प्यार का हलवा – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

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घर के दरवाजे पर कदम रखते ही आठ साल का छोटा बेटा दौड़ता हुआ आया और चिल्लाया, “पापा! माँ की अंगुली कट गई आज। बहुत खून निकला था।”

प्यार का हलवा - मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)
प्यार का हलवा – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

 

सुनते ही रमेश का दिल धक से रह गया। मन में एक अनजानी घबराहट घर कर गई। वह तुरंत रसोई की ओर भागा। देखा, उसकी पत्नी प्रिया चूल्हे पर रोटियाँ सेंकने में व्यस्त थी। माथे पर पसीने की बूंदें, लेकिन चेहरे पर वही परिचित मुस्कान।

 

रमेश ने एक पल को राहत की साँस ली, लेकिन पत्नी की मुस्कान में छिपा दर्द साफ झलक रहा था। उसने अपने गीले जूते उतारे, जल्दी से कपड़े खूंटी पर टाँगे और हाथ-मुँह धोते हुए पूछा, “क्या हुआ हाथ को?”

 

प्रिया मुस्कुराई और बोली, “नया चाकू था, सब्जी काटते वक्त अंगूठा कट गया। ज्यादा कुछ नहीं।”

 

रमेश ने ध्यान से देखा तो उसके दाहिने हाथ के अंगूठे पर सफेद पट्टी बंधी हुई थी। पट्टी पर हल्का-सा खून सूखा हुआ दिख रहा था। प्रिया की मासूम मुस्कान और उसकी यह हालत रमेश से देखी नहीं जा रही थी।

 

झुंझलाते हुए रमेश ने कहा, “और फिर भी तुम रसोई में लगी हुई हो? क्या मैं खाना नहीं बना सकता था?”

 

प्रिया हल्की-सी हँसी के साथ बोली, “तुम भी तो सारा दिन थककर आते हो, दूसरों की झूठी प्लेटें उठाते हुए, मालिक की बिना बात की डाँट सुनते हुए। इस पर अगर मैं भी तुम्हें काम करवाऊँ, तो कैसे चलेगा? मुझे अच्छा नहीं लगता।”

 

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रमेश ने खीझकर कहा, “कमाल करती हो तुम! ये गाँव नहीं है, यहाँ तो औरतें पैर तक दबवाती हैं, और तुम हो कि मुझे रसोई में आने भी नहीं देती!”

 

प्रिया ने गीले हाथों से आँचल पोंछते हुए कहा, “रसोई का काम मुझे सुकून देता है। और जब तुम मेरे हाथ की बनी रोटियाँ खाते हो न, तो जो संतोष मुझे मिलता है, वो कहीं और नहीं मिलता।”

 

रमेश चुप हो गया। प्रिया के शब्द हमेशा उसके दिल को छू जाते थे। लेकिन आज का दिन कुछ अलग था। वह मन ही मन ठान चुका था कि अब और नहीं।

 

रात का खाना खाते समय रमेश ने कहा, “कल से तुम आराम करोगी। रसोई का काम मैं सँभालूँगा।”

 

प्रिया ने हैरानी से उसकी ओर देखा, “तुम और रसोई? मजाक मत करो।”

 

रमेश ने गंभीरता से कहा, “मैं मजाक नहीं कर रहा। जब तक तुम्हारा हाथ ठीक नहीं होता, मैं खाना बनाऊँगा। और हाँ, तुम्हें कुछ भी नहीं करना है।”

 

प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा, “ठीक है, फिर कल सुबह का नाश्ता तुम बनाना। देखते हैं तुम्हारा हुनर।”

 

अगले दिन सुबह, रमेश जल्दी उठ गया। उसने अपने फोन पर ‘आसान नाश्ता रेसिपी’ सर्च किया। सोचा, कुछ हलवा बना लेता हूँ। आसान भी है और प्रिया को मीठा भी पसंद है।

 

रसोई में घुसते ही उसे लगा, यह काम इतना आसान नहीं। चावल का डिब्बा ढूँढते हुए आटे का डिब्बा गिरा दिया। चीनी निकालने के चक्कर में मसाले गिरा दिए। लेकिन रमेश हार मानने वालों में से नहीं था।

 

करीब एक घंटे की मेहनत के बाद उसने हलवा तैयार कर लिया। भले ही वह हलवा थोड़ा ज्यादा मीठा हो गया था, लेकिन रमेश की मेहनत उसमें झलक रही थी।

 

नाश्ते की थाली लेकर जब रमेश प्रिया के पास पहुँचा, तो उसकी आँखों में खुशी और हैरानी दोनों थीं। उसने हलवे का पहला निवाला खाया और मुस्कुराकर कहा, “बहुत स्वादिष्ट है!”

 

रमेश ने राहत की साँस ली और बोला, “सच में?”

 

प्रिया ने हल्के से कहा, “हाँ, हलवा स्वादिष्ट है। लेकिन रसोई का हाल देखने लायक होगा।”

 

रमेश ने झेंपते हुए कहा, “वो तो… थोड़ा फैल गया। लेकिन तुम परेशान मत होना, मैं साफ कर दूँगा।”

 

उस दिन रमेश ने समझा कि रसोई का काम करना आसान नहीं होता। प्रिया की मेहनत और उसके त्याग का उसे असली एहसास हुआ।

 

कुछ दिनों तक रमेश ही खाना बनाता रहा। धीरे-धीरे उसने सीखा कि कैसे खाना बनाना और घर के काम करना भी एक तरह का प्यार जताने का तरीका है।

 

जब प्रिया का हाथ पूरी तरह ठीक हो गया, तो उसने रसोई में वापसी की। लेकिन अब रमेश अक्सर उसका साथ देता। कभी सब्जी काटने में, तो कभी चाय बनाने में।

 

उनके बीच का रिश्ता पहले से और गहरा हो गया। अब यह सिर्फ पति-पत्नी का रिश्ता नहीं था, बल्कि दो दोस्तों का भी था, जो एक-दूसरे की हर परेशानी में साथ खड़े रहते थे।

 

और उस हलवे की बात करें तो, वह दोनों की जिंदगी की मिठास का प्रतीक बन गया। एक ऐसा हलवा, जिसने उन्हें सिखाया कि प्यार सिर्फ शब्दों में नहीं, बल्कि छोटे-छोटे कामों में छिपा होता है।

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