर एक बहुत खास ग्राहक थी—शांता अम्मा। उम्र करीब 78 साल, सफेद बाल, हल्की झुकी हुई कमर और हमेशा माथे पर बड़ी लाल बिंदी। उनका घर गली के आखिरी छोर पर था, जहाँ तक पहुँचते-पहुँचते काका की सांसें भी तेज़ हो जातीं। लेकिन हर रोज़, बिना नागा, वे अख़बार लेकर वहाँ जाते।
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अम्मा हमेशा दरवाज़े पर उनका इंतज़ार करतीं। जैसे ही काका अख़बार लेकर पहुँचते, वह मुस्कुराकर कहतीं—
“आ गए काका? चलो, आज क्या नया है देश-दुनिया में?”
अम्मा की आँखों में अब भी वही जिज्ञासा थी, जो कभी उनके युवा दिनों में रही होगी। वह खुद पढ़ नहीं पाती थीं, तो हर दिन काका उन्हें अख़बार की खास सुर्खियाँ सुनाते। कभी चुनावी खबरें, कभी क्रिकेट स्कोर, कभी फिल्मी गपशप।
एक दिन काका ने हँसते हुए कहा, “अम्मा, आप तो हमसे भी ज्यादा खबरों में दिलचस्पी लेती हैं!”
अम्मा ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “बेटा, खबरों से ही तो लगता है कि दुनिया अब भी हमारी अपनी है। वरना बुढ़ापा इंसान को अकेला कर देता है।”
काका को यह बात छू गई।
गली के लोगों ने नोटिस किया कि काका उस दिन नहीं आए। शांता अम्मा दरवाजे पर बैठी रहीं, लेकिन कोई अख़बार लेकर नहीं आया। दोपहर हुई, शाम हुई, पर काका का कोई अता-पता नहीं।
अगले दिन मोहल्ले में खबर फैली—काका बीमार हैं, तेज़ बुखार में पड़े हैं।
यह सुनते ही अम्मा से रहा नहीं गया। किसी तरह अपने छड़ी के सहारे चलकर वह काका के घर पहुँचीं।
काका बिस्तर पर पड़े थे। आँखों में कमजोरी, लेकिन जैसे ही उन्होंने अम्मा को देखा, हल्की मुस्कान आ गई।
“अरे अम्मा! आप यहाँ?”
अम्मा ने धीरे से अख़बार उनके हाथ में रख दिया और कहा—
“आज की सुर्खियाँ पढ़कर सुनाओ, बेटा। सुना है, इस बार बारिश अच्छी होने वाली है।”
काका की आँखें भर आईं। आज पहली बार कोई उनके लिए आया था, वरना अब तक वह सिर्फ दूसरों तक खबरें पहुँचाने का ही काम करते थे।
उस दिन के बाद, अम्मा और काका का रिश्ता और भी गहरा हो गया। अब यह सिर्फ अख़बार पहुँचाने की डील नहीं थी, बल्कि दो अकेले लोगों का एक-दूसरे के लिए सहारा बनने की कहानी थी।
सुबह के अख़बार के साथ अब एक कप चाय भी जुड़ गई थी। अम्मा दरवाजे पर बैठी रहतीं, काका अख़बार सुनाते, और फिर दोनों दुनिया की बातें करते।
अख़बारवाला काका अब सिर्फ खबरें नहीं देता था, वह किसी की दुनिया का हिस्सा बन गया था।
(कहानी कैसी लगी? क्या आपके मोहल्ले में भी कोई ऐसा रिश्ता है जो सिर्फ देखने में आम लगे, लेकिन दिल में खास हो?) 😊