पढ़िए उस बहू की प्रेरणादायक कहानी जो अपने घर को संभालने में दिन-रात मेहनत करती है और परिवार को जोड़े रखती है।
सर्दी का मौसम था और सोफे पर आराम से बैठे रमेश जी टीवी देख रहे थे। उनकी आँखें स्क्रीन पर टिकी थीं, लेकिन उनका ध्यान कभी-कभी घर के अन्य कामों की ओर भी जाता था। अचानक उन्होंने आवाज़ दी, “बहू, देखो कौन आया है।”
अनिता, जो किचन में व्यस्त थी, जल्दी से हाथ धोकर दरवाजे की ओर बढ़ी। दरवाजे के पास एक महिला खड़ी थी। अनिता ने विनम्रता से पूछा, “जी, आप कौन?”
महिला ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं महिलाओं की स्थिति पर एक सर्वे कर रही हूँ, उसी सिलसिले में आई हूँ।”
रमेश जी ने ये सुना और तुरंत सोफे से उठकर बाहर आ गए। उन्होंने महिलाओं के मुद्दों पर हमेशा खुलकर बात की थी, और आज भी वो कुछ इसी तरह का अवसर तलाश रहे थे। “हाँ, पूछिए।” रमेश जी ने महिला से कहा।
महिला ने सवाल पूछा, “आपकी बहू वर्किंग हैं या हाउसवाइफ?”
अनिता को कुछ बोलने का मौका नहीं मिला, क्योंकि रमेश जी गर्व से बोल पड़े, “वो कामकाजी हैं।”
महिला को हैरानी हुई और उसने अगला सवाल किया, “अच्छा? किस कंपनी में और क्या पद है उनका?”
रमेश जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “वो नर्स हैं, जो हमारे स्वास्थ्य का ख्याल रखती हैं। हर छोटी-बड़ी जरूरत पर ध्यान देती हैं। मेरे आराम से टीवी देखने के पीछे उन्हीं की मेहनत है।”
महिला ने थोड़ी चौंकते हुए पूछा, “लेकिन वो तो घर पर ही रहती हैं, तो कामकाजी कैसे?”
रमेश जी ने हंसते हुए जवाब दिया, “वो बच्चों की केयरटेकर भी हैं। नहलाने, खिलाने, स्कूल भेजने से लेकर उनकी हर जरूरत पूरी करती हैं। बच्चों को रात में नींद भी उनकी थपकी से आती है। घर में जो शांति और अनुशासन है, वह उनकी मेहनत का ही नतीजा है।”
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महिला ने फिर से सवाल किया, “तो क्या वो बस घर की कामकाजी हैं?”
रमेश जी ने अपने बेटे के बारे में बताते हुए कहा, “वो सिर्फ घर के काम नहीं करतीं, बल्कि वह ट्यूटर भी हैं। बच्चों की पढ़ाई का पूरा जिम्मा उनके कंधों पर है। रिश्तेदारों का आदर और घर के सभी संबंधों को निभाने में भी वह माहिर हैं।”
महिला थोड़ी असमंजस में पड़ गई और बोली, “लेकिन फॉर्म में ऐसा कोई कॉलम नहीं है, जो उन्हें वर्किंग बता सके।”
रमेश जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “फिर तो आपका सर्वे अधूरा है। आप यह समझने से चूक रही हैं कि ऐसी मेहनत और समर्पण का मूल्यांकन किसी सैलरी से नहीं हो सकता। मेरी बहू की ‘इनकम’ हमारे घर की खुशियां हैं।”
महिला का चेहरा थोड़ी देर के लिए धुंधला हो गया। उसे यह एहसास हुआ कि घर के भीतर महिलाओं की भूमिका सिर्फ किचन तक सीमित नहीं होती, बल्कि उनका योगदान कहीं अधिक होता है। उनका प्यार, देखभाल, और संघर्ष एक घर की सबसे मजबूत नींव है। हालांकि महिला कुछ बोल नहीं पाई, लेकिन रमेश जी की बात ने उसे गहरी सोच में डाल दिया।
वह धीरे-धीरे मुड़ी और सिर झुकाकर चुपचाप बाहर निकल गई। उसकी सोच में कुछ बदल चुका था। उस दिन उसे यह समझ में आया कि एक महिला की मेहनत को सिर्फ उसके कामकाजी होने से नहीं मापा जा सकता। घर के अंदर की जो मेहनत होती है, वह उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी किसी ऑफिस में की जाने वाली मेहनत।
घर में लौटकर अनिता ने देखा, ससुर जी को मुस्कुराते हुए अपनी पसंदीदा कुर्सी पर बैठे हुए। उनके चेहरे पर गर्व और संतोष था। अनिता को यह समझने में देर नहीं लगी कि उनके ससुर का दृष्टिकोण असल में पूरे समाज की सोच को बदलने की दिशा में एक कदम था।
“धन्यवाद ससुर जी,” अनिता ने मन में कहा, “आपने मुझे आज फिर से एहसास दिलाया कि घर की असल मेहनत कभी भी नजरअंदाज नहीं होनी चाहिए।”
रमेश जी ने बिना जवाब दिए टीवी पर ध्यान लगाते हुए कहा, “हमेशा याद रखना बेटा, मेहनत सिर्फ पैसे कमाने तक सीमित नहीं होती। असली मेहनत तो उसी में है जो आपको किसी इनकम टैक्स स्लैब में नहीं फिट बैठती, लेकिन घर की खुशियों में समाई रहती है।”
अनिता मुस्कुराई और सोचने लगी कि शायद अब वक्त आ गया है जब समाज को यह समझाया जाए कि परिवार की असल धुरी महिला ही होती है, जो हर रोज अपने छोटे-छोटे कार्यों से घर को एक साथ जोड़ कर रखती है। उसने महसूस किया कि ससुर जी ने न सिर्फ घर के भीतर का सम्मान बढ़ाया है, बल्कि समाज में भी एक नई सोच की नींव रखी है।
ससुर रमेश जी की बातों ने ना सिर्फ अनिता बल्कि उस महिला को भी एक नई दृष्टि दी। वह इस सवाल का उत्तर नहीं ढूंढ़ पाई, लेकिन इस छोटी सी मुलाकात ने उसकी सोच को हमेशा के लिए बदल दिया था।