पापा की परी – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

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पापा की परी – एक प्रेरणादायक कहानी जो पापा और बेटी के रिश्ते की गहराई को दिखाती है। इस कहानी में विश्वास और प्यार की एक नई परिभाषा पढ़ें।

पापा की परी – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi)

मेरी बेटी सिया अब 18 साल की हो गई थी। वह एक समझदार, आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी लड़की है। मेरे बेटे अयान के भी अपने दोस्तों के साथ समय बिताने की आदत है, और मैं हमेशा उसे बिना किसी चिंता के जाने देता हूं। लेकिन उस दिन कुछ अलग हुआ।

शाम का समय था। अयान ने आते ही कहा, “पापा, मैं आज दोस्तों के साथ फिल्म देखने जा रहा हूं। शायद रात का खाना देर से होगा, आप लोग खाना खा लेना।” मैंने उसकी बात सुनी और बिना कुछ कहे, बस हल्के से सिर हिला दिया। उसकी मां ने भी उसकी बात को सामान्य रूप में लिया और अपने काम में लग गईं।

लेकिन यह सब सिया देख रही थी। वह मेरी तरफ देखने लगी। उसकी आंखों में कुछ सवाल थे। अचानक उसने कहा, “पापा, आपसे कुछ पूछना है।”

“पूछो बेटा,” मैंने उसे प्रोत्साहित किया।

“ऐसा क्यों है कि जब मैं कहीं बाहर जाने की बात करती हूं, तो आप और मम्मी मुझसे ढेर सारे सवाल पूछते हैं? कहां जा रही हूं, किसके साथ जा रही हूं, कितने बजे तक लौटूंगी, सब कुछ जानना चाहते हैं। लेकिन जब भैया कहीं जाने की बात करते हैं, तो आप कुछ भी नहीं पूछते। आप दोनों बिना कुछ कहे मान जाते हैं।”

उसकी बात सुनकर मैं थोड़ी देर के लिए चुप रह गया। यह सवाल मुझे अंदर तक झकझोर गया। मैंने कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया था कि हम अपने बेटे और बेटी के साथ कितना अलग व्यवहार करते हैं। सिया की बात में सच्चाई थी।

“सिया, बेटा, ऐसा कुछ नहीं है,” मैंने धीमे से कहा, लेकिन मैं खुद जानता था कि मैं अपनी बात पर खुद यकीन नहीं कर रहा था। उसकी आंखों में अभी भी सवाल थे, और मेरे पास कोई तर्क नहीं था।

वह आगे बोली, “पापा, अगर आज मैं कहती कि मैं अपने दोस्तों के साथ फिल्म देखने जा रही हूं, तो आप कितने सवाल करते? कौन-कौन से दोस्त होंगे, किस थिएटर में जाओगी, कितने बजे का शो है, और कितने बजे तक घर लौटोगी, ये सब आप जानना चाहते। लेकिन भैया से आपने कुछ नहीं पूछा। क्यों?”

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उसकी इस बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। अगर सिया ने वही बात कही होती, जो अयान ने कही थी, तो सच में मैंने उससे ये सब सवाल किए होते। यह समझना मुश्किल नहीं था कि हम समाज के बनाए हुए उन पुराने ढर्रों पर चल रहे थे, जहां बेटियों को लेकर अधिक चिंताएं होती हैं और बेटों को आज़ादी दी जाती है।

उस रात मैंने बहुत सोच-विचार किया। क्या मैं अपनी बेटी को अपने बेटे की तरह ही स्वतंत्रता नहीं दे सकता? क्या मेरी चिंता वाकई उसकी सुरक्षा के लिए है, या कहीं न कहीं यह समाज के उस पुराने विचार का हिस्सा है कि बेटियों को अधिक सुरक्षा की जरूरत होती है?

अगली सुबह मैंने सिया को अपने पास बुलाया। मैंने उसे बैठाकर कहा, “सिया, मुझे माफ कर दो। तुम सही कह रही हो। मैंने अनजाने में तुम दोनों के साथ अलग व्यवहार किया है। लेकिन अब मैं यह सुधारना चाहता हूं। तुम्हें भी उतनी ही आज़ादी मिलेगी जितनी अयान को मिलती है।”

और हां, अगर तुम्हें कभी लगे कि मैं तुम्हारे साथ कोई अन्याय कर रहा हूं, तो तुम मुझे जरूर बताना। अगर तुम्हारे साथ कुछ भी गलत हो, तो तुम्हें मुझसे शेयर करना पड़ेगा। आजकल बच्चे गलती कर देते हैं, फिर डर के कारण मां-बाप को नहीं बताते। तुम अपनी जिंदगी की उड़ान के लिए तैयार हो, लेकिन तुम्हें समझना होगा कि हमें कहां, कैसे और किस तरह चीजों को, अपने व्यवहार को सुधारना होगा। इससे हम दोनों के बीच विश्वास बनेगा, जैसे पापा और पापा की परी अब दोस्त भी बन गए हैं।

सिया ने मेरी तरफ देखा, उसकी आंखों में एक चमक थी। उसने मुझे गले लगाया और कहा, “धन्यवाद, पापा।”

उस दिन के बाद मैंने अपने दृष्टिकोण में बदलाव किया। मैंने सीखा कि हमें अपने बच्चों के प्रति समान दृष्टिकोण रखना चाहिए। यह बदलाव मेरे लिए भी एक सीख थी, और सिया के लिए भी। अब जब भी वह कुछ पूछती या कहीं जाने की बात करती, मैं उसे वही स्वतंत्रता देता जो अयान को देता था।

सिया की एक बात ने मेरे जीवन का दृष्टिकोण बदल दिया था। यह समझने में देर नहीं लगी कि बच्चों के प्रति समानता का भाव रखना कितना जरूरी है। चाहे बेटा हो या बेटी, दोनों को समान अधिकार और स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। यही सही पेरेंटिंग है।

और इस तरह, एक छोटी-सी बातचीत ने मेरे और मेरी बेटी के रिश्ते को और भी मजबूत बना दिया। यह कहानी न सिर्फ मेरे परिवार की, बल्कि हर उस परिवार की है, जो अनजाने में बेटियों के प्रति एक अलग दृष्टिकोण रखते हैं। वक्त बदल रहा है, और हमें भी इस बदलाव को अपनाना होगा।

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