परिवार या प्रमोशन? यह सवाल रीमा के सामने तब आया जब कम्पनी मालिक सुरेशजी ने उसे प्रमोशन का प्रस्ताव दिया।

रीमा मेम… आपको मालिक अपने केबिन में बुला रहे हैं,” प्यून ने टेबल पर अपने काम में व्यस्त रीमा से कहा।
“ठीक है, जाती हूं,” रीमा बोली, मगर मन में सोचने लगी, “कम्पनी मालिक सुरेशजी ने मुझे क्यों बुलाया है? खैर, बुलाया है तो जाना पड़ेगा।”
केबिन में पहुंचकर रीमा ने आदर से कहा, “सर, आपने मुझे बुलाया?”
“जी हां, बैठिए,” सुरेशजी ने सामने की कुर्सी की ओर इशारा किया।
रीमा धीरे से कुर्सी पर बैठ गई। सुरेशजी बड़े ध्यान से रीमा के चेहरे की ओर देख रहे थे। उसके मुख पर सौम्य और संतोष का भाव था, जो हमेशा उसकी पहचान रही थी। अचानक सुरेशजी ने एक पेपर उसके सामने रखते हुए कहा, “मिस रीमा, आपने दुबारा प्रमोशन से इनकार कर दिया। बड़ी हैरानी हुई।”
रीमा ने हल्की मुस्कान दी और कुछ कहने के लिए शब्द ढूंढ़ने लगी। सुरेशजी ने आगे कहा, “आज जहां ऑफिस में हरेक पदोन्नति के लिए होड़ सी लगी है, वहां एक आप हैं कि दूसरी बार इनकार कर रही हैं। आखिर कारण क्या है?”
रीमा ने शांत स्वर में कहा, “सर, यह सच है कि पदोन्नति हर किसी के लिए महत्वपूर्ण होती है। लेकिन मेरे लिए अभी की स्थिति में काम का संतुलन और व्यक्तिगत जिम्मेदारियां ज्यादा मायने रखती हैं।”
सुरेशजी ने उत्सुकता से पूछा, “क्या कोई विशेष कारण है?”
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रीमा ने गहरी सांस ली और कहा, “सर, मेरे परिवार में मेरी मां की तबीयत ठीक नहीं रहती। उनके देखभाल की जिम्मेदारी मेरी ही है। अगर मैं प्रमोशन लेती हूं, तो काम का दबाव बढ़ जाएगा और मैं उनके लिए समय नहीं निकाल पाऊंगी।”
सुरेशजी ने उसकी बातें ध्यान से सुनीं और फिर बोले, “रीमा, मैं आपकी स्थिति समझता हूं। लेकिन आपने कभी अपने करियर की संभावनाओं के बारे में सोचा है? आप जितनी योग्य और मेहनती हैं, उससे आप इस कम्पनी में और भी ऊंचाईयों तक जा सकती हैं।”
रीमा ने नम्रता से कहा, “सर, मैं जानती हूं कि कम्पनी ने मुझे बहुत कुछ दिया है। मैं हमेशा अपना बेस्ट देने की कोशिश करती हूं। लेकिन फिलहाल, मेरी प्राथमिकता परिवार है। मैं नहीं चाहती कि काम की वजह से मेरी मां को कोई तकलीफ हो।”
सुरेशजी ने कुछ क्षण सोचकर कहा, “रीमा, मैं आपके फैसले का सम्मान करता हूं। लेकिन कम्पनी भी आपकी मेहनत और ईमानदारी की कद्र करती है। अगर कभी आपको लगता है कि आप प्रमोशन के लिए तैयार हैं, तो आप बेझिझक मुझे बता सकती हैं।”
रीमा ने आभार व्यक्त करते हुए कहा, “धन्यवाद सर, आपकी समझदारी और सहयोग के लिए।”
सुरेशजी ने मुस्कुराते हुए कहा, “आपके जैसे कर्मचारी कम्पनी की संपत्ति होते हैं। आपको किसी भी मदद की जरूरत हो, तो बताने में संकोच मत कीजिएगा।”
रीमा ने सिर हिलाया और धन्यवाद देते हुए केबिन से बाहर निकल आई। बाहर आकर उसने राहत की सांस ली। मन ही मन उसने सोचा, “कम्पनी में काम करने का अनुभव बहुत कुछ सिखाता है। लेकिन परिवार की जिम्मेदारियां कभी-कभी व्यक्तिगत विकास से ऊपर होती हैं।”
रीमा ने महसूस किया कि जीवन में प्राथमिकताओं का सही चुनाव ही संतोष और खुशहाली की ओर ले जाता है। कम्पनी में रहते हुए भी उसने सीखा कि हर व्यक्ति की कहानी अलग होती है, और हर किसी को अपने जीवन के संतुलन को बनाए रखने का अधिकार है।
उसके लिए यह फैसला आसान नहीं था, लेकिन अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारी ने उसे सही निर्णय लेने में मदद की। रीमा ने तय किया कि वह अपने काम और परिवार दोनों में सामंजस्य बनाकर चलेगी। उसने महसूस किया कि कम्पनी में उसकी मेहनत और निष्ठा का मूल्यांकन हुआ है और उसे इस बात की खुशी थी कि उसका निर्णय समझा गया।
आने वाले दिनों में रीमा ने अपने काम पर और भी मन लगाना शुरू कर दिया, क्योंकि उसे पता था कि उसकी मेहनत का सही मूल्यांकन किया जा रहा है। परिवार और काम के बीच संतुलन बनाकर चलते हुए उसने अपने जीवन में एक नई दिशा पाई, जो उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देती रही।