प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना (PM Internship Scheme) जल्द ही लॉन्च होने जा रही है। इस योजना का उद्देश्य देश में बेरोजगारी और स्किल्ड वर्कर्स की कमी को दूर करना है। सरकार का दावा है कि यह योजना युवाओं को देश की टॉप कंपनियों में इंटर्नशिप का सुनहरा अवसर देगी। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह योजना युवाओं को नौकरी की गारंटी देगी या बस एक और सरकारी स्कीम बनकर रह जाएगी?

योजना का मुख्य उद्देश्य क्या है?
प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना का उद्देश्य अगले पांच सालों में 1 करोड़ युवाओं को इंटर्नशिप के अवसर प्रदान करना है। इसके तहत, इंटर्न्स को 12 महीने की ट्रेनिंग मिलेगी और उन्हें एक स्टाइपेंड भी दिया जाएगा। इसके लिए सरकार ने एक खास ऑनलाइन पोर्टल तैयार किया है, जहां कंपनियां और युवा इंटरनशिप के लिए आवेदन कर सकते हैं। अभी तक, 280 कंपनियों ने 1.25 लाख से अधिक इंटर्नशिप के ऑफर दिए हैं। यह संख्या भविष्य में और बढ़ सकती है, लेकिन इसके लिए सरकार और उद्योगों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता होगी।
युवाओं के लिए क्या होगा फायदा?
इस योजना का सबसे बड़ा फायदा यह है कि देश के युवाओं को टॉप कंपनियों के साथ काम करने का अनुभव मिलेगा। जब युवा स्टूडेंट्स कॉलेज की पढ़ाई के बाद नौकरी के लिए तैयार होंगे, तो उनके पास पहले से ही काम का अच्छा अनुभव होगा। इससे उनके लिए रोजगार के अवसरों के दरवाजे खुलेंगे। इसके अलावा, कई कंपनियां इंटर्नशिप को “फुल टाइम जॉब” में बदलने का मौका देती हैं। ऐसे में यह योजना युवाओं के करियर को नई दिशा दे सकती है।
उद्योगों के लिए फायदेमंद कैसे?
यह योजना सिर्फ युवाओं के लिए नहीं, बल्कि कंपनियों के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकती है। अक्सर कंपनियां यह शिकायत करती हैं कि उन्हें स्किल्ड वर्कर्स नहीं मिलते और उन्हें ट्रेनिंग पर अतिरिक्त पैसा खर्च करना पड़ता है। प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना के तहत कंपनियों को पहले से ही प्रशिक्षित युवा मिल सकते हैं, जो उन्हें लागत में कटौती करने में मदद करेंगे। इससे उद्योगों में कुशल कामगारों की कमी भी पूरी हो सकेगी।
योजना की बड़ी चुनौतियां
हालांकि यह योजना सुनने में काफी आकर्षक लगती है, लेकिन इसके सामने कई चुनौतियां भी खड़ी हैं:
- स्थायी नौकरी की गारंटी का अभाव – इस योजना की सफलता तभी संभव है जब कंपनियां इंटर्न्स को ट्रेनिंग के बाद स्थायी रोजगार दें। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो यह योजना सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह जाएगी।
- स्टाइपेंड की समस्या – योजना के तहत इंटर्न्स को सरकार द्वारा 4,500 रुपए और कंपनियों की ओर से 500 रुपए प्रति माह दिए जाएंगे। इसके अलावा सरकार एक बार का 6,000 रुपए का अनुदान भी देगी। लेकिन यह राशि आज के समय में अपर्याप्त लगती है।ज़्यादातर युवाओं का मानना है कि इतनी कम राशि से वे अपना खर्च भी नहीं निकाल पाएंगे। खासतौर पर महानगरों में, जहां जीवनयापन का खर्च काफी अधिक होता है।
- संख्या बनाम गुणवत्ता – सरकार का लक्ष्य 1 करोड़ इंटर्नशिप देने का है। लेकिन सवाल यह है कि क्या इन इंटर्नशिप्स की गुणवत्ता बनाए रखी जा सकेगी? अगर कंपनियां सिर्फ संख्या पूरी करने के लिए इंटर्नशिप देंगी, तो इसका कोई वास्तविक फायदा नहीं होगा।
युवाओं की राय
इस योजना को लेकर युवाओं के बीच उत्सुकता तो है, लेकिन कई सवाल भी उठ रहे हैं। आशा यादव, जो एक इंजीनियरिंग की छात्रा हैं, कहती हैं – “सरकार की यह पहल अच्छी है, लेकिन कंपनियों की ओर से नौकरी की गारंटी भी होनी चाहिए। वरना एक साल की इंटर्नशिप के बाद भी स्थिति वही रहेगी।” वहीं, राहुल सिंह, एक मैनेजमेंट स्टूडेंट का कहना है – “4,500 रुपए का स्टाइपेंड बहुत कम है। इसे बढ़ाकर कम से कम 10,000 रुपए होना चाहिए ताकि इंटर्न्स अपने खर्च निकाल सकें।”
सरकार और कंपनियों की दीर्घकालिक जिम्मेदारी
प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार और कंपनियां इसे कितनी गंभीरता से लेते हैं। कंपनियों को सिर्फ इंटर्नशिप देने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन्हें इंटर्न्स के भविष्य के बारे में भी सोचना होगा। सरकार को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि योजना का सही क्रियान्वयन हो और इंटर्न्स के स्टाइपेंड में समय-समय पर सुधार किया जाए।
अंत में
प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना युवाओं के लिए एक बड़ा अवसर हो सकती है। यह योजना उन युवाओं को आगे बढ़ने का मौका देगी, जो सही मार्गदर्शन और अनुभव के अभाव में पीछे रह जाते हैं। हालांकि, इस योजना को सफल बनाने के लिए कंपनियों और सरकार को दीर्घकालिक प्रतिबद्धता दिखानी होगी। सिर्फ संख्या बढ़ाने के बजाय, इंटर्नशिप की गुणवत्ता पर ध्यान देना भी जरूरी है। आखिर में, यह योजना कितनी सफल होगी, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन अगर सही तरीके से लागू किया गया, तो यह योजना भारत के युवाओं के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है।