चीन पर भरोसा करके गलती कर रहा है भारत? विदेश सचिव ने दिया अहम बयान

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हाल ही में एक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय वार्ता हुई। यह वार्ता रूस के कजान शहर में आयोजित BRICS शिखर सम्मेलन के बाद हुई। 2020 में गलवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद दोनों नेताओं के बीच यह पहली बाइलेटरल मीटिंग थी, जो करीब एक घंटे तक चली। इस बैठक में दोनों देशों के नेताओं ने सीमा सुरक्षा समेत कई अहम मुद्दों पर चर्चा की।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी पोस्ट में लिखा कि भारत और चीन के संबंध न केवल दोनों देशों के लिए, बल्कि वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।

चीन पर भरोसा करके गलती कर रहा है भारत? विदेश सचिव ने दिया अहम बयान
चीन पर भरोसा करके गलती कर रहा है भारत? विदेश सचिव ने दिया अहम बयान

हालांकि, इस बैठक के बाद एक सवाल लगातार उठ रहा है—क्या अब चीन पर भरोसा किया जा सकता है? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन ने 1962 के युद्ध से लेकर डोकलाम और गलवान झड़प तक कई बार भारत के विश्वास को ठेस पहुंचाई है। इस सवाल का जवाब विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दिया, जिसमें उन्होंने भारत-चीन संबंधों की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डाला।

विदेश सचिव का बयान: क्या चीन पर भरोसा संभव है?

विदेश मंत्रालय की ब्रीफिंग के दौरान एक पत्रकार ने सवाल किया कि प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग की बैठक के बाद क्या ये कहा जा सकता है कि भारत और चीन के बीच रिश्ते सामान्य हो गए हैं? और क्या अब चीन पर भरोसा किया जा सकता है? इसके जवाब में विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा, “पिछले कुछ दिनों में जो कदम उठाए गए हैं, वे हमारे सामने हैं। हमने उन पर काफी समय से काम किया है। इससे हमारी सामान्य रिश्ते बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। जो समझौता हुआ है, उसने सीमा पर शांति का रास्ता खोला है। अब दोनों देशों को इस दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता है।”

उन्होंने यह भी कहा, “जहां तक चीन पर भरोसे का सवाल है, भविष्य में हमारी जो बातचीत और समझौते होंगे, उनसे ही यह भरोसा मजबूत होगा। हम आशा करते हैं कि इससे दोनों देशों के बीच विश्वास बढ़ेगा।”

LAC पर सुधार की उम्मीद, लेकिन चुनौतियां बरकरार

एक अन्य सवाल में पूछा गया कि क्या इस द्विपक्षीय बातचीत से वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर हालात में सुधार होगा? विदेश सचिव ने कहा, “हमें उम्मीद है कि इससे LAC पर स्थिति में सुधार आएगा। जहां तक विश्वास निर्माण उपायों की बात है, तो हमारे पास कई तरीके हैं जो समय-समय पर विकसित होते रहते हैं। दोनों पक्षों के बीच चर्चा जारी रहेगी।”

हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सीमा पर सैन्य स्थिति के बारे में सेना ही सही जानकारी दे सकती है क्योंकि यह ऑपरेशनल मामलों से संबंधित है। इसका मतलब है कि दोनों देशों के बीच राजनीतिक बातचीत हो रही है, लेकिन जमीनी हकीकत को पूरी तरह बदलने में समय लगेगा।

लद्दाख मुद्दे पर आम सहमति का स्वागत

प्रधानमंत्री मोदी ने शी जिनपिंग के साथ बैठक में लद्दाख मुद्दे पर बनी आम सहमति का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि “भारत-चीन संबंध न केवल हमारे लोगों के लिए, बल्कि वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।” प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता महत्वपूर्ण है।

क्या चीन पर भरोसा करना सही है?

हालांकि, सवाल यह उठता है कि क्या भारत को चीन के साथ संबंध सुधारने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए? विशेषज्ञों का मानना है कि चीन ने पहले भी कई बार भरोसा तोड़ा है, इसलिए इस बार भी सतर्कता जरूरी है। 1962 के युद्ध के बाद से लेकर 2017 के डोकलाम विवाद और 2020 के गलवान संघर्ष तक, चीन ने कई मौकों पर आक्रामक रुख अपनाया है।

लेकिन साथ ही, कूटनीति में संवाद और बातचीत भी महत्वपूर्ण होती है। दोनों देशों के नेताओं की मुलाकात एक सकारात्मक कदम है, लेकिन यह भी ध्यान में रखना होगा कि वास्तविक परिणाम कितने स्थायी होते हैं। चीन का इतिहास दिखाता है कि वह अपने रणनीतिक उद्देश्यों को लेकर बेहद सतर्क रहता है, और ऐसे में भारत को भी अपनी सुरक्षा और स्वायत्तता के मुद्दों पर पूरी तरह से सजग रहना होगा।

जिनपिंग का आह्वान: सकारात्मक संबंधों की जरूरत

बैठक के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि चीन और भारत के बीच अच्छे संबंध दोनों देशों के नागरिकों के हित में हैं। जिनपिंग ने दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग बढ़ाने की बात कही और कहा कि मतभेदों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना जरूरी है।

चीनी पक्ष द्वारा जारी बयान में भी यही कहा गया कि चीन और भारत को एक सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और विकासशील देशों के लिए एक उदाहरण स्थापित करना चाहिए। हालांकि, यह देखना बाकी है कि चीन की यह नीति कितनी ईमानदार है और भारत के साथ उसकी बातचीत कितनी पारदर्शी रहेगी।

निष्कर्ष: सतर्कता और संवाद दोनों की जरूरत

भारत और चीन के बीच हाल की द्विपक्षीय वार्ता ने एक सकारात्मक संकेत जरूर दिया है, लेकिन इससे जुड़े कई सवाल अब भी अनसुलझे हैं। भारत को चीन के साथ संबंध सुधारने की कोशिशें जारी रखनी चाहिए, लेकिन इसके साथ ही सतर्क रहना भी उतना ही जरूरी है।

इस बातचीत ने सीमा पर शांति की उम्मीद जरूर जगाई है, लेकिन भविष्य में दोनों देशों के बीच रिश्ते किस दिशा में आगे बढ़ेंगे, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वे एक-दूसरे के प्रति कितनी ईमानदारी और संवेदनशीलता दिखाते हैं। भारतीय जनता के मन में यह सवाल अभी भी कायम है कि क्या चीन पर पूरी तरह से भरोसा किया जा सकता है? इसका जवाब केवल समय ही देगा।

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