बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना एक बार फिर सुर्खियों में हैं। चार महीने पहले छात्रों के हिंसक विरोध-प्रदर्शनों के बाद जब उन्होंने सत्ता छोड़ी थी, तब उनके राजनीतिक करियर पर सवाल खड़े हुए थे। लेकिन अब न्यूयॉर्क और लंदन जैसे मंचों पर उनकी सक्रियता ने नए सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या शेख़ हसीना फिर से राजनीति में लौटने की कोशिश कर रही हैं, या यह उनकी पार्टी अवामी लीग की एक रणनीतिक चाल है?

राजनीतिक पृष्ठभूमि और शेख़ हसीना का नया रूप
शेख़ हसीना ने हाल ही में न्यूयॉर्क में अपनी पार्टी के एक कार्यक्रम में ऑनलाइन हिस्सा लिया। उनकी यह उपस्थिति केवल औपचारिक नहीं थी, बल्कि उन्होंने राजनीतिक बयान भी दिए। हसीना ने दावा किया कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा है और उनकी और उनकी बहन शेख़ रेहाना की हत्या की साजिश रची गई थी। अवामी लीग के संगठन सचिव ख़ालिद महमूद चौधरी ने इन बयानों को ‘देश के हित’ में बताया। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह वास्तव में देश के हित में है, या फिर शेख़ हसीना की राजनीतिक वापसी की तैयारी?
विरोधियों की प्रतिक्रिया
बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने शेख़ हसीना के बयानों को ‘नफ़रती बोल’ करार दिया। बीएनपी के सलाउद्दीन अहमद ने आरोप लगाया कि हसीना अपने बयानों से सांप्रदायिक सद्भाव को नुकसान पहुंचा रही हैं। उनका मानना है कि यह केवल राजनीति में टिके रहने की कोशिश है।
इसी बीच, मास सॉलिडेरिटी मूवमेंट के संयोजक जुनैद साकी ने आरोप लगाया कि हसीना ने हिंसक घटनाओं में शामिल होने के बाद देश छोड़ा और अब उनके पास नैतिक अधिकार नहीं बचा है कि वह राजनीति में सक्रिय रहें।
अवामी लीग का रुख
अवामी लीग ने इन आलोचनाओं को सिरे से खारिज कर दिया है। पार्टी के अनुसार, वे देश और उसकी संप्रभुता की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। पार्टी के नेता मानते हैं कि शेख़ हसीना के खिलाफ लगाए गए प्रतिबंध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन हैं। हालांकि, आलोचक इसे अवामी लीग की पुरानी रणनीति मानते हैं, जिसमें वे अपने विरोधियों को दबाने के लिए ‘राष्ट्रीय हित’ की आड़ लेते हैं।
भारत में शेख़ हसीना की भूमिका
शेख़ हसीना की भारत यात्रा और यहां से दिए गए उनके बयानों ने भारत-बांग्लादेश संबंधों पर भी सवाल खड़े किए हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में विदेशी मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन ने यह स्पष्ट किया कि शेख़ हसीना को भारत में बैठकर राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं करनी चाहिए। कुछ जानकारों का मानना है कि शेख़ हसीना भारत की राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हैं। उनका दावा है कि भारत शेख़ हसीना को एक ऐसे नेता के रूप में पेश करना चाहता है जो बांग्लादेश में स्थिरता बनाए रख सके। लेकिन क्या यह वास्तव में भारत की रणनीति है, या फिर हसीना खुद अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत कर रही हैं?
अंतरराष्ट्रीय प्रभाव और संभावनाएं
शेख़ हसीना ने यूरोप में भी कई कार्यक्रमों में भाग लिया है, जो यह संकेत देता है कि वे अपने राजनीतिक कद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं। हाल ही में न्यूयॉर्क के कार्यक्रम में दिए गए उनके बयान को बांग्लादेश की सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया। यहां सवाल यह है कि क्या शेख़ हसीना अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन जुटाने में सफल हो पाएंगी? और अगर हां, तो क्या यह समर्थन उनके राजनीतिक विरोधियों पर दबाव बनाने में मदद करेगा?
जनता की प्रतिक्रिया और भविष्य
बांग्लादेश की जनता के लिए शेख़ हसीना का यह नया रूप कितना विश्वसनीय है, यह कहना मुश्किल है। पिछले कुछ महीनों में उनकी लोकप्रियता पर सवाल खड़े हुए हैं, खासकर अल्पसंख्यक समुदायों और छात्रों के मुद्दों को लेकर। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि शेख़ हसीना अपने बयानों और सक्रियता के जरिए जनता का विश्वास जीत पाती हैं या नहीं।
निष्कर्ष
शेख़ हसीना की हालिया गतिविधियां स्पष्ट संकेत देती हैं कि वह राजनीति में फिर से सक्रिय होना चाहती हैं। लेकिन उनके लिए यह राह आसान नहीं होगी। उनके बयानों को जहां एक ओर उनके समर्थक देशहित की बात बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर विरोधी इसे नफरत फैलाने की कोशिश कह रहे हैं। आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि शेख़ हसीना अपने बयानों के जरिए राजनीतिक जमीन बना पाती हैं या फिर यह केवल एक अस्थायी रणनीति साबित होती है।
“राजनीति में बने रहना आसान नहीं होता, लेकिन जो टिके रहते हैं, वही इतिहास बनाते हैं।”