बेटियां – उम्मीदों की नई किरण : मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

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पढ़ें प्रेरणादायक कहानी ‘बेटियाँ: उम्मीदों की नई किरण’ और जानें कैसे बेटियाँ परिवार और समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं।

बेटियां - उम्मीदों की नई किरण : मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)
बेटियां – उम्मीदों की नई किरण : मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

सुनीता अपनी प्लेट में दो अलग-अलग आइसक्रीम के स्वाद का आनंद ले रही थी, जब उसने अपने देवर विनोद को छेड़ते हुए कहा,
“अरे देवर जी, तीसरी बेटी के जन्म पर भी पार्टी! अब तो दहेज के खर्चे के बारे में सोचना शुरू कर दीजिए।”

विनोद, जो अपने परिवार और खुशियों को लेकर हमेशा सकारात्मक रहता था, ने हंसते हुए जवाब दिया,
“अरे भाभी! आप क्यों चिंता करती हैं? घर में खुशी आई है तो सबके साथ बांट लिया। और फिर, बेटियां तो अपना भाग्य लेकर आती हैं।”

सुनीता ने अपने देवर की बात सुनकर मुस्कुराते हुए कहा, “ठीक है, लेकिन देखना, ये जिम्मेदारी भारी पड़ेगी।”
विनोद ने हंसते हुए कहा, “जिम्मेदारी का क्या डर, जब साथ में खुशियां भी हैं।”

हालांकि, सुनीता के मन में गहरी खुशी थी। विनोद के घर तीसरी बेटी प्रीति का जन्म हुआ था, लेकिन अपने दो बेटों के कारण सुनीता को हमेशा गर्व महसूस होता था। उसे लगता था कि बेटों के होने से ही घर की शान बढ़ती है।

दो-तीन दिन में सारे मेहमान विदा हो गए। अब घर में सिर्फ विनोद, उसकी पत्नी रुचि और उनकी तीनों बेटियां – मानवी, अंकिता और छोटी प्रीति रह गए थे। घर का माहौल बदल गया था। जहां पहले बच्चों की शरारतों और हंसी-खुशी से घर गूंजता था, वहीं अब तीनों बच्चियों की किलकारियां सुनाई देने लगीं।

 

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सुनीता को ये सब अच्छा लगता था लेकिन कहीं न कहीं उसे लगता था कि बेटियां परिवार के लिए बोझ होती हैं। एक दिन उसने रुचि से कहा,
“रुचि, अब तीसरी बेटी हो गई है, तो देखो कैसे संभालोगी। दहेज का खर्चा सोचकर ही मेरा सिर घूमने लगता है।”

रुचि मुस्कुराते हुए बोली,
“भाभी, मैंने और विनोद ने हमेशा सोचा है कि हम अपनी बेटियों को इतना सक्षम बनाएंगे कि उन्हें किसी दहेज की जरूरत ही न पड़े।”

समय बीतता गया। प्रीति बड़ी होने लगी। मानवी और अंकिता भी अपनी पढ़ाई में अच्छी थीं। विनोद ने अपनी बेटियों को हर तरह की शिक्षा देने की ठानी। उसने अपनी बेटियों को सिर्फ पढ़ाई में ही नहीं, बल्कि खेल-कूद और अन्य गतिविधियों में भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।

एक दिन जब विनोद अपनी बेटियों को स्कूल छोड़ने जा रहा था, तब मोहल्ले के एक बुजुर्ग ने चुटकी लेते हुए कहा,
“विनोद बेटा, इतना पैसा बेटियों पर खर्च कर रहे हो, बेटों का भी सोचो।”

विनोद ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया,
“चाचा जी, बेटियां ही मेरा भविष्य हैं। इन्हें सक्षम बनाना मेरी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।”

एक दिन सुनीता अपने बड़े बेटे राहुल के स्कूल के प्रोग्राम में गई। वहां उसने देखा कि विनोद की बेटी मानवी ने अपनी डांस परफॉर्मेंस से सभी का दिल जीत लिया। प्रिंसिपल ने उसे मंच पर बुलाकर सम्मानित किया। सुनीता गर्व महसूस कर रही थी, लेकिन उसके मन में सवाल उठा –
“क्या मैं गलत सोचती थी? क्या बेटियां भी परिवार का नाम रोशन कर सकती हैं?”

थोड़े समय बाद, अंकिता ने विज्ञान में राज्य स्तर की प्रतियोगिता जीती। जब उसकी तस्वीर अखबार में छपी, तो सुनीता ने उसे पढ़कर विनोद से कहा,
“तुम्हारी बेटियां तो कमाल कर रही हैं। सच में, उन्हें देखकर गर्व होता है।”

प्रीति अब सात साल की हो गई थी। उसने एक दिन अपनी चाची सुनीता से कहा,
“चाची, जब मैं बड़ी हो जाऊंगी, तो डॉक्टर बनूंगी। मैं हर किसी का इलाज करूंगी।”

सुनीता ने उसे गले लगाते हुए कहा,
“तुम्हारे सपने जरूर पूरे होंगे, प्रीति।”

उस दिन से सुनीता का नजरिया बदलने लगा। उसे एहसास हुआ कि बेटियां परिवार की शान हो सकती हैं, अगर उन्हें सही मौका और परवरिश मिले।

कुछ सालों बाद, विनोद की बड़ी बेटी मानवी ने इंजीनियरिंग में टॉप किया। अंकिता ने नेशनल लेवल पर विज्ञान में पुरस्कार जीता, और प्रीति डॉक्टर बनने की पढ़ाई कर रही थी। सुनीता, जो कभी बेटियों को बोझ समझती थी, अब गर्व से कहती थी,
“विनोद की बेटियों ने तो घर का नाम रोशन कर दिया। सच में, बेटियां अनमोल होती हैं।”

विनोद मुस्कुराते हुए बोला,
“भाभी, मैंने पहले ही कहा था – बेटियां अपनी किस्मत खुद लेकर आती हैं।”

यह कहानी हमें सिखाती है कि बेटियां किसी से कम नहीं। उन्हें बराबर का अधिकार और अवसर देकर, हम उनके सपनों को पंख दे सकते हैं।

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