थप्पड़ – दिल को छूने वाली मोटिवेशनल कहानी ( Motivational Story In Hindi)

15 Min Read

पढ़ें ‘थप्पड़’ की दिल को छूने वाली प्रेरणादायक कहानी, जो आपको साहस, आत्मविश्वास और व्यक्तिगत विकास की ओर प्रेरित करेगी। यह कहानी आपको सशक्त बनाने वाली है।

थप्पड़ – दिल को छूने वाली मोटिवेशनल कहानी ( Motivational Story In Hindi)

जैसे ही वह थप्पड़ मेरे गाल पर आकर लगा, मेरे हाथ में जो मेंगो शेक की ट्रे थी, वो दूर जाकर गिरी। ट्रे में रखे सभी गिलास के टुकड़े-टुकड़े हो चुके थे। हर तरफ फर्श पर टूटे हुए गिलास के टुकड़े बिखरे हुए थे। और मैं भी फर्श पर एक तरफ गिरी पड़ी थी। कुछ होश नहीं था, कुछ पल के लिए मेरा दिमाग सुन्न हो चुका था। शायद थप्पड़ बहुत जोर से पड़ा था या फिर मैं उस थप्पड़ के लिए तैयार नहीं थी। उस थप्पड़ की गूंज से पूरे हॉल में शांति हो गई। किसी के भी मुंह से एक लफ्ज़ ना फूटा। मम्मी जी के चेहरे पर कुटिल मुस्कान आ गई जैसे यह थप्पड़ मारकर उनके बेटे ने कोई किला या गढ़ जीत लिया हो।

मैंने कांपते हुए अपने गाल पर हाथ फेरा। गाल जल रहा था, दर्द की एक लहर पूरे शरीर में दौड़ गई। आंखें भर आईं लेकिन आंसू बहाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। सामने खड़े वह, मेरे पति, जिन्होंने कुछ देर पहले ही मेरे हाथों से मेंगो शेक की ट्रे ली थी और फिर अचानक बिना किसी चेतावनी के मुझे थप्पड़ मार दिया था। कारण? शायद वही जो हर बार होता है, उनकी मां का कोई नया इल्जाम, कोई नया आरोप।

मैंने धीरे-धीरे खुद को संभाला और अपने लड़खड़ाते पैरों पर खड़ी हो गई। फर्श पर बिखरे कांच के टुकड़े मेरे पैरों में चुभ रहे थे, लेकिन उससे ज्यादा गहरी चोट मेरे आत्मसम्मान पर लगी थी। हॉल में खड़े रिश्तेदार, नौकर-चाकर, सभी सन्न थे। कुछ ने निगाहें फेर लीं, कुछ के चेहरे पर हल्की सहानुभूति दिखी, लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा।

“बहू को ज़रा अदब सिखाना ज़रूरी था,” मम्मी जी ने धीरे से कहा और अपनी साड़ी का पल्लू ठीक करते हुए आगे बढ़ गईं। उनकी आवाज़ में जीत की चमक थी।

मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि मेरे साथ यह सब कुछ हो गया। दो साल पहले जब इस घर में आई थी, तब सब कुछ कितना अलग था। शादी के शुरुआती दिन कितने मीठे थे, कितने सपनों से भरे हुए। वे भी तो कितने अलग थे—मुझे प्यार करने वाले, मेरा ध्यान रखने वाले। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए, मां-बेटे की इस जोड़ी का असली रूप सामने आने लगा। पहले तानों से शुरुआत हुई, फिर रोक-टोक, फिर छोटी-छोटी बातों पर आवाज़ उठाना, और आज… आज यह थप्पड़।

मन में अचानक एक सवाल उठा—क्या यही मेरा भविष्य है? क्या यही मेरी ज़िन्दगी होगी, जहां मैं किसी की ग़ुलाम बनकर, अपनी पहचान खोकर रहूंगी?

उस रात मैंने अपने कमरे में बैठकर बहुत सोचा। आईने में देखा तो गाल पर थप्पड़ का लाल निशान अब भी था। हाथ फेरने पर दर्द की लहर उठती, लेकिन यह दर्द अब मुझे कम लग रहा था। असली तकलीफ तो इस बात की थी कि मैंने इतना सब कुछ सहा क्यों?

