महमूद साहब का घर दौरा – मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story In Hindi) एक प्रेरणादायक कहानी है जो रिश्तों की अहमियत और संघर्ष की सच्चाई को उजागर करती है।
आज सलीम के घर एक अहम दिन था। उसका मालिक, महमूद साहब, पहली बार उसके घर आ रहे थे। सलीम ने सुबह से ही घर को साफ करने और चाय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। वह जानता था कि आज उसके मालिक के आने से घर में थोड़ी और इज्जत और शान बढ़ेगी। मालिक के साथ किसी तरह की कोई कमी नहीं होनी चाहिए।
महमूद साहब जैसे ही सलीम के घर पहुंचे, उन्होंने अंदर कदम रखते ही आवाज दी, ‘‘अजी सुनती हो?’’
‘‘आई…’’ अंदर से सलीम की पत्नी, फातिमा ने आवाज दी।
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कुछ ही देर बाद, फातिमा सलीम के सामने खड़ी थी, लेकिन उसने किसी अनजान शख्स को देखा, तो स्वाभाविक रूप से घूंघट कर लिया। यह उसके घर की रिवायत थी कि घर के बाहर कोई अनजान शख्स आए, तो घूंघट किया जाता था। फातिमा थोड़ा झिझकी हुई और सिर झुका लिया।
‘‘फातिमा, यह महमूद साहब हैं… हमारे मालिक।’’ सलीम ने अपनी पत्नी को पहचान दिलाई, ‘‘आज मैं काम पर निकला था, लेकिन सिर में दर्द होने के चलते मुख्य चौक पर बैठ गया और चाय पीने लगा। मगर महमूद साहब हालचाल जानने और लेट होने के चलते इधर ही आ रहे थे।’’
‘‘मुझे चौक पर देखते ही उन्होंने पूछा, ‘क्या आज काम पर नहीं जाना?’’’ सलीम ने आगे बताया।
‘‘इनको सामने देख कर मैंने कहा, ‘मेरे सिर में काफी दर्द है, आज नहीं जा पाऊंगा।’’’ सलीम ने फिर कहा, ‘‘इस पर महमूद साहब ने कहा, ‘चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं।’’
‘‘देखो, आज पहली बार महमूद साहब हमारे घर आए हैं, कुछ चायपानी का इंतजाम करो,’’ सलीम ने कहा।
फातिमा थोड़ा सा घूंघट हटा कर बोली, ‘‘अभी करती हूं।’’
फातिमा के चेहरे का थोड़ा सा हिस्सा नजर आने से महमूद साहब ने उसे देखा और जैसे उनके पैरों तले से ज़मीन खिसक गई। वह सोच रहे थे कि क्या यह सचमुच वही फातिमा है, जिसके बारे में उन्होंने सुना था।
फातिमा का चेहरा मानो चाँद जैसा दमक रहा था। लंबे, घने बाल और एक सांचे में ढला हुआ गदराया बदन। उसके नैन-नक्श बिल्कुल किसी अप्सरा की तरह थे, उसकी लंबी कदकाठी और सुडौल शरीर देख कर महमूद साहब के दिल में हलचल मच गई थी। वह उस पर नज़रें टिकाए हुए थे।
फातिमा चाय लेकर आई और महमूद साहब की तरफ बढ़ाते हुए बोली, ‘‘चाय लीजिए।’’
महमूद साहब ने चाय का कप पकड़ तो लिया, लेकिन उनकी नजरें फातिमा के चेहरे से हट नहीं रही थीं। वह कुछ देर तक चाय के कप को देखते रहे और फिर धीरे-धीरे उठते हुए बोले, ‘‘फातिमा, तुम बहुत अच्छे से चाय बनाती हो।’’
फातिमा चुपचाप खड़ी रही और फिर सलीम को चाय देकर अंदर चली गई।
इसी दौरान, महमूद साहब ने सलीम से पूछा, ‘‘सलीम, तुम्हारी बीवी पढ़ी-लिखी कितनी है?’’
