पिता का खूबसूरत जवाब – एक प्रेरणादायक कहानी (Motivational Story In Hindi)

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गर्मियों की एक शाम थी, सूरज धीरे-धीरे पश्चिम की ओर ढल रहा था। हवा में हल्की ठंडक थी, लेकिन मन में कई सवालों की गर्मी थी। 18 वर्षीय सीमा अपने कॉलेज से घर लौटी थी। उसके मन में आज एक अलग ही उधेड़बुन चल रही थी।

पिता का खूबसूरत जवाब – एक प्रेरणादायक कहानी (Motivational Story In Hindi)
पिता का खूबसूरत जवाब – एक प्रेरणादायक कहानी (Motivational Story In Hindi)

कॉलेज में दिनभर चर्चा चली थी—“हमें अपने हिसाब से जीने का हक़ है!”
कुछ सहेलियाँ कह रही थीं कि लड़कियों को अपनी मर्ज़ी से कपड़े पहनने, घूमने-फिरने और फैसले लेने का पूरा हक़ होना चाहिए। उन्होंने कहा, “समाज और परिवार की बंदिशें हमें रोकती हैं। अगर हमें स्वतंत्र रहना है, तो हमें अपनी मर्ज़ी से जीना आना चाहिए।”

सीमा भी इस चर्चा का हिस्सा थी। उसकी सोच में सवालों का तूफ़ान उठ रहा था। “क्या सच में हमारे माता-पिता हमारी आज़ादी छीन रहे हैं?”

वह घर पहुँची, लेकिन मन बेचैन था। उसने देखा कि उसके पिता राजेश जी गहरी सोच में थे। वह हमेशा की तरह अखबार पढ़ रहे थे, लेकिन उनकी आँखों में अनुभव की रोशनी झलक रही थी।

सीमा ने हिम्मत जुटाकर कहा, “पापा, मैं आपसे कुछ पूछना चाहती हूँ।”

राजेश जी ने अख़बार नीचे रखा और बोले, “बिल्कुल बेटा, पूछो।”

“पापा, क्या मैं अपनी मर्ज़ी से नहीं जी सकती?”

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सीमा ने सीधे सवाल किया, “पापा, आज कॉलेज में हमने सीखा कि हमें अपने तरीके से जीने का पूरा हक़ है। हम लड़कियाँ क्यों हमेशा सीमाओं में बंधी रहती हैं? मुझे लगता है कि मुझे भी पूरी आज़ादी होनी चाहिए कि मैं क्या पहनूँ, कहाँ जाऊँ और किससे मिलूँ।”

पिता मुस्कुराए, लेकिन उनकी आँखों में हल्की चिंता उभर आई। उन्होंने बिना कोई प्रतिक्रिया दिए पास रखी मोमबत्ती जलाई और बेटी को पास बुलाया।

“बेटा, अपना हाथ इस मोमबत्ती की लौ पर रखो,” उन्होंने शांत स्वर में कहा।

सीमा घबरा गई, “पापा, इससे तो जलन होगी!”

राजेश जी बोले, “बिल्कुल सही, लेकिन मैं चाहता हूँ कि तुम इसे बस एक सेकंड के लिए सहन करो।”

सीमा ने डरते-डरते अपनी हथेली लौ के पास ले जानी चाही, लेकिन जलन के डर से तुरंत हटा ली।

“नहीं पापा, यह असहनीय है!” उसने झट से हाथ पीछे कर लिया।

पिता मुस्कुराए और बोले, “बेटा, जितने हिस्से पर तुम नर्क की आग सहन कर सको, उतना हिस्सा खुला छोड़ दो।”

“ऐसा क्यों, पापा?”

सीमा हतप्रभ रह गई। उसने प्रश्न भरी आँखों से पिता को देखा।

पिता ने गहरी सांस ली और बोले –

“बेटा, दुनिया दिखने में बहुत रंगीन है, लेकिन यह हर किसी के लिए सुरक्षित नहीं है। एक लड़की के लिए सम्मान सबसे कीमती गहना होता है। यह समाज भले ही आधुनिक होने की बातें करे, लेकिन यहाँ अब भी ऐसे लोग हैं जो तुम्हारी मासूमियत को अपनी चालाकी से छलने का प्रयास करेंगे।”

सीमा अब भी चुप थी। उसके मन में कई सवाल उमड़-घुमड़ रहे थे।

पिता ने आगे कहा –
“बेटा, हम तुम्हारी खुशियों के खिलाफ नहीं हैं। हम तुम्हें रोकना नहीं चाहते, लेकिन हमें चिंता है कि कहीं तुम अपनी आज़ादी के नाम पर अपने सबसे अनमोल गहने—अपने आत्म-सम्मान और सुरक्षा—को दाँव पर न लगा दो।”

“आजादी का सही मतलब क्या है?”

