भारत और कनाडा के बीच चल रहे कूटनीतिक तनाव ने अब आर्थिक मोर्चे पर भी चुनौती पैदा कर दी है। खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद से दोनों देशों के संबंध बिगड़ते जा रहे हैं।
हालात इतने बिगड़ गए हैं कि दोनों देशों ने अपने राजनयिकों को वापस बुला लिया है और कुछ को निष्कासित भी कर दिया गया है। इसका सीधा असर दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों पर पड़ रहा है, जिससे कनाडा को भारी नुकसान का खतरा मंडरा रहा है।
1. भारत-कनाडा व्यापार पर संकट के बादल
भारत और कनाडा के बीच सालाना लगभग 70 हजार करोड़ रुपये का व्यापार होता है। हालांकि अभी तक इस विवाद का व्यापार पर सीधा असर देखने को नहीं मिला है, लेकिन अगर तनाव और बढ़ता है तो यह निश्चित रूप से दोनों देशों के आर्थिक संबंधों के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। इस समय भारत और कनाडा के बीच होने वाले द्विपक्षीय व्यापार में निरंतर वृद्धि देखने को मिल रही थी, लेकिन अब इस वृद्धि पर विराम लग सकता है।
2. कनाडा की अर्थव्यवस्था पर संकट
कनाडा की लगभग 600 कंपनियां भारत में व्यापार कर रही हैं, जिनमें से कई का निवेश भारतीय बाजारों में है। इन कंपनियों में कनाडा के पेंशन फंड्स का बड़ा हिस्सा भी शामिल है। GTRI की एक रिपोर्ट के अनुसार, कनाडा के पेंशन फंड्स ने भारत में करीब 6 लाख करोड़ रुपये का निवेश कर रखा है। अगर भारत और कनाडा के संबंधों में और खटास आती है, तो कनाडा की इन कंपनियों और उनके पेंशन फंड्स को बड़ा झटका लग सकता है।
3. भारतीय कंपनियों के लिए अवसर, कनाडा के लिए खतरा
जहां कनाडा की कंपनियों के लिए भारत में व्यापार करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, वहीं भारतीय कंपनियों को इस स्थिति में लाभ मिल सकता है। कनाडा के बाजार में भारतीय कंपनियों की मौजूदगी भी अहम है, जिनका निवेश करीब 40 हजार 446 करोड़ रुपये है। ये कंपनियां कनाडा में 17,000 से अधिक लोगों को रोजगार देती हैं। अगर भारत-कनाडा संबंध बिगड़ते हैं, तो भारतीय कंपनियां अपने निवेश के नए अवसर तलाश सकती हैं, जबकि कनाडाई कंपनियों के लिए भारतीय बाजार में बने रहना मुश्किल हो सकता है।
4. कनाडा पेंशन फंड्स का निवेश फंस सकता है
कनाडाई पेंशन फंड्स ने भारत के रियल एस्टेट, फाइनेंशियल सर्विसेज, और इंडस्ट्रियल ट्रांसपोर्टेशन जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निवेश किया है। 2013 से 2023 के बीच, इन पेंशन फंड्स ने रियल एस्टेट में लगभग 3.8 अरब कनाडाई डॉलर, फाइनेंशियल सर्विसेज में 3 अरब कनाडाई डॉलर, और इंडस्ट्रियल ट्रांसपोर्टेशन में 2.6 अरब कनाडाई डॉलर से अधिक का निवेश किया है। यह निवेश अगर फंसता है, तो कनाडा के पेंशनर्स पर इसका सीधा असर पड़ेगा।
5. भारत में कनाडाई निवेश की स्थिति पर असर
हालांकि, कनाडा के पेंशन फंड्स ने भारत में बड़ी मात्रा में निवेश किया है, लेकिन भारत-कनाडा विवाद के बाद यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या ये फंड्स भारत से अपनी पूंजी निकालने का फैसला करेंगे? बीते एक साल में कनाडाई फंड्स ने भारतीय शेयर बाजार में अपनी हिस्सेदारी कुछ कम की है, लेकिन अब तक वे पूरी तरह से बाहर नहीं निकले हैं। अगर कूटनीतिक तनाव और बढ़ता है, तो कनाडा को अपने निवेश में कमी करनी पड़ सकती है, जिससे उसे भारी आर्थिक नुकसान होगा।
6. कनाडा के लिए बढ़ती मुश्किलें
ट्रूडो सरकार की गलत नीतियों ने कनाडा को एक मुश्किल स्थिति में डाल दिया है। खालिस्तानी मुद्दे पर उनके रुख ने भारत जैसे महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार को नाराज कर दिया है। कनाडा के लिए सबसे बड़ा नुकसान यह है कि वह भारत के विशाल बाजार से खुद को दूर कर रहा है। भारत की आर्थिक शक्ति और बाजार की संभावना को नकार कर, कनाडा ने अपने ही व्यापारिक अवसरों पर कुठाराघात किया है।
7. भारत से आयात और निर्यात पर असर
भारत से कनाडा को मुख्य रूप से रत्न, ज्वेलरी, फार्मास्युटिकल उत्पाद, रेडीमेड कपड़े और ऑर्गेनिक कैमिकल्स का निर्यात होता है, जबकि कनाडा से भारत में लकड़ी, पोटाश, आयरन स्क्रैप, और इंडस्ट्रियल केमिकल्स का आयात होता है। अगर दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ता है, तो दोनों के लिए आयात और निर्यात में कठिनाई आएगी, लेकिन भारत के पास अन्य देशों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित करने के कई विकल्प हैं, जबकि कनाडा के लिए भारतीय बाजार की कमी पूरी करना कठिन होगा।
8. कनाडाई कंपनियों के लिए खतरा
कनाडा की 600 कंपनियां जो भारत में काम कर रही हैं, उन्हें इस विवाद के चलते व्यापार में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। भारतीय बाजार में काम करने वाली कनाडाई कंपनियों को निवेश पर वापसी और व्यापार में कमी का खतरा बढ़ता जा रहा है। इन कंपनियों का भविष्य अब काफी हद तक भारत-कनाडा के बीच संबंधों पर निर्भर करेगा।
निष्कर्ष: कनाडा के लिए खुद के ही फैसलों से मुश्किलें
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने जिस तरह से भारत के खिलाफ अपना रुख अपनाया है, उससे अब कनाडा को ही नुकसान उठाना पड़ रहा है। भारत के साथ रिश्तों में खटास से कनाडा को व्यापारिक, आर्थिक और कूटनीतिक मोर्चे पर नुकसान उठाना पड़ सकता है। कनाडा की 600 कंपनियों का भारत में भविष्य अब खतरे में है, और कनाडाई पेंशन फंड्स को भारी आर्थिक झटके का सामना करना पड़ सकता है। इस विवाद से उभरने के लिए कनाडा को अपनी नीतियों में बदलाव करना होगा, वरना यह विवाद उसकी आर्थिक स्थिति को और कमजोर कर सकता है।
भारत के साथ विवाद में उलझकर, कनाडा ने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया है। अब यह देखना होगा कि ट्रूडो सरकार इस नुकसान से उबरने के लिए क्या कदम उठाती है। लेकिन एक बात तो साफ है, भारत के खिलाफ उठाया गया यह कदम कनाडा को भारी पड़ रहा है।