
बलियोडीह गांव की सुबह आम दिनों जैसी ही थी। चौपाल पर बैठे बुजुर्ग ताश खेल रहे थे, औरतें कुएं से पानी भर रही थीं, और बच्चे मिट्टी में खेलते हुए शोर मचा रहे थे। लेकिन एक घर में मातम पसरा था। संपत्तिया देवी अब इस दुनिया में नहीं थीं। किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि वह औरत, जिसने सालों तक अपनी तकलीफों को सहा, अपने ही घर में इतनी दर्दनाक मौत मरेगी। कुछ कह रहे थे कि उसने खुद जहर खाकर जान दे दी, तो कुछ फुसफुसा रहे थे कि उसके पति, बेटे और बहू ने मिलकर उसे मार डाला।
सालों पहले जब संपत्तिया देवी की शादी बालदेव यादव से हुई थी, तो उसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसका जीवन इस तरह का होगा। वह नई दुल्हन बनकर जब इस घर में आई थी, तो उसे लगा था कि यह घर उसका अपना होगा, यही उसका संसार होगा। लेकिन वक्त के साथ उसकी यह उम्मीदें टूटती गईं। बालदेव एक रूखे, कठोर आदमी थे। शादी के कुछ साल तो ठीक गुजरे, लेकिन धीरे-धीरे उनकी बेरुखी बढ़ने लगी।
संपत्तिया देवी ने तीन बच्चों को जन्म दिया—दो बेटियां और एक बेटा। बेटियां शादी के बाद अपने-अपने घर चली गईं, और बेटा अपनी पत्नी के साथ इसी घर में रहने लगा। लेकिन घर में एक अजीब-सी बेचैनी हमेशा बनी रहती थी।
सबसे पहले संपत्तिया देवी को शक तब हुआ जब उसने देखा कि उसका पति और उसकी बहू घर में अकेले होते समय एक-दूसरे के साथ जरूरत से ज्यादा हंसी-मजाक करते हैं। वह नजरअंदाज करना चाहती थी, लेकिन यह सिलसिला बढ़ता ही गया। धीरे-धीरे पूरा गांव इस अनैतिक रिश्ते के बारे में बातें करने लगा।
जब संपत्तिया देवी ने अपने पति से इस बारे में बात की, तो उसने गुस्से में उसे झिड़क दिया। “तुझे जो सोचना है, सोच! लेकिन अब ज्यादा जुबान चलाई तो अच्छा नहीं होगा!”
उस दिन के बाद संपत्तिया देवी चुप हो गईं, लेकिन उनके भीतर एक ज्वालामुखी फूट रहा था। जब उन्होंने बेटे से इस बारे में कहा, तो उसने भी मां को ही गलत ठहरा दिया। “अम्मा, तुम हमेशा घर में झगड़ा करती हो! ये सब तुम्हारा वहम है!”
पर संपत्तिया देवी जानती थी कि यह वहम नहीं है।
दिन-ब-दिन उनकी जिंदगी नर्क बनती जा रही थी। घर में उनकी कोई इज्जत नहीं थी। बेटा, बहू और पति—तीनों मिलकर उनके साथ बुरा व्यवहार करते। कभी खाना नहीं देते, कभी मारपीट करते। और गांववालों के लिए यह सब बस एक “घर का मामला” था।
संपत्तिया देवी कई बार अपने रिश्तेदारों के पास गईं, अपनी बेटियों के पास भी गईं। लेकिन हर बार एक ही जवाब मिला—”मां, तुम ही समझौता कर लो। अब इस उम्र में कहां जाओगी?”
पर वह कब तक समझौता करती? कब तक सहती?
शुक्रवार की रात वह बहुत देर तक घर के आंगन में बैठी रही। दूर कहीं उल्लू बोल रहा था, और हवा में अजीब-सा सन्नाटा था। उसने देखा कि घर के भीतर उसका पति और उसकी बहू एक ही कमरे में थे। उसने बहुत सोचा, लेकिन अब उसमें और लड़ने की ताकत नहीं थी।
सुबह जब गांववालों ने उसके घर से रोने की आवाज सुनी, तो वहां जाकर देखा—संपत्तिया देवी की लाश आंगन में पड़ी थी। उनके मुंह से झाग निकल रहा था। कुछ लोग कह रहे थे कि उसने खुद जहर खा लिया, तो कुछ कह रहे थे कि उसके पति, बेटे और बहू ने जबरदस्ती उसे जहर खिला दिया।
जब उनकी बेटी ललिता को इस बात की खबर मिली, तो वह दौड़ती हुई गांव आई। घर सूना पड़ा था। उसके पिता, भाई और भाभी—तीनों फरार हो चुके थे।
ललिता ने रोते हुए कहा, “मेरी मां ने खुद जहर नहीं खाया! उसे मारा गया है!”
पुलिस आई, जांच-पड़ताल हुई। लेकिन क्या सच में संपत्तिया देवी को इंसाफ मिलेगा? या यह मामला भी हजारों ऐसे मामलों की तरह धीरे-धीरे भुला दिया जाएगा?
संपत्तिया देवी की मौत का सच क्या था—यह कोई नहीं जानता। लेकिन इतना जरूर है कि एक औरत, जिसने अपना पूरा जीवन अपने परिवार के लिए लगा दिया, आखिर में उसी परिवार ने उसे खत्म कर दिया। यह सिर्फ संपत्तिया देवी की कहानी नहीं थी, बल्कि उन हजारों महिलाओं की कहानी थी, जिनकी आवाज कभी सुनी ही नहीं जाती।