नई सुबह, नई शुरुआत – पढ़ें एक प्रेरणादायक कहानी जो आपके जीवन में नई ऊर्जा और उत्साह भर देगी। जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए यह कहानी जरूर पढ़ें।

सविता जी की चाय की चुस्कियों के बीच घर का माहौल गहमागहमी से भरा था। हर तरफ खुशी और उत्साह का माहौल था, आखिर घर में शादी जो थी। उनके छोटे बेटे अंकुर की शादी तय हो गई थी, और अब एक नया सवाल खड़ा हो गया था—अंकुर और उसकी नई नवेली दुल्हन श्वेता को कौन सा कमरा दिया जाए? सविता जी ने अपने बड़े बेटे अरुण से कहा, ‘‘अंकुर की शादी के बाद कौन सा कमरा उन्हें दिया जाए, सभी कमरे तो मेहमानों से भरे हैं। बस एक ऊपर वाला कमरा खाली है।’’
अरुण ने तुरंत जवाब दिया, ‘‘अरे मां, इसमें इतना क्या सोचना? हमारा कमरा न्यूलीवैड के लिए परफेक्ट रहेगा। हम ऊपर वाले कमरे में शिफ्ट हो जाएंगे।’’ अरुण का ये जवाब जितना सीधा था, उतना ही माला के दिल में तूफान खड़ा कर गया।
पास बैठी माला ने मन ही मन सोचा, ‘अभी हमारी शादी को मुश्किल से 15 दिन हुए हैं, और अब हमारा कमरा हमें छोड़ना पड़ेगा? ये कमरा तो हमारे नए जीवन की शुरुआत की यादों से भरा है। क्या अरुण को एक बार भी मेरी राय लेने की जरूरत नहीं महसूस हुई? अब श्वेता और अंकुर इसमें रहेंगे, और हमारे लिए ऊपर का कमरा?’
माला का मन कहीं न कहीं दुखी था। शादी के बाद का उनका यह कमरा उनके लिए खास था, लेकिन अरुण के त्यागपूर्ण स्वभाव ने बिना माला से पूछे ही फैसला सुना दिया।
इस चर्चा के बीच ताईजी ने चाय का कप रखते हुए हल्के से मुस्कुराकर कहा, ‘‘अरुण, तुम अपना कमरा क्यों छोड़ रहे हो? ऊपर वाला कमरा भी अच्छा-खासा है। लड़कियां उसे सजाकर सुंदर बना देंगी। और हां, अपनी दुल्हन से भी तो पूछ लो। क्या वह अपना सुहागकक्ष छोड़ने के लिए तैयार है?’’ ताईजी की मुस्कान के पीछे अनुभव और समझ की झलक थी।
मगर अरुण तो अपने आदर्शवादी स्वभाव के चलते तुरंत बोला, ‘‘अरे ताईजी, इसमें पूछने वाली क्या बात है? हमें खुशी होनी चाहिए कि अंकुर और श्वेता हमारी जगह पर रहेंगे।’’
अरुण के इस जवाब ने माला को और चुप कर दिया। उसने सोचा, ‘क्या मेरी भावनाओं का कोई मोल नहीं? क्या यह कमरा सिर्फ चार दीवारें हैं, जिसमें हमारी कोई यादें नहीं बसीं? शादी के बाद यही जगह तो मेरी अपनी थी। अब इसे छोड़कर ऊपर जाने की बात भी बिना मुझसे पूछे तय कर ली गई।’
माला का चेहरा भले शांत था, लेकिन उसका मन असंतोष से भरा हुआ था। सविता जी और ताईजी ने माला के चेहरे के भाव भांप लिए थे, मगर कुछ नहीं बोलीं।
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उधर, लड़कियां ऊपर वाले कमरे को सजाने में लग गईं। फूल, रोशनी और नए पर्दों से कमरा कुछ ही देर में चमक उठा। माला ने भी इस तैयारी में हाथ बंटाया, लेकिन उसके मन में खलिश बनी रही।
कमरा सजते-सजते श्वेता और अंकुर के लिए तैयार हो गया। नीचे अरुण और माला के कमरे को लेकर भी चर्चाएं जारी थीं। ताईजी ने एक बार फिर माला के पास जाकर धीरे से कहा, ‘‘बेटा, मन में कोई बात हो तो बोलना चाहिए। हर रिश्ते में संवाद सबसे जरूरी है।’’
रात को जब सब सोने गए, अरुण ने माला को उदास देखा। उसने पूछा, ‘‘क्या हुआ? तुम कुछ परेशान लग रही हो।’’
माला ने हल्की झुंझलाहट के साथ कहा, ‘‘कुछ नहीं। बस ये सोच रही हूं कि हमारे कमरे का फैसला तो तुमने अकेले ही कर लिया। कभी सोचा, ये कमरा मेरे लिए कितना खास है?’’
अरुण थोड़ा झेंपते हुए बोला, ‘‘माला, मुझे लगा, तुम्हें फर्क नहीं पड़ेगा। मैं तो बस अंकुर और श्वेता के आराम के बारे में सोच रहा था।’’
माला ने कहा, ‘‘अरुण, ये कमरा मेरे लिए सिर्फ एक जगह नहीं है। ये हमारी नई जिंदगी की शुरुआत की यादों से जुड़ा है। मुझे कोई ऐतराज नहीं अगर ऊपर वाले कमरे में जाना पड़े, लेकिन क्या मेरी राय जानना जरूरी नहीं था?’’
अरुण को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने माला का हाथ पकड़ा और कहा, ‘‘सॉरी, माला। मुझे सच में ये बात समझनी चाहिए थी। कल सुबह सबसे पहले मां और ताईजी से बात करेंगे। हम कोई और समाधान निकाल लेंगे।’’
अगली सुबह अरुण ने माला के साथ बैठकर सविता जी और ताईजी से बात की। उसने कहा, ‘‘मां, ताईजी, हम सबकी भावनाएं मायने रखती हैं। ऊपर का कमरा भी बहुत अच्छा है। हम उसे और सुंदर बना सकते हैं। न्यूलीवैड के लिए वही सही रहेगा। माला के लिए ये कमरा खास है, और ये उसकी जगह है।’’
सविता जी ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘बिल्कुल सही बात है। भावनाओं का ख्याल रखना जरूरी है। अब इस घर में हर रिश्ता और मजबूत हो जाएगा।’’
आखिरकार, माला और अरुण का कमरा उनके पास ही रहा, और ऊपर वाला कमरा अंकुर और श्वेता के लिए सजाया गया। यह पूरा किस्सा माला और अरुण के रिश्ते को और गहरा कर गया। माला ने महसूस किया कि संवाद हर रिश्ते का आधार है, और अरुण ने सीखा कि किसी भी फैसले में साथ की राय लेना कितना जरूरी है।
घर में हर तरफ खुशी थी, और अंकुर की शादी का जश्न अब और भी यादगार बन गया। हर रिश्ता एक नई चमक के साथ खिल उठा।