आगे पढ़े

1. पति के घर में मेरी पहली शाम : मोटिवेशनल कहानी(Motivational Story In Hindi)

2. बेच दी गई जिंदगी – संघर्ष और सफलता की प्रेरणादायक कहानी (Motivational Story In Hindi)

3. एक बेटी की ख्वाहिश – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

4. गलती से सीख – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

5. कभी न माफ़ की जाने वाली गलती – एक खौ़फनाक कहानी

6.संस्कारों की सौगात – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

7. पहलवान और अठन्नी – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

8. शादी की पहली रात – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

9.खिड़की से झाँकती नज़रे – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

10. एक बेटी की ख्वाहिश – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

11. एक अजीब समझौता – लखनऊ में सिपाही और युवती की अनोखी प्रेम कहानी

12. कामिनी का फैसला – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

13. पापा की परी – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

14. बदलती जिंदगी – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

 

सुबह हुई, मैंने अपना बैग उठाया। मम्मी जी और वे दोनों ड्राइंग रूम में बैठे थे, जैसे कुछ हुआ ही न हो। मैंने चुपचाप दरवाजा खोला और बाहर निकल गई। इस बार किसी ने मुझे रोका नहीं। शायद उन्हें लगा कि मैं हमेशा की तरह वापस आ जाऊंगी।

गली से गुजरते हुए मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था। यह पहली बार था जब मैं इस घर को छोड़ रही थी, उस बंधन को तोड़ रही थी जिसने मुझे कैद कर रखा था। लेकिन क्या यह इतना आसान होगा? क्या वे मुझे यूं ही जाने देंगे? मेरे कदम खुद से ही सवाल पूछ रहे थे, लेकिन एक अजीब सी हिम्मत ने मेरे दिल में घर कर लिया था।

बस स्टॉप तक पहुंची ही थी कि पीछे से किसी ने मेरा हाथ पकड़ लिया। मैं चौंककर पलटी, सामने वे खड़े थे। आंखों में वही घमंड, वही अधिकार। “घर चलो,” उन्होंने ठंडे लहजे में कहा।

मैंने अपनी कलाई छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन उनकी पकड़ मजबूत थी। मैं हिम्मत करके बोली, “अब मेरा घर वह नहीं है।”

इतना सुनते ही उनका चेहरा लाल हो गया। “तुम्हें लगता है मैं तुम्हें यूं ही जाने दूंगा? मेरे बिना तुम कुछ नहीं कर सकती। तुम्हारा कोई सहारा नहीं है।”

मैंने पहली बार उनकी आंखों में झांका और मुस्कुरा दी। “सहारा चाहिए भी नहीं। अब मैं खुद अपने पैरों पर खड़ी होऊंगी।”

मैंने झटके से अपना हाथ छुड़ाया और आगे बढ़ गई। लेकिन तभी पीछे से उनकी आवाज़ आई, “अगर तुम गई, तो कभी लौट नहीं पाओगी!”

मैंने बिना रुके कहा, “यही तो चाहती हूं।”

बस आई, और मैं उसमें चढ़ गई। सीट पर बैठते ही मैंने एक गहरी सांस ली। खिड़की से बाहर देखा, वे अब भी वहीं खड़े थे, शायद उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि मैं सच में चली गई। लेकिन यह मेरा नया सफर था—खुद के लिए, खुद से।

गाड़ी चल पड़ी, और मैंने पीछे देखना बंद कर दिया।

बस स्टॉप से बाहर निकलते ही मैंने पहली बार खुली हवा में सांस ली। दिल हल्का नहीं था, लेकिन एक अजीब-सा सुकून था। ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी कैद से आज़ाद हो गई हूं, लेकिन साथ ही यह भी एहसास था कि आगे की राह आसान नहीं होगी। मैं घर से निकल तो आई थी, लेकिन अब क्या? कहां जाऊंगी? क्या करूंगी?

 

शादी से पहले मैं एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती थी। मेरी पहचान मेरी नौकरी, मेरा आत्मसम्मान और मेरा आत्मनिर्भर होना था। लेकिन शादी के बाद सब कुछ बदल गया। “अब तुम्हें नौकरी करने की जरूरत नहीं है,” यह सुनना मेरे लिए उतना ही चौंकाने वाला था जितना किसी परायों के घर में आने का एहसास।

 

ससुराल में हर किसी की यही राय थी—”घर संभालो, यही तुम्हारी असली जिम्मेदारी है।” मम्मी जी का तर्क था कि अच्छी बहुएं घर की देखभाल करती हैं, बाहर जाकर पैसा कमाना उनकी जिम्मेदारी नहीं होती। और मेरे पति? उन्होंने कभी खुलकर मुझसे नहीं कहा कि नौकरी छोड़ दूं, लेकिन उनका रवैया ऐसा था जैसे यह मेरा ही कर्तव्य था कि मैं सबकुछ छोड़कर सिर्फ घर और परिवार पर ध्यान दूं।

 

धीरे-धीरे, मेरा आत्म-सम्मान मरने लगा। मैं सिर्फ घर के कामों तक सीमित होकर रह गई थी। मेरी ज़िन्दगी सास-ससुर और रिश्तेदारों की फरमाइशें पूरी करने में ही खत्म हो रही थी। और जब मैंने इस व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश की, तब मुझे जवाब मिला एक थप्पड़ से।

 

उस दिन कुछ टूट गया था अंदर। वह सिर्फ एक थप्पड़ नहीं था, वह मेरे आत्म-सम्मान पर चोट थी। मैं पूरी रात सोचती रही—क्या यही मेरा भविष्य है? क्या मैं अपने आत्मसम्मान को यूं ही खत्म होने दूं? क्या एक औरत की ज़िन्दगी सिर्फ त्याग और सहने के लिए बनी है?

