रब ने बना दी जोड़ी : मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

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कभी-कभी जिंदगी में ऐसे मोड़ आते हैं, जब हमें लगता है कि सबकुछ हमारी मर्जी के खिलाफ हो रहा है। लेकिन वही मोड़ हमारी किस्मत को एक नई दिशा देते हैं। यह कहानी भी ऐसी ही है—एक अनचाही शादी, मजबूरी के रिश्ते, और अंत में सच्चे प्यार का एहसास।

रब ने बना दी जोड़ी : मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)
रब ने बना दी जोड़ी : मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

मुझे अब भी वो दिन याद है, जब मेरी शादी एक साधारण से लड़के विवेक के साथ कर दी गई थी। यह शादी मेरी मर्जी के खिलाफ थी। विवेक का घर छोटा था और परिवार में बस उसकी माँ थीं। शादी के दौरान उसे बहुत सारे उपहार और नकद पैसे मिले, लेकिन मेरा दिल कहीं और था। मैं अपने कॉलेज के दोस्त आर्यन से प्यार करती थी, और वो भी मुझसे। पर किस्मत ने मुझे विवेक के साथ बांध दिया।

शादी की पहली रात, विवेक दूध का गिलास लेकर मेरे कमरे में आया। मैंने गुस्से और नाराजगी भरे स्वर में उससे पूछा,
“अगर कोई पति अपनी पत्नी की मर्जी के बिना उसे छुए, तो क्या उसे हक कहते हैं या बलात्कार?”

विवेक ने बेहद शांत स्वर में जवाब दिया,
“आपको इतना सोचने की जरूरत नहीं है। मैं सिर्फ शुभ रात्रि कहने आया हूँ।”

यह कहकर वो कमरे से बाहर चला गया। मुझे उसके इस व्यवहार पर हैरानी हुई। मैं सोच रही थी कि वह मुझसे झगड़ा करेगा और मैं इस रिश्ते से बाहर निकलने का रास्ता खोज लूंगी। लेकिन उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया।

मैंने ठान लिया था कि मैं इस रिश्ते में कोई दिलचस्पी नहीं लूंगी। घर के किसी काम में हाथ नहीं बंटाती थी। दिनभर ऑनलाइन रहती, दोस्तों से बातें करती और अपने पुराने प्यार आर्यन को याद करती।

इस बीच, विवेक की माँ घर का हर काम करतीं। वह बिना किसी शिकायत के अपने काम में लगी रहतीं और उनके चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान होती। उनकी सादगी और शांत स्वभाव मुझे कभी-कभी चुभते थे।

विवेक एक प्राइवेट कंपनी में साधारण नौकरी करता था। वह बेहद मेहनती और ईमानदार था। हमारी शादी को एक महीना बीत चुका था, लेकिन हमारे बीच पति-पत्नी जैसा कोई रिश्ता नहीं बना था।

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एक दिन, मैंने गुस्से में विवेक की माँ के बनाए खाने को बुरा-भला कहकर प्लेट फेंक दी। विवेक ने पहली बार मुझ पर गुस्सा किया और मेरे हाथ से प्लेट छीन ली। उसने कहा,
“माँ की मेहनत का इतना अपमान मत करो।”

यह पहली बार था जब उसने मेरे खिलाफ आवाज उठाई। मुझे यही चाहिए था—एक बहाना झगड़े का।

मैं पैर पटकते हुए घर से बाहर निकल गई और आर्यन से मिलने चली गई। आर्यन ने मुझसे कहा,
“तुम कब तक यूँ ससुराल में घुटती रहोगी? चलो, भाग चलते हैं।”

लेकिन उसके इस सुझाव पर मैं हिचकिचाई। सच्चाई यह थी कि आर्यन के पास ना कोई नौकरी थी और ना ही कोई ठिकाना। वह सिर्फ बातें करता था, जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं था।

कुछ दिनों बाद, मैं एक जरूरी कागजात लेने के लिए विवेक की अलमारी खोलने चली गई। वहाँ मैंने कुछ ऐसा देखा, जिसने मेरे दिल को झकझोर कर रख दिया। अलमारी में मेरी शादी के गहने, बैंक पासबुक, और एटीएम कार्ड रखे हुए थे। ये वही चीजें थीं, जिन्हें मेरे घरवालों ने शादी के बाद मुझसे छीन लिया था।

अलमारी में एक डायरी भी थी। उत्सुकतावश मैंने उसे खोला, तो उसके भीतर एक खत रखा हुआ था। खत में लिखा था:
“मुझे पता है, यह रिश्ता तुम्हारे लिए मजबूरी है। लेकिन मैं तुम्हें जबरदस्ती अपने साथ नहीं रखना चाहता। ये सब तुम्हारा है, और मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे मेरे प्यार और सादगी से समझो। मैं तुम्हें जबरदस्ती जीतने की कोशिश नहीं करूंगा, बल्कि तुम्हारे दिल को सम्मान के साथ पाना चाहता हूँ।”

उस खत को पढ़ते ही मेरी आँखों से आँसू छलक पड़े। विवेक, जिसे मैंने हमेशा साधारण और नासमझ समझा, उसने मेरी हर जरूरत और भावनाओं को इतनी गहराई से समझा था।

उस दिन मैंने खुद से सवाल किया—क्या मैं सही कर रही थी? विवेक ने मेरे साथ कभी कोई बुरा व्यवहार नहीं किया था। उसने मेरी हर चीज को संभालकर रखा और मेरी इज्जत की।

मैंने उस दिन पहली बार खुद को आईने में देखा। मैंने अपने व्यवहार पर गौर किया। मुझे एहसास हुआ कि जिस इंसान को मैं “गंवार” समझती थी, वह मुझसे कहीं ज्यादा समझदार और सम्मानजनक था।

अगली सुबह, मैंने अपनी माँग में सिंदूर को बड़े गर्व के साथ भरा और विवेक के ऑफिस चली गई। वहाँ पहुँचकर मैंने सबके सामने कहा,
“अब सबकुछ सही हो गया है। हम जल्दी ही एक लंबी छुट्टी पर जाने वाले हैं”

विवेक ने मुझे हैरानी से देखा, लेकिन उसकी आँखों में खुशी साफ झलक रही थी।

उस दिन मैंने पहली बार महसूस किया कि जिन फैसलों को मैं गलत समझ रही थी, वही मेरे जीवन के सबसे सही फैसले थे।

उस दिन मुझे एहसास हुआ कि जिन फैसलों को मैं गलत मानती थी, वही मेरी जिंदगी के सबसे सही फैसले थे। मेरे माता-पिता ने मेरे लिए जो भी किया, वो सिर्फ मेरे भले के लिए था।

यह कहानी एक साधारण रिश्ते की है, जिसे प्यार, सादगी, और समझदारी ने खास बनाया। कभी-कभी जिंदगी के अनचाहे फैसले हमारे लिए सबसे सही साबित हो सकते हैं।

विवेक के साथ बिताए इन दिनों ने मुझे सिखाया कि रिश्ते जबरदस्ती नहीं बनाए जाते, बल्कि प्यार, सम्मान और सादगी से सींचे जाते हैं। मेरे माता-पिता ने मेरे लिए जो भी किया, वह मेरे भले के लिए ही था।

आज मैं विवेक के साथ एक खुशहाल जीवन जी रही हूँ, और हर दिन उनके प्यार और समझदारी को महसूस करती हूँ।

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