दिल्ली: कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो पर राजनीतिक संकट गहराता जा रहा है। उनकी ही पार्टी के असंतुष्ट सांसदों ने उनके इस्तीफे की मांग की है और 28 अक्टूबर तक का समय दिया है। इस घटनाक्रम ने लिबरल पार्टी के भीतर लंबे समय से चल रहे असंतोष को सार्वजनिक रूप से उजागर कर दिया है। सीबीसी न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, बंद कमरे में हुई बैठक में असंतुष्ट सांसदों ने अपनी शिकायतें ट्रूडो के सामने रखीं, जिससे पार्टी के भीतर गहरे मतभेद स्पष्ट हो गए हैं।
असंतुष्ट सांसदों का विरोध: पार्टी में दरारें गहरी
लिबरल पार्टी के सांसदों की एक बैठक में, हाउस ऑफ कॉमन्स के सत्र के दौरान, जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व को लेकर गंभीर असंतोष व्यक्त किया गया। इस बैठक में सांसदों ने ट्रूडो को लेकर अपनी चिंताओं और असहमति को खुलकर सामने रखा। खासकर ब्रिटिश कोलंबिया के सांसद पैट्रिक वीलर ने एक दस्तावेज प्रस्तुत किया, जिसमें ट्रूडो के इस्तीफे की मांग का समर्थन किया गया। उन्होंने तर्क दिया कि ट्रूडो के पद छोड़ने से पार्टी को आगामी चुनावों में बेहतर प्रदर्शन का मौका मिल सकता है।
पार्टी के भीतर से दबाव में ट्रूडो
सीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, 24 सांसदों ने ट्रूडो के इस्तीफे के पक्ष में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। यह राजनीतिक हलचल ऐसे समय में हो रही है, जब कनाडा की राजनीतिक स्थिति अस्थिरता की ओर बढ़ रही है। ट्रूडो के खिलाफ पार्टी के भीतर पनप रहे असंतोष की आवाजें अब धीरे-धीरे तेज हो रही हैं। सांसदों का कहना है कि पार्टी को नई दिशा में ले जाने के लिए नेतृत्व में परिवर्तन की जरूरत है।
तीन घंटे चली बैठक: सांसदों ने व्यक्त की निराशा
तीन घंटे लंबी बैठक के दौरान, हर सांसद को अपनी बात रखने के लिए दो-दो मिनट का समय दिया गया। इसमें कई सांसदों ने ट्रूडो को सीधे सुझाव दिया कि वह अगले चुनाव से पहले अपने पद से इस्तीफा दें। हालांकि, बैठक में ट्रूडो के समर्थक सांसद भी मौजूद थे, जिन्होंने उनके नेतृत्व का समर्थन किया। इमिग्रेशन मंत्री मार्क मिलर ने ट्रूडो को लेकर उठी चिंताओं को स्वीकार करते हुए कहा, “यह एक लंबी चलती आ रही प्रक्रिया है। कुछ सांसदों ने अपने विचार खुले तौर पर व्यक्त किए हैं, जो एक स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है।”
भारत-कनाडा के तनाव से जस्टिन ट्रूडो पर बढ़ा दबाव
कनाडा में राजनीतिक अस्थिरता का एक बड़ा कारण भारत और कनाडा के बीच बढ़ता तनाव भी है। पिछले साल, जस्टिन ट्रूडो ने कनाडाई संसद में यह दावा किया था कि खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ है और इसके “विश्वसनीय” सबूत उनके पास हैं। इस बयान के बाद से ही दोनों देशों के संबंधों में खटास आ गई। भारत ने ट्रूडो के इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया और इसे बेबुनियाद और प्रेरित बताया। भारत ने कनाडा पर अपने देश में चरमपंथी और भारत विरोधी तत्वों को शरण देने का आरोप भी लगाया था।
ट्रूडो के लिए मुश्किल समय, इस्तीफे का दबाव बढ़ा
भारत और कनाडा के बीच कूटनीतिक तनाव के चलते जस्टिन ट्रूडो की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी नुकसान हुआ है। जहां एक ओर भारतीय पक्ष ट्रूडो की नीतियों और बयानबाजी को लेकर आलोचना कर रहा है, वहीं दूसरी ओर कनाडा में भी उनकी पार्टी के सांसदों के भीतर निराशा बढ़ रही है। इसे देखते हुए, कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रूडो के इस्तीफे की मांग सिर्फ उनकी पार्टी के भीतर की नाराजगी का नतीजा नहीं है, बल्कि यह उनके अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर पड़े असर का भी परिणाम है।
क्या ट्रूडो देंगे इस्तीफा या करेंगे मुकाबला?
सांसदों के अल्टीमेटम के बाद अब सबकी नजरें 28 अक्टूबर पर टिकी हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि जस्टिन ट्रूडो इस चुनौती का सामना कैसे करते हैं। क्या वह अपनी पार्टी में सुधार कर, असंतोष को शांत कर पाएंगे, या फिर उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ेगा? फिलहाल, ट्रूडो के लिए यह समय बेहद कठिन है। वह अपनी पार्टी के भीतर बढ़ते दबाव के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के साथ तनावपूर्ण संबंधों का भी सामना कर रहे हैं।
निष्कर्ष
कनाडा की राजनीति में इस समय उथल-पुथल का दौर है। जस्टिन ट्रूडो पर उनकी ही पार्टी के सांसदों का दबाव उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े करता है। हालांकि, यह देखना बाकी है कि ट्रूडो इस चुनौती को कैसे लेते हैं। 28 अक्टूबर तक अगर वह अपनी पार्टी के असंतोष को शांत करने में सफल नहीं होते हैं, तो कनाडा की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।