 

अगली सुबह, जब पूरा घर सो रहा था, मैंने अपने कुछ कपड़े और ज़रूरी दस्तावेज़ बैग में डाले और घर से निकल गई।

 

सबसे पहले मैंने अपनी सबसे करीबी दोस्त को फोन किया। वह कॉलेज के दिनों से मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी। जब मैंने उसे पूरी बात बताई, तो उसने बिना कुछ सोचे-समझे कहा, “सीधा मेरे घर आ जाओ।”

 

उसके घर पहुंचने पर मैं पहली बार खुलकर रोई। मुझे लगा कि मैं बहुत कमजोर हूं, लेकिन उसने मेरा हौसला बढ़ाया। “कमजोर मत बन, ये तेरा नया सफर है।” उसकी बातों ने मुझे ताकत दी।

 

अब सबसे ज़रूरी था नौकरी ढूंढना। मैंने अपने पुराने ऑफिस के कुछ लोगों से संपर्क किया, अपना रिज्यूमे अपडेट किया और इंटरव्यू के लिए अप्लाई करना शुरू कर दिया।

 

पर चीजें आसान नहीं थीं। “तीन साल का करियर ब्रेक है, हमें कोई और चाहिए,” कई कंपनियों ने यही जवाब दिया। मेरा आत्मविश्वास डगमगाने लगा, लेकिन मैंने हार नहीं मानी।

 

कुछ हफ्तों के संघर्ष के बाद, एक कंपनी ने मेरे आत्मविश्वास को पहचाना और मुझे मौका दिया। मैं जानती थी कि यहां से मुझे सिर्फ आगे बढ़ना है।

 

पहला दिन ऑफिस में बिताने के बाद महसूस हुआ कि मैंने खुद को कभी खोने नहीं दिया था। मैं अब भी वही सक्षम, आत्मनिर्भर लड़की थी जो शादी से पहले थी। बस, कुछ वक्त के लिए मैं खुद से दूर हो गई थी।

 

हर दिन मेहनत करती गई, खुद को साबित करती गई, और जल्द ही मुझे प्रमोशन मिला।

 

अब ज़िन्दगी बदल रही थी। मुझे अब किसी सहारे की जरूरत नहीं थी। मैं अपनी पहचान खुद बना चुकी थी।

 

जब घरवालों ने दोबारा शादी की बात छेड़ी, तो मैं असमंजस में पड़ गई। क्या मुझे फिर से वही गलती दोहरानी चाहिए? नहीं।

 

इस बार मैंने फैसला किया कि मैं सिर्फ उसी इंसान से शादी करूंगी जो मुझे, मेरे सपनों को और मेरी पहचान को समझेगा।

 

और फिर, एक दिन जब , मैं ऑफिस से लौट रही थी, और सामने वही जाना-पहचाना चेहरा था जिसने कभी मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई थी।। चेहरे पर पछतावा था, आंखों में दर्द था।

 

धीरे-धीरे वह मेरे पास आए और बोले, “मुझे माफ कर दो। मैंने जो किया, उसके लिए खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाया। तुम्हारे बिना घर, घर नहीं रहा। मुझसे गलती हो गई। क्या तुम मुझे एक मौका दोगी?”

 

मैं चुप रही। वही इंसान, जिसने मुझे थप्पड़ मारा था, आज मुझसे माफी मांग रहा था।

 

“तुम सही कह रही थी,” उसने कहा। “शादी प्यार और इज्जत से चलती है, अहंकार से नहीं। मैं तुमसे अपने हक के लिए लड़ने वाली औरत की तरह नहीं, बल्कि अपनी जीवनसंगिनी की तरह माफी मांग रहा हूं।”

 

मैंने लंबी सांस ली। प्यार में दूसरा मौका दिया जा सकता है, लेकिन आत्मसम्मान से समझौता नहीं किया जा सकता।

 

“अगर तुम सच में बदल गए हो, तो हम इस रिश्ते को एक और मौका दे सकते हैं,” मैंने धीरे से कहा। “लेकिन इस बार मैं अपनी शर्तों पर जिऊंगी, अपनी पहचान के साथ।”

 

उसने मेरी ओर देखा, उसकी आंखों में पहली बार सच्चा सम्मान था।

 

हमने फिर से एक नया सफर शुरू किया। इस बार प्यार, इज्जत और बराबरी के साथ।

 

क्योंकि हां, एक औरत को अपनी ज़िन्दगी के लिए लड़ना चाहिए, लेकिन परिवार के बिना हम अधूरे भी होते हैं। ज़िन्दगी सिर्फ लड़ाई से नहीं, समझदारी से भी जीती जा सकती है।

 

अब मैं एक बदली हुई औरत थी। एक ऐसी औरत, जो समझौता नहीं करती, बल्कि अपनी शर्तों पर ज़िन्दगी जीती है।

 

और शायद, यही सबसे बड़ी जीत थी।

Share This Article
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version