परिवार की ताकत – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

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परिवार की ताकत – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story in Hindi) हमारे जीवन में एक गहरी सिख का स्रोत बन सकती है। इस कहानी में हम देखेंगे कि कैसे एक पिता के शब्दों ने अपने बेटे की सोच को बदल दिया और उसे जीवन में सच्ची शांति और परिवार के महत्व को समझाया।

परिवार की ताकत - मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)
परिवार की ताकत – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

पिताजी के बिना बताए घर आ जाने से पत्नी की आँखों में चिढ़ झलकने लगी,

“लगता है, अब बुजुर्ग को पैसों की तंगी महसूस होने लगी है, वर्ना कौन यहाँ आने की जहमत उठाता।”

मैं चुप रहा, पत्नी के शब्दों को अनसुना करने की कोशिश करता। मगर उसके दिल की खींचतान साफ़ थी, और मुझे समझ में आ रहा था कि वो सही सोच रही थी। घर की तंगी, बढ़ते खर्चे, और मेरी खुद की परेशानियाँ मुझे हर वक्त घेर रही थीं।

पिताजी लंबे समय से अकेले रहते थे। फोन पर बातें होती रहती थीं, लेकिन अब उनका अचानक आ जाना एक झटका सा था। उनका चेहरा थोड़ा थका हुआ था, और हाथ-मुँह धोते हुए वो जैसे पूरे दिन की थकान को धोने की कोशिश कर रहे थे। मैं उनका सामना करने की हिम्मत जुटा रहा था, पर मन में यही सवाल था – क्या अब वो कोई नया आर्थिक संकट लेकर आएंगे?

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बड़े बेटे का जूता फिर से फट चुका था। रोज़ स्कूल जाते वक्त वो शिकायत करता था, लेकिन मेरे पास उस दिन जूते खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। पत्नी की दवाइयाँ भी पूरी नहीं खरीदी जा सकी थीं, और अब पिताजी का आना उस बोझ को और बढ़ा रहा था।

रात का खाना खत्म हो चुका था, और चुपचाप सभी अपने-अपने रास्ते पर थे। पिताजी ने मुझे पास बुलाया, और मैंने थोडा असमंजस में उनके पास जाकर बैठने की कोशिश की। “क्या हुआ पिताजी?” मैंने धीरे से पूछा।

पिताजी ने मुझे देखा और मुस्कराते हुए कहा, “तुम परेशान क्यों हो?” उनके शब्दों में एक गहरी शांति थी, जो मेरे घबराए हुए मन को थोड़ा शांत करने की कोशिश कर रही थी।

“पिताजी, घर की हालत ठीक नहीं है,” मैंने झिझकते हुए कहा। बड़े बेटे के जूते के लिए पैसे नहीं हैं, पत्नी की दवाइयाँ नहीं खरीदी जा सकी, और आपके आने से तो लगता है जैसे कोई और दबाव बढ़ जाएगा।”

पिताजी हंसे, और फिर मेरी आँखों में देखते हुए कहा, “बेटा, यह सब कुछ भी तो नहीं है। ज़िंदगी में बहुत सी समस्याएँ आती हैं, लेकिन क्या तुम जानते हो सबसे बड़ी समस्या क्या है?”

मैं चुप रहा, और पिताजी ने आगे कहा, “सबसे बड़ी समस्या यह है कि हम खुद को भूल जाते हैं। हम यह नहीं समझते कि जो हमारे पास है, वही सबसे कीमती है। परिवार, प्यार, और एक-दूसरे का साथ – यही जीवन की असली संपत्ति है। अगर तुम इन सब चीज़ों पर ध्यान दोगे, तो बाकी सब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा।”

उनकी बातों ने मेरे दिल को छुआ। मेरी सोच बदलने लगी, और मुझे महसूस हुआ कि पिताजी की शांति और समझदारी में कुछ खास था। मुझे लगा जैसे मेरी चिंता अब कहीं खो गई थी।

अगली सुबह, पिताजी ने मुझे पूछा, “बेटा, क्या तुम मेरे साथ मंदिर चलोगे?”

“मंदिर?” मैंने चौंकते हुए पूछा।

“हाँ, हमें थोड़ा समय निकालकर शांति से बैठना चाहिए,” पिताजी ने कहा। “तुम्हारे मन को शांति मिलेगी, और सब कुछ सही लगेगा।”

हम मंदिर गए, और वहाँ बैठकर पिताजी ने कहा, “जिंदगी में कभी-कभी हम चीज़ों को इतना बड़ा बना लेते हैं कि हमें उनका हल ही नहीं नजर आता। लेकिन जब हम शांत होकर सोचते हैं, तो हल खुद-ब-खुद सामने आ जाता है। तुम भी यही समझो। कभी खुद को बाहर से देखो।”

मंदिर की शांत वातावरण में पिताजी की बातें मेरी सोच को एक नया मोड़ दे रही थीं। मुझे समझ में आया कि जीवन की असली दौलत परिवार का प्यार और एक-दूसरे का साथ ही है। घर की तंगी और समस्याएँ तो आती जाती रहती हैं, लेकिन इन सब के बीच एक-दूसरे के साथ खड़ा रहना ही सबसे ज़रूरी है।

“अब समझ में आ रहा है, पिताजी,” मैंने मन ही मन तय किया कि मुझे खुद को बेहतर बनाना होगा और घर के लिए और मेहनत करनी होगी।

पिताजी के साथ वापस लौटते हुए मैंने खुद से वादा किया कि मैं सिर्फ पैसों के पीछे नहीं भागूँगा, बल्कि अपने परिवार की ख़ुशी और प्यार पर ज्यादा ध्यान दूँगा। और साथ ही, मैंने सोचा, जब सब कुछ ठीक होगा, तब मैं और पिताजी मिलकर घर की सारी समस्याओं का हल निकालेंगे।

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