अधूरी उम्मीदें – एक प्रेरणादायक कहानी में जानिए कैसे सपने और उम्मीदें कभी-कभी अधूरी रह जाती हैं, और परिवार और रिश्तों में संघर्ष का सामना करना पड़ता है।

सपना की शादी को अभी सिर्फ एक महीना ही हुआ था, और यह महीना उसके जीवन का सबसे कठिन समय बनकर उभरा था। शादी के बाद, जैसे ही वह मायके लौटी, उसकी आँखों में आँसू थे। वह चुपचाप माँ के पास बैठी और फूट-फूट कर रो पड़ी। माँ ने तुरंत उसे गले लगा लिया और पूछा, “क्या हुआ बेटी? तुम इतनी परेशान क्यों हो?” सपना की आँखों में पीड़ा साफ झलक रही थी, जैसे कोई दिल दहला देने वाली बात हो, जिसे वह खुद भी शायद नहीं समझ पा रही थी।
माँ ने उसे सहलाते हुए फिर पूछा, “क्या तुम बताना चाहोगी?”
सपना ने आँसू पोंछते हुए धीरे-धीरे बोलना शुरू किया, “माँ, तुमने मुझे किस घर में भेज दिया। वहाँ मेरी कोई इज्जत नहीं है। मैं पूरे दिन रसोई में नौकरानी की तरह खड़ी रहती हूँ। सास-ससुर, देवर-ननद, सभी के लिए खाना बनाते-बनाते मेरी हालत खराब हो जाती है। कोई भी मेरी मदद करने के लिए तैयार नहीं है। मुझे कोई भी समझने के लिए तैयार नहीं है। और जब से मैंने शादी की है, तो मुझे लगता है, जैसे मैं अपने ही घर में किसी नौकर से भी बदतर हो गई हूँ।”
सपना की आवाज में गहरी मायूसी और दर्द था। वह अपनी माँ से शिकायत करती चली गई, “माँ, सासू माँ के रिश्तेदार आए दिन आते रहते हैं। उनके लिए चाय-नाश्ता और खाना तैयार करना मेरा ही काम होता है। और रोज़ शाम को कपड़े धोने का ढेर भी लगा रहता है। मुझे कोई आराम नहीं मिलता। और राहुल, वह तो बस बिस्तर पर बैठे-बैठे सब कुछ चाहते हैं। मुझे लगता है, जैसे मैं एक मशीनी खिलौना बन गई हूँ।”
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सपना ने अपनी परेशानी जारी रखते हुए कहा, “माँ, सबसे ज्यादा बुरा तो तब लगा, जब राहुल ने अपनी पूरी तनख्वाह सासू माँ के हाथ में दे दी और मुझसे कहा कि अगर कुछ चाहिए तो पर्ची पर लिख देना, वह शाम को लाकर देंगे। मुझे यह समझ में नहीं आया, कि शादी के बाद, एक पत्नी का अधिकार क्या है? वह घर मेरा भी है, फिर भी मेरी कोई अहमियत क्यों नहीं है?”
माँ ने शांतिपूर्वक सपना की सारी बातें सुन लीं। वह थोड़ी देर चुप रही और फिर गहरी सांस ली। इसके बाद वह बोलीं, “बेटा, सुनो, दो रास्ते हैं तुम्हारे सामने। एक तो यह कि तुम वहीँ रहकर सबकी सेवा करो, क्योंकि अब वह घर भी तुम्हारा है। दूसरा रास्ता यह है कि तुम अपने पति को लेकर अलग घर में रहो, जहाँ तुम्हें किसी का खाना नहीं पकाना पड़ेगा, कपड़े नहीं धोने पड़ेंगे और तुम्हें अपनी पूरी तनख्वाह भी मिलेगी।”
सपना चुप रही। माँ की बातों को सुनकर उसका दिल हल्का सा हुआ, लेकिन सवाल अभी भी जस का तस था – क्या सही है? क्या वह अपने ससुराल में वही भूमिका निभाए, जो उसे दी गई थी, या फिर अलग घर बसाकर अपनी स्वतंत्रता की ओर बढ़े?
माँ ने फिर गहरी सांस ली और अपनी बात जारी रखी, “लेकिन याद रखना, जब तुम्हारा अपना बेटा होगा और वह बड़ा होकर शादी करेगा, तब तुम यही चाहोगी कि वह तुम्हारे साथ रहे और बहू भी। तुम चाहोगी कि तुम्हारा पोता तुम्हारे साथ खेले, तुम्हारे लिए पानी लाए, और जब तुम थकी हो, तो कोई तुम्हारे लिए खाना तैयार करे। तुम खुद अपने अनुभव से यह जान पाओगी कि घर की ज़िम्मेदारी किस तरह से सबको जोड़ती है। कभी-कभी हमें अपने परिवार के लिए छोटे-छोटे कदम उठाने पड़ते हैं, ताकि हम उनके दिलों में अपने लिए जगह बना सकें।”
माँ की बातों ने सपना को सोचने पर मजबूर कर दिया। उसे समझ में आ गया कि हर घर की अपनी एक विशेषता होती है और उसे निभाना आसान नहीं होता। शायद, यह कठिनाई सिर्फ कुछ समय के लिए थी और धीरे-धीरे उसे अपनी स्थिति को समझने और उससे निपटने का रास्ता मिलेगा। लेकिन यह भी सच था कि वह अकेली नहीं थी, सभी को यह सब करना पड़ता है और समय के साथ हर कोई अपनी भूमिका समझता है।
अंत में, सपना ने अपने माँ की ओर देखा और बोली, “माँ, मुझे लगता है, मुझे कुछ समय अपने ससुराल में और रहकर देखना चाहिए। शायद वहां चीज़ें सुधर जाएं और मैं अपनी भूमिका को और बेहतर तरीके से निभा सकूं।”
माँ ने मुस्कुराते हुए सपना का सिर सहलाया और कहा, “यह सबसे अच्छा निर्णय है, बेटी। हर रिश्ता समय लेता है, और तुम्हारा निर्णय ही तुम्हारा भविष्य बनाता है। लेकिन याद रखना, किसी भी स्थिति में अपनी आत्मा को न खोना। तुम एक मजबूत महिला हो, और तुम्हारे पास हर समस्या का हल है। बस भरोसा रखो, खुद पर।”
सपना ने माँ की बातों को अपने दिल में बसा लिया। अब उसे यह एहसास हुआ कि हर मुश्किल का एक समय आता है, और वह इस समय का सामना साहस के साथ कर सकती थी। माँ के आशीर्वाद और समझदारी ने उसे एक नया दृष्टिकोण दिया। सपना अब तैयार थी अपने ससुराल में कुछ बदलाव लाने के लिए, और साथ ही वह अपनी पसंद और जरूरतों के अनुसार अपना कदम उठा सकती थी।
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