सीमा ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, “लेकिन पापा, हर इंसान को अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जीने का हक़ है। अगर कोई लड़की छोटे कपड़े पहनना चाहती है, या देर रात बाहर रहना चाहती है, तो इसमें गलत क्या है?”

राजेश जी मुस्कुराए और बोले, “बिल्कुल सही कहा बेटा, लेकिन क्या हर इंसान की सोच एक जैसी होती है? तुम्हें लगता है कि पूरा समाज एक समान सोचता है? क्या सभी लोग महिलाओं की आज़ादी को सही नजरिए से देखेंगे?”

सीमा चुप रही।

“बेटा, मैं तुम्हें किसी चीज़ से रोक नहीं रहा, मैं बस यह कह रहा हूँ कि अपनी ज़िंदगी के फैसले ऐसे लो कि वे तुम्हारी सुरक्षा और सम्मान को बनाए रखें। तुम वही करो जिससे तुम्हें गर्व महसूस हो, न कि भविष्य में पछताना पड़े।”

सीमा की आँखों में सवाल था। उसने धीमे स्वर में कहा, “तो क्या मुझे हमेशा डरकर जीना होगा?”

राजेश जी ने उसकी तरफ देखा और प्यार से उसका हाथ थामा।

“बिल्कुल नहीं बेटा! हमें कभी भी डरकर नहीं जीना चाहिए, लेकिन हमें समझदारी से जीना चाहिए। आज़ादी का अर्थ यह नहीं कि हम अपने संस्कार भूल जाएँ। सही मायनों में आज़ादी का अर्थ है कि हम अपने जीवन में ऐसे फैसले लें, जो हमें सम्मान और खुशी दोनों दें।”

सीमा अब पूरी तरह से सोच में पड़ गई थी। उसने अपने पिता की ओर देखा और कहा, “तो हमें क्या करना चाहिए?”

राजेश जी बोले, “बेटा, दुनिया में हर चीज़ संतुलन से चलती है। अगर हम तेज़ धूप में जाते हैं, तो छतरी लेकर चलते हैं। अगर बारिश होती है, तो छाता या रेनकोट पहनते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि हमें बारिश या धूप से डर लगता है, बल्कि हम बस सावधानी बरतते हैं।”

सीमा ने समझते हुए सिर हिलाया।

राजेश जी ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा –

“बुद्धिमान बनो, सतर्क रहो। तुम्हारी आज़ादी तुम्हारे संस्कारों और आत्म-सम्मान के साथ होनी चाहिए। जब तुम खुद को सुरक्षित और आत्मनिर्भर बना लोगी, तब तुम्हें किसी से डरने की जरूरत नहीं होगी। बस यह याद रखना कि तुम्हारे हर फैसले का एक परिणाम होता है। अपने फैसले ऐसे लो, जिन पर तुम्हें जीवनभर गर्व हो।”

सीमा अब सब समझ चुकी थी। उसने अपने पिता के शब्दों को दिल से स्वीकार किया। वह समझ गई कि असली सुंदरता बाहरी नहीं, बल्कि हमारे विचारों में होती है।

उसने निश्चय किया कि वह समाज में खुद को मजबूत बनाएगी, लेकिन बिना अपने मूल्यों और आत्म-सम्मान को खोए।

उस रात उसने अपनी डायरी में लिखा –

“आज मुझे पापा से एक सबक मिला – असली आज़ादी वही है, जिसमें हम खुद का सम्मान करें और खुद को सुरक्षित रखें।”


सीख:

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में निर्णय लेने से पहले हमें उनके परिणामों पर भी विचार करना चाहिए। असली आज़ादी वह है जिसमें हम अपने आत्म-सम्मान और मूल्यों की रक्षा कर सकें।

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