जूनियर एनटीआर, सैफ अली खान और जान्हवी कपूर के शानदार अभिनय से सजी यह फिल्म कोराटाला शिवा के निर्देशन में बनी है। लेकिन क्या फिल्म वाकई मनोरंजन के सभी मापदंडों पर खरी उतरती है, या फिर यह एक और आम मसाला एंटरटेनर है?
देवरा पार्ट 1: क्या वाकई यह फिल्म दर्शकों की उम्मीदों पर खरी उतरती है?
देवरा पार्ट 1 की कहानी रत्नागिरी नामक एक छोटे से तटीय गाँव की पृष्ठभूमि पर आधारित है। यहाँ देवरा (जूनियर एनटीआर) का बड़ा नाम है, जो अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहा है। देवरा के साथ ही गाँव के प्रमुख व्यवसाय में भैरा (सैफ अली खान) और रायप्पा (श्रीकांत) भी शामिल हैं, जो मुरुगा (मुरली शर्मा) के साथ मिलकर अवैध तस्करी और खतरनाक धंधों में लिप्त हैं।
कहानी में मोड़ तब आता है, जब देवरा को इस गंदे धंधे से नफरत हो जाती है और वह इससे बाहर निकलना चाहता है। लेकिन भैरा को यह मंजूर नहीं होता और वह देवरा के खिलाफ साजिश रचता है। कुछ सालों बाद, देवरा का बेटा वारा (जूनियर एनटीआर का डबल रोल) कहानी में प्रवेश करता है। वारा और भैरा के बीच के रिश्ते को देखते हुए कहानी में कई सवाल खड़े होते हैं — क्या देवरा अब भी जिंदा है? भैरा ने देवरा को मार डाला या उसे ढूंढा? वारा अपने पिता की हत्या के बाद भैरा का साथ क्यों दे रहा है?
फिल्म की गहराई में जाएं तो…
देवरा पार्ट 1 की कहानी में एक्शन, ड्रामा, और बदले की भावना प्रमुखता से दिखाई देती है। कोराटाला शिवा, जो इसके लेखक और निर्देशक दोनों हैं, ने पूरी फिल्म को बड़े कैनवास पर प्रस्तुत किया है। फिल्म के पहले भाग में दर्शकों को गाँव का माहौल, अवैध धंधों में शामिल प्रमुख किरदारों का परिचय, और देवरा के जीवन में आए बदलाव की झलक दिखाई जाती है।
फिल्म का पहला हाफ जहाँ घटनाओं का निर्माण करता है, वहीं दूसरा हाफ बदले की भावना, भावनाओं और एक्शन से भरपूर है। देवरा के बेटे वारा का भैरा के साथ खड़े होने के पीछे का राज, फिल्म की सस्पेंस को बनाए रखता है। कहानी में हर एक किरदार का एक स्पष्ट मकसद है, और यही फिल्म को एक दिशा देता है। लेकिन कहीं-कहीं कहानी की गति थोड़ी धीमी हो जाती है, जिससे दर्शकों का कनेक्शन टूट सकता है।
अभिनय:
जूनियर एनटीआर का डबल रोल इस फिल्म की जान है। देवरा और वारा के दो चरित्रों को निभाते हुए उन्होंने बखूबी दर्शाया है कि कैसे एक अभिनेता अपनी हर भूमिका को नए रंग में रंग सकता है। देवरा के रूप में उनका दमदार और मजबूत व्यक्तित्व दिखता है, जबकि वारा के किरदार में वह पूरी तरह मासूम और एक बेटा है जो अपने पिता की मौत का बदला लेना चाहता है। जूनियर एनटीआर का यह प्रदर्शन फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष है।
