क्या दिल्ली चुनाव के दौरान मुफ्त की सुविधाएं बंद होंगी? सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी और रेवड़ी संस्कृति पर बड़ी बहस जानें इस रिपोर्ट में।

दिल्ली चुनाव: क्या मुफ्त की सुविधाएं बंद होंगी? सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मुफ्त की रेवड़ी संस्कृति पर सख्त टिप्पणी की है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये सुविधाएं जनता के लिए जरूरी हैं या चुनावी लाभ के लिए बांटी जा रही हैं?
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने सोमवार को कहा कि सरकार अगर मुफ्त राशन की जगह लोगों को रोजगार मुहैया कराती तो बेहतर होता। मुफ्त सुविधाएं समाज के कमजोर तबके को राहत पहुंचाने के लिए हैं, लेकिन यह लंबे समय तक आर्थिक बोझ बन सकती हैं।
रेवड़ी कल्चर की शुरुआत कब हुई?
मुफ्त की रेवड़ी बांटने का चलन 1956 में तब शुरू हुआ, जब तत्कालीन मद्रास राज्य (अब तमिलनाडु) के मुख्यमंत्री के. कामराज ने मिड डे मील योजना लागू की। शुरुआत में इसका मकसद गरीब बच्चों को स्कूल तक लाना और उनका पोषण करना था। लेकिन इसके बाद से मुफ्त राशन, सोने के सिक्के, गैजेट्स, और बिजली-पानी जैसी चीजें बांटी जाने लगीं
सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारें मुफ्त चीजें बांटकर जनता को निर्भर बना रही हैं। कोर्ट का कहना था कि यदि इन संसाधनों को रोजगार सृजन और कौशल विकास में लगाया जाए तो ज्यादा बेहतर परिणाम मिलेंगे। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “81 करोड़ लोग मुफ्त राशन पर निर्भर हैं। इसका मतलब सिर्फ टैक्सपेयर्स ही बाकी हैं!”
क्या है ‘रेवड़ी कल्चर’?
आरबीआई की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, ‘रेवड़ी’ का मतलब है मुफ्त में दी जाने वाली चीजें। ये अल्पकालिक राहत तो देती हैं लेकिन लंबे समय में निर्भरता को बढ़ावा देती हैं। चुनावों के दौरान वोटर्स को लुभाने के लिए मुफ्त लैपटॉप, टीवी, बिजली, और अन्य चीजें दी जाती हैं।
मुफ्त की योजनाओं के उदाहरण:
- मिड डे मील योजना – गरीब बच्चों के पोषण के लिए।
- मनरेगा – मजदूरों को रोजगार देने के लिए।
- पीडीएस – गरीबों को राशन उपलब्ध कराना।
मुफ्त की योजनाओं के सकारात्मक पहलू
- गरीबों का उत्थान
गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों के लिए मुफ्त सुविधाएं एक संजीवनी साबित होती हैं। तमिलनाडु और बिहार जैसे राज्यों में मुफ्त साइकिल, साड़ी और सिलाई मशीनें गरीब महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करती हैं। - शिक्षा में सुधार
यूपी सरकार के मुफ्त लैपटॉप वितरण से ग्रामीण इलाकों में शिक्षा की पहुंच बढ़ी। बिहार में साइकिल योजना से लड़कियों की स्कूल छोड़ने की दर कम हुई। - उद्योगों को बढ़ावा
मुफ्त साड़ी और साइकिल देने से स्थानीय उद्योगों की बिक्री में इजाफा हुआ। इससे रोजगार के अवसर भी बढ़े। - महिलाओं का सशक्तिकरण
महिलाओं को मुफ्त बस पास जैसी सुविधाएं मिलने से उनकी वर्कफोर्स भागीदारी बढ़ी है। - राजनीतिक जागरूकता
मुफ्त योजनाएं सरकार की जवाबदेही को दर्शाती हैं। इससे जनता का विश्वास बढ़ता है और राजनीतिक जुड़ाव मजबूत होता है।
मुफ्त की रेवड़ी के नकारात्मक पहलू
- राजकोषीय घाटा बढ़ता है
आरबीआई के अनुसार, कई राज्यों में मुफ्त सुविधाओं की वजह से सरकारी खर्च लगातार बढ़ रहा है। उदाहरण के लिए, पंजाब और आंध्र प्रदेश अपने राजस्व का 10% से ज्यादा सब्सिडी पर खर्च कर रहे हैं। - संसाधनों का दुरुपयोग
मुफ्त बिजली-पानी से प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन होता है। पंजाब में मुफ्त बिजली के कारण भूजल स्तर तेजी से गिरा है। - आर्थिक विकास में बाधा
मुफ्तखोरी से सरकार का ध्यान उत्पादक क्षेत्रों से हट जाता है। नीति आयोग ने यूपी में लैपटॉप बांटने की आलोचना की क्योंकि इसका शिक्षा के बुनियादी ढांचे पर असर पड़ा। - निर्भरता का कल्चर
मुफ्त योजनाएं जनता को आत्मनिर्भर बनाने के बजाय सरकार पर निर्भर बना देती हैं। यह उद्यमशीलता और मेहनत को हतोत्साहित करती हैं। - चुनाव प्रक्रिया पर असर
चुनाव से पहले मुफ्त सुविधाओं का वादा मतदाताओं को लुभाने का अनैतिक तरीका बन चुका है। यह निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया पर सवाल खड़ा करता है।
सुप्रीम कोर्ट का सुझाव: रोजगार पर फोकस
सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त राशन की जगह रोजगार के अवसर बढ़ाने पर जोर दिया है। प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर कोर्ट ने कहा कि “फ्रीबीज कब तक देंगे? रोजगार और क्षमता निर्माण की जरूरत है।”
रोजगार सृजन से फायदे:
- आर्थिक विकास
- सामाजिक उत्थान
- निर्भरता कम होना
मुफ्त की रेवड़ी कब तक?
मुफ्त सुविधाएं जरूरतमंदों के लिए महत्वपूर्ण हैं लेकिन इनका अंधाधुंध इस्तेमाल राजकोषीय घाटे को बढ़ा रहा है। सुप्रीम कोर्ट का सुझाव सही है कि सरकार को रोजगार और कौशल विकास पर ध्यान देना चाहिए। इससे समाज में स्थायी विकास और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलेगा।
*सरकारों को चाहिए कि अल्पकालिक राहत देने की बजाय दीर्घकालिक योजनाएं बनाएं। मुफ्त बिजली-पानी और राशन के बजाय रोजगार के अवसर बढ़ाना देश के भविष्य के लिए अधिक उपयोगी होगा।
क्या मुफ्त की रेवड़ियों का युग खत्म होगा? यह सरकार की नियति और नीतियों पर निर्भर करता है।