मेरा देवर मुझे खिड़की से गुपचुप देख रहा था। मेरे पति की दुखद मृत्यु के बाद, मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक परिवार का सदस्य इस तरह से धोखा देगा।

मेरे जीवन में कई मुश्किलें आईं, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती उस दिन आई, जब मेरे पति का एक भयंकर हादसे में निधन हो गया। उस समय हमारे दो छोटे बच्चे भी थे, जिनकी देखभाल करना मेरे लिए सबसे बड़ी जिम्मेदारी बन गई। अचानक मेरे जीवन का पूरा धरातल ही बदल गया था। अब मुझे अपनी छोटी सी दुनिया को संभालने के लिए अकेले ही पूरी ताकत से खड़ा होना था। मैं अपने बच्चों के साथ अपने ससुर और सास के साथ उसी पुराने घर में रहने लगी थी, जो कभी मेरे पति के साथ हमारी खुशियों से भरा हुआ था।
हमारा घर बहुत पुराना था, और उसमें कुछ खामियां भी थीं। खिड़कियों के शटर जरा ढीले थे, जिससे बाहर का दृश्य कभी-कभी धुंधला दिखता था, लेकिन मुझे इस घर से जुड़ी कई यादें थीं, इसलिए मैं इसे छोड़ने का सोच भी नहीं सकती थी। घर के बाकी हिस्सों की तरह ही खिड़की के पास भी एक खामी थी — खिड़की के किनारे से नीचे की तरफ गैप था, जिससे बाहर देखना तो आसान था, लेकिन अंदर से दिखने में परेशानी होती थी। इस खामियों का फायदा मेरे देवर, गौरव, ने कुछ और तरीके से उठाया।
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गौरव, मेरे देवर, मेरे पति के छोटे भाई थे। वह एक छोटे से ऑफिस में काम करते थे और घर में रहते हुए मुझे हमेशा अपनी नज़रों का शिकार बनाते थे। वह कभी सीधे तौर पर मुझसे बात नहीं करते थे, लेकिन उनके नज़रें अक्सर मुझे महसूस होती थीं। जब भी मैं घर के कामों में व्यस्त होती या बच्चों के साथ कुछ कर रही होती, वह खिड़की से मुझे देख रहे होते थे। यह मुझे बहुत असहज करता था, लेकिन मैंने इसे नजरअंदाज किया, क्योंकि मैं अपनी जिंदगी के सबसे बड़े जिम्मेदारियों से जूझ रही थी।
एक दिन, जब मैं अपने बच्चों को सुला चुकी थी और घर के कामों में व्यस्त थी, मैंने महसूस किया कि गौरव खिड़की से मुझे देख रहे थे। वह खिड़की से झुके हुए थे, और उनकी आँखों में वही अजीब सी घूरने वाली मुस्कान थी, जो मुझे हमेशा परेशान करती थी। यह सब मेरे लिए असहज था, लेकिन उस दिन मैंने ठान लिया कि अब मैं इसे और नहीं सह सकती।
मैंने अपनी चुप्प तोड़ी और गौरव को सीधे बुलाया। उनका सामना करते हुए मैंने कहा, “तुम जो कर रहे हो, वह गलत है। मैं अब चुप नहीं रह सकती।” मेरी आवाज़ में एक दृढ़ता थी, और मैं जानती थी कि अब कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए।
गौरव चुपचाप खड़ा रहा, उसकी आँखें झुकी हुई थीं। उसने कोई विरोध नहीं किया। वह जान चुका था कि अब उसे अपनी सीमा पार नहीं करनी चाहिए। मैंने अपनी बात पूरी की, “अगर तुमने मुझे फिर से देखना या घूरे तो मैं इसे बर्दाश्त नहीं करूंगी।” गौरव शर्मिंदा था और उसके चेहरे पर गहरी खामोशी थी।
उसके बाद, गौरव ने अपनी गलती मानी और कभी मुझे घूरे नहीं। हमारा रिश्ता अब पहले जैसा नहीं रहा। मैंने जो कदम उठाया, उसने मेरे आत्म-सम्मान को बचाया और मुझे यह एहसास दिलाया कि कभी भी चुप नहीं रहना चाहिए जब हमारी सीमाएं पार की जाएं।
हम अब एक शांतिपूर्ण माहौल में रहते थे, और मुझे महसूस हुआ कि मेरे बच्चों और खुद के लिए यह बहुत जरूरी था कि मैं अपनी सीमाओं का सम्मान कराऊं। श्रीकांत जी, मेरे ससुर, और सास ने भी गौरव को समझाया कि उसका व्यवहार न केवल अनुचित था, बल्कि यह परिवार के सम्मान के खिलाफ था। गौरव को अब समझ में आ चुका था कि बहू के साथ ऐसा व्यवहार किसी भी हालत में स्वीकार नहीं किया जा सकता था।
आज, मैं इस अनुभव को अपनी ताकत मानती हूँ। मैंने अपनी चुप्प तोड़ी, और एक बुरा सपना खत्म किया। मेरे बच्चों के लिए और खुद के लिए यह जरूरी था कि मैं अपने आत्म-सम्मान की रक्षा करती। यह कदम मेरे जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ था, और मुझे गर्व है कि मैंने सही किया।
अब मैं अपने बच्चों के साथ इस घर में रहती हूँ, जहाँ मैंने अपनी ताकत और आत्म-सम्मान की रक्षा की है, और यही सबसे अहम बात है।
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