सैफ अली खान ने भैरा के रूप में पूरी तरह से एक नए अवतार में खुद को पेश किया है। एक ऐसा किरदार जो गुस्से, धोखे, और बदले की भावना से भरा हुआ है। उनकी बॉडी लैंग्वेज, संवाद अदायगी और चेहरे के हाव-भाव, सब कुछ फिल्म के किरदार के अनुरूप है। हालांकि, कुछ दृश्यों में उनकी ओवरएक्टिंग महसूस होती है, लेकिन समग्र रूप से उन्होंने एक दमदार खलनायक की भूमिका निभाई है।
जान्हवी कपूर की बात करें, तो उनका किरदार सीमित है, लेकिन जितने भी दृश्य उनके हिस्से आए हैं, उनमें उन्होंने अपनी छाप छोड़ी है। उनका मासूम चेहरा और गांव की लड़की का रूप दर्शकों को प्रभावित करता है, लेकिन उन्हें और स्क्रीन स्पेस मिल सकता था।
अन्य सह-कलाकारों में श्रीकांत, मुरली शर्मा, प्रकाश राज ने भी अपने-अपने किरदारों को बखूबी निभाया है। फिल्म में हर कलाकार की अपनी एक अहमियत है, जिससे कहानी आगे बढ़ती है।
फिल्म की खास बातें (प्लस पॉइंट्स):
- जूनियर एनटीआर का डबल रोल:
देवरा और वारा के रूप में उनका अभिनय फिल्म का मुख्य आकर्षण है। - सैफ अली खान की दमदार एंट्री:
भैरा के रूप में उनका खलनायक रूप प्रभावशाली है। - अनिरुद्ध रविचंदर का संगीत:
फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर और गाने कहानी में जान डालते हैं। - भव्य लोकेशन और सिनेमैटोग्राफी:
हर एक दृश्य को जीवंत बनाने के लिए की गई सिनेमैटोग्राफी काबिल-ए-तारीफ है।
फिल्म की कमजोर कड़ियाँ (माइनस पॉइंट्स):
- कहानी की धीमी गति:
फिल्म का दूसरा हाफ धीमा है, जो दर्शकों को बोर कर सकता है। - जान्हवी कपूर का सीमित रोल:
जान्हवी की भूमिका को और विस्तार दिया जा सकता था। - अनावश्यक खींची गई कहानी:
कुछ दृश्यों को छोटा किया जा सकता था, ताकि फिल्म की गति बनी रहे।
निर्देशन:
कोराटाला शिवा, जो तेलुगु सिनेमा के एक प्रसिद्ध निर्देशक और लेखक हैं, ने इस फिल्म को एक बड़े कैनवास पर बनाने का प्रयास किया है। उन्होंने हर किरदार को विस्तार से उभारा है और कहानी को दर्शकों के दिल तक पहुँचाने का प्रयास किया है। हालांकि, फिल्म का दूसरा भाग थोड़ा धीमा महसूस होता है, जहाँ दर्शक यह उम्मीद करते हैं कि कहानी तेजी से आगे बढ़ेगी। कुछ दृश्यों में कहानी को जबरदस्ती खींचा गया लगता है, जिससे इसकी लंबाई बढ़ जाती है।
निर्देशन की बात करें तो, कोराटाला शिवा ने फिल्म के हर दृश्य को भव्यता से प्रस्तुत किया है। चाहे वह रत्नागिरी का गाँव हो, या समुद्र के किनारे की भव्य लोकेशन्स—हर एक दृश्य का सिनेमैटोग्राफी बेहतरीन है। यह कहना गलत नहीं होगा कि फिल्म की भव्यता ही इसकी मुख्य यूएसपी है।
कुल मिलाकर:
देवरा पार्ट 1 एक ऐसी फिल्म है, जिसमें एक्शन, ड्रामा, और बदला है। जूनियर एनटीआर और सैफ अली खान की शानदार अदाकारी, अनिरुद्ध रविचंदर का संगीत, और कोराटाला शिवा का भव्य निर्देशन—इन सभी ने मिलकर इस फिल्म को एक मनोरंजक एक्शन-ड्रामा बना दिया है। अगर आप जूनियर एनटीआर के फैन हैं, तो यह फिल्म आपको निराश नहीं करेगी। लेकिन अगर आप एक ऐसी कहानी की उम्मीद कर रहे हैं, जिसमें गहराई हो, तो आपको थोड़ा धैर्य रखना होगा।