नई दिल्ली: ब्रिक्स (BRICS) में शामिल होने की पाकिस्तान की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा है। चीन और रूस के समर्थन के बावजूद, पाकिस्तान को इस महत्वपूर्ण समूह में प्रवेश नहीं मिल पाया है। इतना ही नहीं, उसे ब्रिक्स के नए पार्टनर देशों की सूची में भी जगह नहीं मिली। वहीं, तुर्की जैसे देशों को इस सूची में शामिल कर लिया गया, जिससे पाकिस्तान की कोशिशें नाकाम हो गईं। पाकिस्तान की एंट्री न होने के पीछे भारत के कड़े रुख को एक प्रमुख वजह माना जा रहा है।
पाकिस्तान को चीन-रूस का समर्थन भी न दिला सका एंट्री
पाकिस्तान को ब्रिक्स में शामिल करने के लिए चीन ने पूरी कोशिश की थी। चीन ने पाकिस्तान को भरोसा दिलाया था कि वह उसे ब्रिक्स में शामिल करेगा, और इस प्रयास में रूस भी उसके साथ था। हालांकि, भारत ने पाकिस्तान की एंट्री का कड़ा विरोध किया, जिससे उसकी राहें मुश्किल हो गईं। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स बैठक में साफ कहा कि नए देशों को शामिल करने के लिए सर्वसम्मति जरूरी है। उन्होंने संकेतों में ही यह स्पष्ट कर दिया कि भारत पाकिस्तान की एंट्री के पक्ष में नहीं है।
पीएम मोदी का कड़ा संदेश: आतंकवादियों को पनाह देने वालों के लिए नहीं है जगह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स बैठक के दौरान आतंकवाद के मुद्दे पर भी कड़ा रुख अपनाया। उन्होंने साफ कहा कि आतंकवाद और उसे बढ़ावा देने वाली ताकतों के लिए ब्रिक्स जैसे मंच पर कोई जगह नहीं होनी चाहिए। भारत के इस रुख से यह स्पष्ट था कि पाकिस्तान जैसे देश, जो आतंकवाद का समर्थन करते हैं, उन्हें इस समूह में शामिल होने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।
पाकिस्तान की कूटनीति पर पानी फिरा, भारत का बड़ा खेल
पाकिस्तान ने पिछले साल ब्रिक्स की सदस्यता के लिए औपचारिक रूप से आवेदन किया था। इसके बाद से ही उसने ब्रिक्स के कई सदस्य देशों का दौरा किया और समर्थन हासिल करने की कोशिश की। लेकिन भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वह पाकिस्तान को समूह में शामिल करने के पक्ष में नहीं है। भारत का मानना है कि पाकिस्तान की सदस्यता से ब्रिक्स के मूल उद्देश्यों पर असर पड़ सकता है।
पाकिस्तान ने चीन के माध्यम से यह उम्मीद जताई थी कि भारत का विरोध बेअसर होगा, लेकिन पीएम मोदी की कूटनीति और भारत की मजबूत स्थिति ने उसके सपनों पर पानी फेर दिया। भारत के कड़े रुख के कारण चीन और रूस के समर्थन के बावजूद पाकिस्तान को ब्रिक्स में प्रवेश नहीं मिल सका।
रूस और चीन की मदद भी न आई काम, पाकिस्तान को नहीं मिला मौका
रूस के उप प्रधानमंत्री एलेक्सी ओवरचुक ने हाल ही में पाकिस्तान दौरे के दौरान कहा था कि रूस ब्रिक्स सदस्यता के लिए पाकिस्तान के आवेदन का स्वागत करता है। पाकिस्तान को उम्मीद थी कि रूस और चीन के समर्थन से उसके लिए ब्रिक्स के दरवाजे खुलेंगे। लेकिन भारत की मजबूत कूटनीति के चलते यह प्रयास भी असफल रहा। भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वह केवल उन्हीं देशों को शामिल करने के पक्ष में है, जो आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख रखते हैं।
पाकिस्तान ने भारत पर लगाए आरोप, लेकिन बदली नहीं किस्मत
पिछले साल जून में, पाकिस्तान ने यह आरोप लगाया था कि ब्रिक्स के एक सदस्य ने उसकी एंट्री को रोक दिया। हालांकि, उसने सीधे तौर पर भारत का नाम नहीं लिया, लेकिन यह इशारा जरूर किया कि भारत के कारण ही उसकी कोशिशें नाकाम हुईं। इसके बावजूद, इस साल पाकिस्तान को पूरी उम्मीद थी कि वह ब्रिक्स का हिस्सा बन सकेगा।
ब्रिक्स में भारत का रुतबा बढ़ा, पाकिस्तान की कूटनीतिक हार
भारत ब्रिक्स का संस्थापक सदस्य है, जिसने हमेशा इस संगठन के विकास और विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वहीं, पाकिस्तान ने ब्रिक्स में शामिल होकर अपने लिए एक नया आर्थिक और कूटनीतिक मंच तलाशने की कोशिश की थी। लेकिन भारत के कड़े रुख ने न केवल पाकिस्तान की उम्मीदों पर पानी फेरा बल्कि यह भी साबित किया कि ब्रिक्स के फैसलों में भारत का रुतबा कितना अहम है।
भारत ने साफ संदेश दिया है कि ब्रिक्स जैसे महत्वपूर्ण मंच पर सिर्फ उन्हीं देशों का स्वागत होगा, जो आतंकवाद और उसकी विचारधारा को पूरी तरह नकारते हैं।
निष्कर्ष: भारत की कूटनीति की जीत, पाकिस्तान के लिए बड़ी हार
भारत ने एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी स्थिति को मजबूती से साबित किया है। ब्रिक्स जैसे महत्वपूर्ण संगठन में पाकिस्तान की एंट्री को रोककर भारत ने यह दिखा दिया है कि वह आतंकवाद के खिलाफ अपने रुख पर कोई समझौता नहीं करेगा। वहीं, पाकिस्तान के लिए यह एक बड़ा झटका है, जिसने चीन और रूस के सहारे ब्रिक्स में शामिल होने की कोशिश की थी। भारत की कूटनीतिक जीत से जहां उसके समर्थकों में खुशी की लहर है, वहीं पाकिस्तान को अपने नाकाम प्रयासों से सबक लेना चाहिए।