सलीम ने अपनी पत्नी का हवाला देते हुए कहा, ‘‘10वीं जमात पास तो उसने अपने मायके में ही कर ली थी, लेकिन यहां मैं ने 12वीं तक पढ़ाया है।’’ सलीम ने खुश होते हुए कहा।
महमूद साहब ने फिर आगे पूछा, ‘‘तो फिर तुम ने अपनी बीवी को पढ़ाई में क्यों बढ़ावा दिया?’’
सलीम हंसते हुए बोला, ‘‘जब फातिमा के माता-पिता नहीं रहे, तब से मैं ही उसका सहारा हूं। वह बहुत मेहनती और समझदार है। मैंने चाहा कि वह पढ़े-लिखे, ताकि उसका आत्मविश्वास बढ़े और किसी भी कठिनाई का सामना कर सके।’’
महमूद साहब ने अब सलीम की सोच और विचारधारा को सराहा और फिर चाय पीते हुए कहा, ‘‘यह बहुत अच्छा है कि तुमने अपनी पत्नी को पढ़ाई का महत्व समझाया। आजकल तो बहुत से लोग अपनी बीवी को घर की चारदीवारी में ही रखना चाहते हैं। लेकिन तुम ने उसे हर कदम पर सहयोग दिया।’’
सलीम मुस्कुराया, ‘‘हमारा परिवार छोटा है, मगर एक-दूसरे के प्रति समझ और प्यार बहुत है।’’
फिर महमूद साहब ने थोड़ा गहरी सांस ली और धीरे से कहा, ‘‘तुम्हारे बारे में सुना था कि तुम बहुत मेहनती हो, लेकिन तुम्हारी पत्नी को देख कर यह एहसास हुआ कि तुम सही कह रहे थे। वह बहुत सुंदर और समझदार है।’’
सलीम थोड़ा झिझका, ‘‘मालिक, यह तो आप की दयालुता है।’’
महमूद साहब ने एक और चाय का प्याला लिया और फिर बड़े ध्यान से सलीम और फातिमा को देखा। वह समझ गए थे कि सलीम और फातिमा के बीच एक अद्वितीय रिश्ता था। एक ऐसा रिश्ता जो आज के समय में बहुत दुर्लभ था।
फातिमा ने घर के अंदर जाकर चाय का और इंतजाम किया और फिर बाहर आकर सभी को चाय और नाश्ता पेश किया। सलीम और महमूद साहब बातें करते रहे और समय का पता ही नहीं चला।
दिन भर के बाद, महमूद साहब ने सलीम से कहा, ‘‘सलीम, तुम बहुत अच्छे आदमी हो। तुम्हारा परिवार बहुत अच्छा है। आज का दिन मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा।’’
सलीम ने सिर झुकाया और विनम्रता से कहा, ‘‘मालिक, आप आए तो हमारे घर पर, लेकिन हमें बहुत खुशी हुई कि आप हमें अपना समय दे पाए।’’
महमूद साहब ने फिर सलीम को धन्यवाद कहा और उठकर चलने लगे। फातिमा ने उन्हें दरवाजे तक छोड़ते हुए एक बार फिर से उनकी तारीफ की, ‘‘धन्यवाद महमूद साहब।’’
महमूद साहब ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा घर बहुत अच्छा है। मैं फिर से यहाँ आऊँगा।’’
इसके बाद महमूद साहब चले गए, और सलीम और फातिमा दोनों अपने घर की सुख-सुविधा और खुशियों में खो गए।
इस दिन ने सलीम और फातिमा की जिंदगी में एक नया मोड़ लिया था। महमूद साहब की बातों से उन्हें यह समझ में आया कि उनका परिवार, भले ही छोटा हो, लेकिन सच्चाई और मेहनत की मिसाल था। वे एक-दूसरे के साथ खड़े थे, और यही सबसे महत्वपूर्ण था।
यह कहानी न केवल परिवार के रिश्तों की अहमियत को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि प्यार, सम्मान और विश्वास ही किसी भी रिश्ते की सच्ची नींव होते हैं।