26 अक्टूबर की रात, जब ईरान गहरी नींद में था, इजराइल ने ईरान पर जोरदार हमला कर दिया। इस हमले का उद्देश्य था 1 अक्टूबर को ईरान द्वारा किए गए 200 मिसाइलों के हमले का बदला लेना। इजराइली सेना ने ईरान के कई सैन्य ठिकानों पर बमबारी की। इजराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामीन नेतन्याहू खुद इस हमले की निगरानी कर रहे थे, उनके साथ रक्षा मंत्री युवाओ गैलेंट और आर्मी चीफ हर्जी हले भी एक बंकर से इस ऑपरेशन की देखरेख कर रहे थे।

हमले की योजना: 100 फाइटर जेट्स का इस्तेमाल
इजराइल ने इस हमले में 100 से ज्यादा फाइटर जेट्स का इस्तेमाल किया, जिसमें F-35 जैसे आधुनिक विमान भी शामिल थे। ये जेट्स 2000 किलोमीटर दूर से उड़ान भरकर ईरान के विभिन्न ठिकानों पर बम बरसा रहे थे। ईरान के तेहरान, इलाम, खुज़िस्तान, क़ोम, शिराज सहित कई शहरों में जोरदार धमाके सुनाई दिए। इन हमलों के कारण ईरान की राजधानी तेहरान समेत कई इलाकों में भारी तबाही मची।
क्या ईरान के जवाबी हमले की संभावना है?
अब सवाल उठता है कि क्या ईरान इजराइल के इस हमले का जवाब देगा। ईरान ने पहले ही अपने मिसाइल डिफेंस सिस्टम ‘बावर 373’ और ‘S-300’ के जरिए इजराइल के हमलों को नाकाम करने का दावा किया है। ईरान की सरकारी न्यूज़ एजेंसी आईआरएनए ने एक वीडियो साझा किया, जिसमें हवा में ही इजराइली मिसाइलों को नष्ट होते हुए दिखाया गया है। इसके बावजूद, ईरान के दो सैनिकों के मारे जाने की पुष्टि हुई है।
इजराइल का रणनीतिक हमला और इसके पीछे का संदेश
इजराइल के इस हमले को “ऑपरेशन डेज़ ऑफ रिपीट्स” नाम दिया गया है, जिसका सीधा संबंध यहूदी धर्म के दस पश्चाताप के दिनों से है। इन दिनों में यहूदी लोग अपने कर्मों पर विचार कर पश्चाताप करते हैं। इजराइल ने इस ऑपरेशन के जरिए एक संदेश देने की कोशिश की है कि वह जंग नहीं चाहता, लेकिन अगर उस पर हमला होता है, तो वह पलटवार करने में पीछे नहीं हटेगा।
ईरान को पहले से थी हमले की आशंका
सऊदी अरब के स्काई न्यूज़ की रिपोर्ट के मुताबिक, रूस ने इजराइल के हमले की योजना की जानकारी पहले ही ईरान को दे दी थी। इसलिए, ईरान ने अपने न्यूक्लियर ठिकानों और तेल डिपो की सुरक्षा को और कड़ा कर दिया था। इस कारण, इजराइल के भीषण हमले के बावजूद, ईरान को उतना नुकसान नहीं हुआ जितना अपेक्षित था। ईरान की सेना को पहले से ही इजराइली हमलों के पैटर्न का अंदाजा था, इसलिए उसने अपने सैन्य ठिकानों की सुरक्षा पहले से मजबूत कर ली थी।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव और हमले में देरी का कारण
कहा जा रहा था कि इजराइल का यह हमला अमेरिका में 5 नवंबर को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के बाद होगा। लेकिन इजराइल ने इन अटकलों को खारिज करते हुए 26 अक्टूबर की रात हमला कर दिया। इसके पीछे एक और कारण अमेरिकी दस्तावेजों का लीक होना बताया जा रहा है। अमेरिका से इजराइल की हमले की योजना से जुड़े दस्तावेज लीक हो गए थे, जिससे ईरान को हमले के पैटर्न का कुछ अंदाजा मिल गया था। इसी कारण, इजराइल ने हमले की रणनीति में बदलाव कर कुछ दिनों की देरी से यह हमला किया।
हमले के बाद अमेरिका की प्रतिक्रिया
हमले से कुछ समय पहले इजराइल ने अमेरिका को अपनी योजना की जानकारी दी थी। फॉक्स न्यूज़ के मुताबिक, इजराइल ने अमेरिका को यह स्पष्ट कर दिया था कि यह हमला उसकी आत्मरक्षा के लिए है। इस हमले के बाद से अमेरिका और उसके सहयोगियों के बीच गुप्त बैठकों का दौर शुरू हो गया है, जिसमें आगे की रणनीति पर विचार किया जा रहा है।
ईरान का बावर 373 सिस्टम: क्या है इसकी ताकत?
ईरान ने इजराइल के हमले को नाकाम करने के लिए अपने ‘बावर 373’ एयर डिफेंस सिस्टम का इस्तेमाल किया। यह सिस्टम पांचवीं पीढ़ी के स्टेल्थ फाइटर जेट्स को ट्रैक करने और नष्ट करने की क्षमता रखता है। बावर 373 की रेंज 200 किलोमीटर है और यह 27 किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ने वाले टारगेट्स को निशाना बना सकता है। इसके अलावा, ईरान के पास रूस का ‘S-300’ सिस्टम भी है, जिसे सोवियत वायुसेना के लिए डिजाइन किया गया था।
इजराइल और ईरान के बीच तनावपूर्ण माहौल
इजराइल का यह हमला भविष्य के संघर्ष का संकेत भी हो सकता है। इजराइल के इस कदम से यह स्पष्ट है कि वह ईरान की चुनौती को हल्के में नहीं ले सकता। वहीं, ईरान ने भी यह संदेश दे दिया है कि वह हमलों का जवाब देने के लिए तैयार है। दोनों देशों के बीच चल रही तनातनी के बीच, रूस और उत्तर कोरिया जैसे देशों का समर्थन ईरान को मिला है, जो इस संघर्ष को और अधिक गंभीर बना सकता है।
क्या बदला पूरा हुआ?
इजराइल ने 1 अक्टूबर के हमले का जवाब 26 अक्टूबर को दे दिया, लेकिन यह सवाल बना हुआ है कि क्या इजराइल का बदला पूरा हो गया है? क्या इजराइल अब और हमले नहीं करेगा, या यह एक लंबी लड़ाई की शुरुआत है? दूसरी ओर, क्या ईरान इजराइल के इस हमले का जवाब देगा, और अगर देगा तो कैसे? यह सवाल अब भी अनुत्तरित हैं।
आगे क्या?
ईरान और इजराइल के बीच की यह तकरार केवल दोनों देशों तक सीमित नहीं है। इस संघर्ष में रूस, अमेरिका, सऊदी अरब, और अन्य वैश्विक ताकतें भी शामिल हैं, जो मध्य पूर्व के समीकरण को प्रभावित कर सकती हैं। जहां इजराइल अपनी सुरक्षा के लिए हमले कर रहा है, वहीं ईरान अपनी सैन्य क्षमता को मजबूत कर पलटवार की तैयारी कर रहा है। आने वाले दिनों में, यह देखना दिलचस्प होगा कि यह संघर्ष किस दिशा में जाता है और क्या दोनों देशों के बीच शांति की कोई उम्मीद है या नहीं।