“चाचा, मुझे उनके साथ मत भेजो! मैं चाची का हर कहना मानूँगी, सारा काम करूंगी, लेकिन मुझे इस तरह मत छोड़ो!” मेरी आवाज़ थरथरा रही थी, और आँसू मेरे गालों से बह रहे थे। लेकिन चाचा ने एक बार भी मेरी ओर नहीं देखा। चाची ने बस मेरी कलाई पकड़ी और मुझे जबरदस्ती कार की ओर धकेल दिया।
“तुम्हारी कीमत दी है इन्होने। अब ये तुम्हारी ज़िंदगी के मालिक हैं। हमारे पास वापस मत आना,” चाची ने मेरे आँसुओं और गिड़गिड़ाहट को अनसुना कर दिया।
कार का दरवाज़ा बंद हुआ और मैं सिसकते हुए खिड़की से देखती रही। चाचा-चाची धीरे-धीरे मेरी नजरों से दूर होते गए। उनकी बातें गूँज रही थीं, “अब ये हमारी जिम्मेदारी नहीं। पैसे मिल गए, अब जो करना है ये आदमी करेगा।”
कार में बैठे उस आदमी की कड़ी निगाहें और उसका रुखा लहज़ा मुझे अंदर तक डरा रहा था। “रोने से कुछ नहीं होगा। तुम्हारे चाचा-चाची ने खुद तुम्हें बेच दिया है,” उसने कहा। मेरी रूह काँप गई।
मेरी माँ बचपन में ही हमारा साथ छोड़ चुकी थी, तब से मेरे पापा ने मेरा ख्याल रखा। जब उन्हें ट्रक चलाने जाना होता था तो मुझे चाचा के पास छोड़ जाते थे और एक दिन पापा भी एक एक्सीडेंट में मुझे छोड़ कर हमेशा के लिए चले गए। मेरी आँखों में अब भी अपने पापा की यादें थीं, जो हमेशा मुझे समझाते थे कि मुझे कभी भी अपनी मुश्किलों से हार नहीं माननी चाहिए।
पापा का दिया हुआ बहुत सारा पैसा मेरे चाचा के पास था, जिससे वो मेरी पढ़ाई पूरी करवा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, बल्कि मुझे घर में नौकरानी बनाकर रखा। और आज… आज उन्होंने मुझे बेच ही दिया।
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सफर के हर मोड़ पर मेरे आँसू और डर बढ़ते जा रहे थे। यह आदमी कौन है? मुझे कहाँ ले जा रहा है? मेरा क्या होगा?
इतने में, उस आदमी ने मुझसे कहा, “तुम बस चुप रहो। कोई सवाल मत पूछो।”
उसकी आवाज़ में कठोरता थी, जैसे वह किसी बेज़ुबान जानवर से बात कर रहा हो। मैं डर के मारे कुछ नहीं कह सकी, बस खिड़की से बाहर देखती रही और सोचती रही कि क्या मेरी ज़िंदगी कभी फिर से ठीक होगी?
जब गाड़ी रुकती है, तो वह मुझे एक बड़े घर के पास ले जाता है। घर बहुत आलीशान था, लेकिन उसके भीतर कुछ खौ़फनाक था। दरवाजे पर खड़ा एक आदमी मुझे अंदर ले जाता है। वहां बहुत सारे लोग थे, कुछ उकसाने वाली निगाहों से मुझे देख रहे थे, जबकि कुछ सिर झुकाए हुए थे।
वह आदमी मुझे एक कमरे में ले गया और दरवाजा बंद कर दिया। “यहाँ तुमसे कुछ काम कराया जाएगा,” वह कहता है। मैं बेबस होकर कमरे में बैठ गई, और मेरी आँखों में बस अंधेरा था।
लेकिन तभी मुझे याद आया कि मेरे पापा ने मुझे हमेशा सिखाया था कि जो भी हो, अपने आत्म-सम्मान को कभी न खोना। मैं खुद को समेटने की कोशिश करती हूं और कमरे के कोने में रखी किताबों की ओर बढ़ती हूं। मुझे यह समझ में आता है कि मैं अगर खुद को इस हालत में छोड़ दूँगी तो कभी भी बाहर नहीं निकल पाऊँगी।
कुछ घंटों बाद, उस आदमी का गुस्सा और घमंड बढ़ने लगा। वह दिन-ब-दिन मुझे तंग करने लगा, लेकिन मुझे अब डर नहीं था। मुझे अब खुद को बचाना था, और मुझे यह एहसास हुआ कि मैं जो भी हूँ, मुझे अपने भीतर की शक्ति का एहसास करना होगा।
अगली रात, जब वह आदमी मुझे बाहर बुलाने आया, मैंने चुपके से चाकू को अपनी आस्तीन में छिपाया और बाहर निकल पाई। अब मेरे सामने एक चुनौती थी – क्या मैं भाग सकती हूँ? क्या मैं अपनी ज़िंदगी को एक नई दिशा दे सकती हूँ?
मैंने अपने डर को नकारते हुए कदम बढ़ाए। रास्ते में बहुत सारी मुश्किलें आईं, लेकिन हर कदम पर मैंने अपने पापा के सिखाए हुए शब्दों को याद किया – “हर कठिनाई में छुपा होता है एक मौका, अगर तुम हार नहीं मानोगे।”
मैं अंततः एक छोटी सी गली में पहुंची, जहाँ मुझे कुछ लोग मिले, जिन्होंने मेरी मदद की। उन्होंने मुझे एक सुरक्षित जगह दी और मुझे बताया कि मैं अकेली नहीं हूँ। वहाँ कुछ ऐसे लोग थे, जो मेरी तरह ही शोषण का शिकार हो चुके थे और अब वे अपनी जिंदगी की दिशा बदलने की कोशिश कर रहे थे।
यहाँ से मेरी ज़िंदगी ने मोड़ लिया। मैंने अपनी पढ़ाई फिर से शुरू की, और धीरे-धीरे अपनी मानसिकता को मजबूत किया। मैंने आत्म-निर्भर बनने का संकल्प लिया और धीरे-धीरे अपने जीवन को नए रास्ते पर डाला।
आज मैं एक सफल व्यवसायी हूँ, और मेरा सपना है कि मैं उन लड़कियों के लिए काम कर सकूं, जो मेरी तरह किसी बुरे दौर से गुजर रही हैं। मैंने हमेशा इस बात को माना कि हमारी ज़िंदगी केवल हमारे हाथों में होती है, और हम कभी भी किसी से डरकर हार नहीं मान सकते।
मुझे यह समझ में आया कि यदि हम अपने आत्म-सम्मान और मेहनत पर विश्वास रखें, तो कोई भी मुश्किल हमारी राह को नहीं रोक सकती।