पढ़ें यह प्रेरणादायक कहानी(Motivational Story): “अगर मैं मर जाऊं तो मेरे परिवार का क्या होगा।”
जानें एकता, प्रेम और टीमवर्क की ताकत जो जीवन की चुनौतियों को हराने में मदद करती है।
गांव के एक कोने में एक छोटी सी दुकान चलाने वाला रामनाथ अपने आप को अपने परिवार का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति मानता था। उसकी छोटी सी किराना दुकान से होने वाली आय पर ही उसका पूरा परिवार निर्भर था। रामनाथ को यह अहंकार हो गया था कि उसके बिना परिवार का गुजारा ही नहीं चल सकता।
वह अक्सर अपने दोस्तों और गांववालों के सामने डींगें मारता, “अगर मैं न रहूं, तो मेरे परिवार का क्या होगा? मैं ही हूं जो घर चलाता हूं। मेरी मेहनत से ही घर में चूल्हा जलता है।”
रामनाथ का परिवार – उसकी पत्नी सुमन, बेटा राजू और बेटी नीतू – चुपचाप उसकी बातें सुनते रहते। सुमन ने कई बार रामनाथ को समझाने की कोशिश की कि यह घमंड उसे और परिवार को नुकसान पहुंचा सकता है, पर रामनाथ ने कभी उसकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया।
आगे पढ़े
प्रेरणादायक कहानी(Motivational Story): बूढ़ा आदमी और आम का पेड़
एक दिन ऐसा हुआ कि रामनाथ अचानक बीमार पड़ गया। डॉक्टर ने कहा कि उसे दो महीने तक पूर्ण आराम की आवश्यकता है। यह सुनकर रामनाथ चिंतित हो गया। उसे लगा कि अब उसकी दुकान बंद हो जाएगी और परिवार भूखा रहेगा। पर सुमन ने कहा, “चिंता मत करो। जब तक तुम ठीक नहीं हो जाते, मैं और बच्चे मिलकर दुकान संभाल लेंगे।” रामनाथ को यह बात सुनकर अजीब लगा। उसने सोचा, “एक औरत और बच्चे दुकान क्या संभालेंगे?” लेकिन स्थिति ऐसी थी कि उसे यह बात माननी पड़ी।
सुमन ने राजू और नीतू को साथ लिया और दुकान का काम संभाल लिया। सुमन सुबह दुकान खोलती, राजू सामान बेचने में मदद करता, और नीतू ग्राहकों से पैसे का हिसाब-किताब करती। शुरुआती दिनों में उन्हें काफी दिक्कतें आईं। ग्राहक अक्सर रामनाथ के बारे में पूछते, और कुछ ने तो यह भी कह दिया, “तुम लोग दुकान नहीं चला पाओगे।”
लेकिन सुमन और बच्चों ने हार नहीं मानी। उन्होंने मिलकर मेहनत की। सुमन ने अपने पुराने ग्राहकों से बातचीत की और दुकान की व्यवस्था को व्यवस्थित किया। राजू ने नए तरीके से दुकान की सजावट की, जिससे ग्राहक अधिक आकर्षित हुए। नीतू ने ग्राहकों के लिए छोटी-छोटी रियायतें शुरू कीं, जिससे दुकान पर भीड़ बढ़ने लगी।
दो महीने बीत गए। रामनाथ धीरे-धीरे स्वस्थ हो रहा था। एक दिन उसने सुमन से पूछा, “दुकान का क्या हाल है?”
सुमन मुस्कुराते हुए बोली, “तुम खुद जाकर देख लो।”
रामनाथ जब दुकान पहुंचा, तो उसने देखा कि दुकान पहले से अधिक व्यवस्थित और ग्राहकों से भरी हुई है। राजू और नीतू ग्राहकों से व्यस्त थे, और सुमन सब कुछ कुशलता से संभाल रही थी।
रामनाथ को विश्वास नहीं हो रहा था कि उसके परिवार ने इतनी कुशलता से दुकान संभाल ली है। उसने महसूस किया कि वह गलत था। उसके परिवार ने साबित कर दिया था कि किसी एक व्यक्ति पर निर्भर रहना आवश्यक नहीं।
उस रात, रामनाथ ने सुमन और बच्चों को बुलाया और कहा, “आज मुझे एहसास हुआ कि परिवार किसी एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि सबके सहयोग पर चलता है। मैं जो सोचता था कि मेरे बिना कुछ नहीं हो सकता, वह मेरा घमंड था। तुम लोगों ने मेरी सोच बदल दी। अब मैं भी तुम्हारे साथ मिलकर काम करूंगा और घमंड को हमेशा के लिए छोड़ दूंगा।”
सुमन ने मुस्कुराते हुए कहा, “हम सभी एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। परिवार का असली आधार एकता और प्रेम है, न कि किसी एक व्यक्ति का अहंकार।”
इस घटना के बाद, रामनाथ ने न केवल अपने घमंड को त्याग दिया, बल्कि अपने परिवार के साथ मिलकर काम करने का आनंद भी सीखा।
यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में घमंड और आत्ममुग्धता हमें कभी भी सही दिशा में नहीं ले जाते। परिवार में हर सदस्य महत्वपूर्ण है, और उनका सहयोग ही घर को खुशहाल बनाता है।संसार किसी के लिए भी नहीं रुकता!! यहाँ सभी के बिना काम चल सकता है। संसार सदा से चला आ रहा है और चलता रहेगा। जगत को चलाने की हाम भरने वाले बड़े-बड़े सम्राट मिट्टी हो गए, पर जगत उनके बिना भी चलता रहा। इसलिए अपने बल, धन, कार्य, या ज्ञान का गर्व व्यर्थ है। सच्ची शक्ति आपसी सहयोग और प्रेम में है।
आपसी विश्वास और सहयोग से हर मुश्किल आसान हो सकती है।