दादू और पोती की कहानी – यह प्रेरणादायक हिंदी कहानी एक दादा और उसकी पोती के अनमोल रिश्ते को दर्शाती है, जिसमें मासूमियत, प्यार और जीवन के रंगों की खूबसूरती झलकती है।

“उठो दादू उठो…”
मेरी पाँच साल की पोती ने उस दिन सुबह-सुबह मुझे जगा दिया। उसकी मासूम आवाज़ में वो मिठास थी, जो हर बुजुर्ग को सुकून देती है। आँखें मलते हुए मैंने पूछा,
“क्या हुआ बेटा?”
वो दोनों हाथ पीछे छुपाए हुए थी, मानो कोई अनमोल खजाना छुपा रखा हो। उसकी आँखों में शरारत और उत्सुकता की चमक थी।
“यह देखो दादू… मैं आपके लिए क्या लाई हूँ!”
“क्या है??” मैंने फिर से पूछा, अबकी बार थोड़ा उत्सुक होकर।
उसने बड़ी शान से एक मोड़ा हुआ ड्रॉइंग पेपर मेरे हाथ में थमा दिया।
“क्या है इसमें…??” मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए पूछा।
“अरे दादू… पहले खोलकर तो देखो!” उसने इस अदा से कहा, मानो वह मेरी पोती नहीं बल्कि मेरी दादी हो।
मैंने धीरे-धीरे कागज को खोला, और मेरी आँखों में आश्चर्य का सागर उमड़ पड़ा।
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कागज़ पर मेरी एक खूबसूरत तस्वीर बनी हुई थी। हालाँकि रेखाएँ टेढ़ी-मेढ़ी थीं, रंग भी कई जगहों पर बाहर फैल गए थे, लेकिन उस ड्रॉइंग में भावनाओं की गहराई थी। तस्वीर में मैं कुर्सी पर बैठा था और मेरी गोद में मेरी पोती थी। उसने नीचे लिखा था – “दादू मेरे सुपरहीरो हैं!”
मेरे चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान फैल गई। आँखों के कोनों में नमी आ गई थी, लेकिन उसे महसूस न कर पाने का दिखावा किया।
“यह तो बहुत ही सुंदर है बेटा!” मैंने उसे गोद में उठाते हुए कहा।
“दादू, मैंने यह अपने स्कूल की आर्ट प्रतियोगिता के लिए बनाया है, लेकिन यह आपको देने के लिए बचा कर रखा।”
“पर क्यों?”
“क्योंकि टीचर कहती हैं कि आर्ट वही होती है जो दिल से बनाई जाए, और मैंने यह दिल से आपके लिए बनाई है!”
मैंने उसकी मासूमियत से भरी आँखों में देखा और महसूस किया कि यह तस्वीर सिर्फ रंगों का मेल नहीं, बल्कि प्यार का इज़हार था।
उसकी इस प्यारी सी तस्वीर ने मुझे मेरे बचपन में पहुँचा दिया। मुझे याद आया, जब मैं छोटा था, तब मेरी माँ भी मुझे ऐसे ही सुबह-सुबह उठाती थीं। उनके हाथों में गरमागरम दूध का गिलास और चेहरे पर वो ममता भरी मुस्कान। तब मैं भी किसी चीज़ के लिए उतना ही उत्साहित होता था, जितनी मेरी पोती थी। समय का पहिया घूमता है, लेकिन भावनाएँ वैसी ही रहती हैं।
“दादू, आपको पता है, मम्मा ने कहा कि जब आप छोटे थे, तो आप भी बहुत शरारती थे!”
“अरे! ऐसा क्या?” मैंने हंसते हुए पूछा।
“हाँ, मम्मा कह रही थी कि आपने एक बार पूरी किताब पर रंग भर दिए थे!”
मुझे वो दिन याद आया जब मैंने अपने पिता की अकाउंटिंग बही में रंग-बिरंगे पेंसिल से चित्र बना दिए थे। तब मुझे बहुत डाँट पड़ी थी, लेकिन दादी ने मुझे बचा लिया था।
“तो क्या तुम भी मेरी किताबों में रंग भरोगी?” मैंने मज़ाक में पूछा।
“नहीं दादू! मैं सिर्फ आपकी ज़िंदगी में रंग भरूँगी!”
मैं अवाक रह गया। इतना गहरा जवाब!
“दादू, जब मैं बड़ी हो जाऊँगी, तो मैं आपको हर दिन एक नई पेंटिंग दूँगी!”
“अच्छा? और तुम बनोगी क्या?”
“मैं आर्टिस्ट बनूँगी!”
“बहुत बढ़िया! फिर तुम मेरी सारी पुरानी यादों को अपनी पेंटिंग्स में कैद कर देना!”
“हाँ, और मैं आपको कभी भी उदास नहीं होने दूँगी!”
मैंने महसूस किया कि मेरे जीवन की सबसे बड़ी पूँजी यही थी – मेरा परिवार, मेरी नन्ही पोती, जो मेरे हर दिन को खुशियों से रंग रही थी।
उस दिन मैंने तय किया कि अब से मैं अपनी ज़िंदगी को उसकी नज़रों से देखूँगा – उत्साह से, मासूमियत से, और प्यार से। हम बुज़ुर्ग अक्सर अपनी जिम्मेदारियों और अनुभवों के बोझ तले दब जाते हैं, लेकिन बच्चे हमें सिखाते हैं कि हर छोटी चीज़ में भी खुशी ढूँढी जा सकती है।
“दादू, आपको पता है, कल हमने स्कूल में ‘जीवन के रंग’ पर चर्चा की थी!”
“अच्छा? क्या सीखा तुमने?”
“टीचर ने कहा कि हमारी ज़िंदगी कई रंगों से भरी होती है – लाल खुशी का, नीला शांति का, हरा तरक्की का, और पीला उम्मीद का।”
“बहुत अच्छा समझाया!” मैंने सर हिलाते हुए कहा।
“तो दादू, आपका सबसे पसंदीदा रंग कौन सा है?”
मैंने उसकी ओर देखा और कहा, “मेरा पसंदीदा रंग वो है, जो तुमने इस तस्वीर में भरा है – प्यार का रंग!”
उसने मुझे कस कर गले लगा लिया।
उस दिन मैंने एक नया संकल्प लिया – अब से मैं हर दिन को पूरी तरह जिऊँगा, अपनी पोती के साथ, उसकी दुनिया में, उसकी नज़रों से। जीवन चाहे कितना भी कठिन क्यों न हो, बच्चों की मासूम हँसी उसमें मिठास घोल सकती है।
“दादू, अब उठो न! चलो नाश्ता करने!”
“हाँ, हाँ बेटा! बस अब से तुम्हारी दुनिया में हर सुबह का सूरज बनकर उठूँगा!”
हम दोनों हंसते हुए नाश्ते की टेबल की ओर बढ़ गए। मेरी पोती ने मुझे फिर से एक ज़रूरी सीख दे दी थी – ज़िंदगी को प्यार और रंगों से भरकर जीने की!